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सिंड्रेला की कहानी

सिंड्रेला का जीवन

एक बार की बात है, एक सिंड्रेला नाम की लड़की थी। वो अपनी सौतेली माँ और दो सौतेली बहनों के साथ रहती थी। उसकी सौतेली माँ और बहनें बहुत ही क्रूर और मतलबी थीं। वो लोग सिंड्रेला से सारा काम करवाते थे और फिर भी उसके साथ बुरा व्यव्हार करते थे। बिना आराम किए सिंड्रेला दिन भर मेहनत करती थी, फिर भी उसे यातनायें सहनी पड़ती थी। सुबह जब अंधेरा ही होता था तब ही वो उठ जाती थी और तब से ही उसके काम शुरू हो जाते थे। दोपहर को जब सब खाना खा कर सो जाते थे तब भी वो काम में व्यस्त होती थी। पुरे घर की साफ़-सफाई, रसोई का काम, घर का रख-रखाव सब वही करती थी परन्तु उसकी कोई पूछ नहीं थी।

सिंड्रेला का काम

खाना बनाने के लिए उसे ही चूल्हा जलना होता था, चूल्हे में फुक मारते मारते उसे खासी होने लगती थी। चूल्हे की राख़ और कालिख़ के वजह से वो खुद को साफ़ नहीं रख पाती थी। उनकी भाषा में अंगार-राख़ को सिंडर कहते हैं और इसी वजह से उसका नाम उसकी सौतेली माँ और बहनों ने ‘सिंड्रेला’ रखा था। ” हाहाहा! देखो इसे, राख़ और कालिख से लिपटी रहती है! सही हमने इसका नाम सिंड्रेला रखा है” ऐसा कह कर उसकी सौतेली बहने उसका उपहास करती रहती थीं।

राजकुमार के लिए पत्नी की खोज

एक दिन की बात है, उनके नगर में एक बहुत बड़ी खबर आई जिसे सुन कर पूरी जनता खुश होगई। खबर यह थी की वहां के राजा-रानी ने नृत्य-सभा का आयोजन किया है। जिसमे नगर की सभी युवतियां (अविवाहित लड़कियाँ ) को परिवार सहित आमंत्रित किया गया था। यह आयोजन राजकुमार के विवाह के लिए योग्य लड़की ढूंढने का एक प्रयास था। सभी नगरवासियों चेहरे प्रशन्नता से खिल उठे थे। और हो भी क्यों ना ? सबको न्योता था राजभवन से और साथ ही साथ इनमे से किसी एक परिवार का राजघराने से सम्बन्ध होने की पूरी संभावना भी थी।

सिंड्रेला का काम बढ़ा

पूरा नगर उत्साहित था, राजभवन से न्योते को लेकर सब उत्साहित होने के साथ ही साथ तैयारियों में व्यस्त भी थे। कोई कपड़े सिलवाने जा रहा है, तो कोई कपड़े पर काम करवा रहा है। कोई कपड़े रंगवा रहा है तो कोई जूते बनवा रहा है। मानो नगर में त्योहार ने दस्तक दिया हो। सब ही माता-पिता चाहते थे की उनकी बेटी सबसे अच्छी दिखे और राजकुमार उनकी ही बेटी को अपने जीवनसाथी के रूप में पसन्द करे। सारी युवतियाँ भी अति-उत्साहित थीं, सभी अपने कपड़े-जुते को लेकर व्यस्त थीं। कुछ घभरायी तो कुछ आत्मविश्वास से भरी हुई थी।

परन्तु सिंड्रेला की जिंदगी में यह उत्सव बहुत सारे काम और थकान लेकर आया था। पहले से ही सिंड्रेला को बहुत काम करना पड़ता था, और अब इस राजशाही नृत्यसभा के लिए उसे और भी काम करने पड़ रहे थे। उसे अपनी दोनों सौतेली बहनों के लिए एक -एक गाउन (लड़कियों द्वारा पहने जाने वाला फ्रॉक जैसा परिधान) बनाना था। साथ ही साथ उनके जूतों पर पत्थरों का काम भी करना था।

सिंड्रेला के साथ बुरा व्यवहार

सिंड्रेला काम में जुटी हुई थी तभी उसकी एक बहन ने अपनी गाउन मांगी। सिंड्रेला ने झट से उसकी गाउन उसकी तरफ बढ़ा दी। परन्तु यह क्या उसकी बहन तो उस पर आग बबूला हो उठी। उसकी बहन चीख कर कहा ”यह क्या बनाया है? यह तो बहुत ही बुरा है। “इस पर फिर से काम करो” ऐसा कह कर उसने गाउन को सिंड्रेला के तरफ हवा में उछाल दिया। ये सब देख-सुन कर सिंड्रेला को बहुत बुरा लगा, और उसके आँसू बहने लगे। रोते हुए सिंड्रेला ने कहा “बहन! फिर मैं कब…..”

तभी उसकी सौतेली माँ उधर से चीखती हुई आई – ” फिर मैं कब ….क्या सिंड्रेला?”

सिंड्रेला ने कहा “राजशाही नृत्यसभा में जाने के लिए मैं अपने लिए गाउन कब बनाऊँगी?”

“तुम?” चीखते हुए पूछा सौतेली माँ ने। “तुमसे किसने कहा की राजशाही नृत्यसभा में तुम भी जा रही हो?”

तभी दोनों सौतेली बहनें जोर-जोर से हसने लगीं, और हस्ते हुए एक बहन ने कहा “वहाँ नौकरानियों को आमंत्रण नही है। कभी खुद को आईने में नहीं देखा, कालिख और राख से सनी दिवार लगती हो। अब हमारे कपड़े और जूते तैयार करने पर धयान दो और ख्याली पुलाव कम पकाओ।”
ऐसा कह कर वो सब वहां से चले गए।

दुखी सिंड्रेला

यह सब सिंड्रेला को बहुत बुरा लगा। उसने मन हि मन कहा “हो सकता है की मैं इन्हें कालिख और राख से सनी दिवार लगती हूँ, पर मैं सच में ऐसी नहीं हूँ। मेरी माँ कहती थी मैं बहुत ही सूंदर हूँ। और रही बात राजशाही नृत्यसभा में जाने की तो यदि मैं जा पायी तो जरूर जाऊँगी, आखिर वहाँ नगर की सभी युवतियों को आमंत्रण है और मैं भी इसी नगर की युवती हूँ।” फिर वह अपने काम में लग गयी, सौतेली माँ और बहनों के कपडे तैयार करते करते शाम हो गयी। और वो लोग सिंड्रेला द्वारा तैयार किये गए कपड़े और जूते पहन कर तैयार हो गये। यहाँ तक कि अपनी केशसज्जा यानी बालों की सजावट भी उन लोगों ने सिंड्रेला से ही करवाए।

बाहर उनकी घोड़ा-गाड़ी आ चुकी थी, जल्दी-जल्दी कर वो सब गाडी में बैठ गए। सिंड्रेला ने उनसे कहा “अलविदा, अच्छा समय बिताना”, पर उन में से किसी ने भी पीछे मुड़ कर नहीं देखा। और अंततः सिंड्रेला को घर में अकेला छोड़ कर नृत्यसभा के आयोजना में सम्मिलित होने को चले गए। उन्हें जाते देख सिंड्रेला उदास हो गयी और चीख कर कहा “काश! मैं भी जा सकती”, पर गाड़ी तब तक जा चुकी थी।

परी का आगमन

मायूस सिंड्रेला धीमे कदमों से अंदर के तरफ बढ़ी और यह क्या? उसने वहाँ एक परी को देखा। आश्चर्य से भरी सिंड्रेला जब तक कुछ कह पाती तब तक परी ने सिंड्रेला से पुछा ” तुमने बुलाया?”

“मैं ने?” सिंड्रेला ने आश्चर्य से पूछा। कौन हैं आप?

“क्यों, मैं तुम्हारी परी-माँ हूँ! और मुझे तुम्हारी इच्छा पता है। उसी इच्छा को पुरी करने आयी हूँ।” – परी ने कहा

“परन्तु मेरी इच्छा तो असंभव है” यह कह कर सिंड्रेला कमरे के एक कोने में बैठ गयी।

“क्या…क्या तुमने देखा नहीं अभी मैं हवा को चीरती हुई तुम्हारे सामने प्रकट हुई हूँ?” – परी ने पूछा

सिंड्रेला ने परी से बतायी दिल की बात

सिंड्रेला ने उदास शब्दों में कहा “हाँ..देखा मैंने, पर मुझे उस राजशाही नृत्यसभा में जाना है राजकुमार से मिलने और देखो मुझे मैं कैसी दिख रही हूँ! साफ़ भी कर लूँ तो ना ही मेरे पास कपड़े हैं, ना जूते और ना ही जाने का कोई साधन। यदि मैं तैयार भी हो जाऊं तो समय से वहां पहुँच नहीं पाऊँगी। आप ही बताओ क्या यह संभव है?”

परी ने कहा संभव-असंभव सब मुझ पर छोड़ दो। और अपनी जादू की छड़ी घुमाकर उसने कालिख-राख में सनी सिंड्रेला को बिलकुल साफ-सुथरा कर दिया और फिर सिंड्रेला के कपड़े नीले रंग के बेहद खूबसूरत गाउन में परिवर्तित हो गए। उसके बाल एक सुनहरे रंग के बैंड में बंध कर एक ऊँची चोटी में परिवर्तित हो गए। उसके पैरों में कांच के खूबसूरत सैंडलों ने जगह ली। सिंड्रेला किसी परी या राजकुमारी सी लग रही ही थी। उसकी सुंदरता देखने योग्य थी। खुद को देख कर सिंड्रेला अत्यंत खुश हुई। परी माँ ने कहा “अभी और भी है” और कहते हुए फिर से अपनी जादुई छड़ी को घुमाया। छड़ी घूमते ही वहां एक शाही रथ प्रकट हुआ जिसमे चार सफ़ेद रंग के घोड़े बंधे थे। और उस रथ एक सारथि भी बैठ था।

परी की चेतावनी

यह सब देख कर, सिंड्रेला ने कहा “क्या मैं सपना देख रही हूँ या यह सच में हकीकत है? मैं समझ नहीं पा रही हूँ।”

परी ने उसके कंधे पर हाँथ रखा और उसे विश्वास दिलाते हुए कहा ” हकीकत के इतना सच है ये सब, बस तुम्हे एक बात का ध्यान रखना है कि यह जादू सिर्फ रात 12 बजे तक ही रहेगा उसके बाद सब कुछ पहले जेसा ही हो जायेगा। अतः तुम्हे मध्यरात्रि से पहले ही वहां से वापिस आना पड़ेगा।”

सिंड्रेला ने मुस्कुराकर धन्यवाद भाव से कहा की “मैं मध्यरात्रि से पहले ही वापिस आजाऊंगी” और देखते ही देखते परी अंतर्ध्यान हो गयी।

तभी सारथि ने आवाज लगायी चलें शाही बुलावे में? सिंड्रेला ख़ुशी-ख़ुशी रथ पर सवार हो अपनी मंजिल की और निकल पड़ी।

नृत्य सभा में सिंड्रेला

उधर नृत्यसभा में अलग ही मंजर था। राजकुमार एक एक कर सभी युवतियों से मिलता जा रहा था पर उसके दिल का खालीपन भर ही नहीं रहा था। किसी से भी मिलकर उसे ऐसा नहीं लग रहा था जैसे कि यही है वो जो मेरे लिए बनी है। उनमे से किसी मे भी से अपने सपनों कि राजकुमारी नहीं दिख रही थी। बेटे को ऐसे उदास देख रानी ने कहा ” इतनी सारी खूबसूरत युवतियां कहाँ दिखेंगी? इनमे से बहुत सारी सच में योग्य हैं, फिर भी तुम्हारे चेहरे पर यह खालीपन यह उदासी क्यों है? उनसे मिलो,बातें करो।”

राजकुमार रानी की बातों पर हामी भरते हुए जैसे की मुड़ा, उसकी नज़र सीढ़ियों से निचे अति हुई परियों सी सूंदर सिंड्रेला पर पड़ी और वो वहीँ अपना दिल् हार गया। उस दरबार में सिंड्रैला से ज्यादा रूपवती कोई दूसरी युवति नहीं थी। सारे लोग उसे आश्चर्य भरी नज़रों से देख रहे थे। साथ में नृत्य करने के ख्याल से राजकुमार तेजी से सिंड्रेला की ओर बढ़ा और नृत्य के लिए उसका हाथ बिना किसी संकोच के माँग लिया। सिंड्रेला ने भी मुस्कराते हुए उसे अपना हाथ दे दिया और दोनों उस शाही नृत्यसभा की शान बढ़ाने लगे।

राजकुमार से बात 

नृत्य के दौरान राजकुमार ने सिंड्रेला से पूछा “क्या हम पहले कभी मिल चुके हैं?” और सिंड्रेला के चेहरे को निहारता रहा। “नहीं, पर आज आप से मिलकर मैं बहुत खुश हूँ” – सिंड्रेला ने उत्तर दिया। राजकुमार को सिंड्रेला उसकी सपनो कि राजकुमारी लगने लगी। राजकुमार ने कहा ” मुझे ऐसा लगता है कि मैं पहले आपसे मिल चुका हूँ पर मैं यह भी जनता हूँ की यह असंभव है”। सिंड्रेला ने राजकुमार की आँखों मे देख कर कहा “बहुत सारी चीज़ें संभव हैं यदि आप उन्हें संभव होते हुए देखना चाहते है तो” और यह सुन कर राजकुमार ने एक बार फिर सिंड्रेला पर अपना दिल हार दिया। राजकुमार की धड़कने बहुत बढ़ी हुई थीं पर वो भी सिंड्रेला के साथ उसे संगीत सा प्रतीत हो रही थीं। गाने बदलते जा रहे थे पर इस जोड़े का नृत्य थमने का नाम ही नहीं ले रहा था।

बाकी लड़कियों में जलन

अब बाकि युवतियाँ सिंड्रेला से जलने लगीं थीं, राजकुमार सिर्फ एक ही लड़की के साथ क्यों नृत्य कर रहे है? यह तो गलत है। हमे क्यों नहीं देख रहे? ये सब कह-कह कर बातें बनाने लगे। परन्तु राजकुमार की नज़र सिंड्रेला से हट ही नहीं रही थी और ना ही वो सिंड्रेला का साथ छोड़ने को तैयार था। दोनों बातें करते जा रहे थे, हँसते जा रहे थे, बाँहों में बाहें डाले नृत्य करते जा रहे थे। अपनी ज़िन्दगी में सिंड्रेला कभी इतनी खुश नहीं हुई जितनी वो आज थी। समय की तरफ उसका ध्यान ही नहीं रहा।

बारह बजने वाला

मध्यरात्रि होने में कुछ पल ही बाकी थे। राजसभा के उस भवन में बड़ी सी घडी लगी थी। घड़ी मे जीतने बजते थे उतनी ही बार घडी का घंटा बजता था। रात के 12 बजने वाले थे और घडी का घंटा 12 बार बजना था।

सिंड्रेला राजकुमार संग ही थी की अचानक से उसने घंटे की आवाज सूनी ‘डौंग’ और नज़र ऊपर कर घड़ी की और देखा तो रात के 12 लगभग बज ही चुके थे। और 12 बजते ही परी का जादू खत्म होने वाला था। देखते ही देखते फिर आवाज आयी ‘डौंग’…सिंड्रेला के मुँह से निकला ” हे भगवान! ये तो मध्यरात्रि होने को है। राजकुमार ने पूछा “तो क्या हुआ?”

‘डौंग’
सिंड्रेला : मुझे अब जाना चाहिए
‘डौंग’
राजकुमार: पर हम तो अभी ही मिले हैं,मुझे तुम्हारे बारे में सब जानना है…साथ…
‘डौंग’
सिंड्रेला: मुझे जाना ही होगा
‘डौंग’
सिंड्रेला सीढ़ियों से ऊपर की तरफ दौड़ी
‘डौंग’
राजकुमार: क्या? क्यों? मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा, घडी बहुत तेज है।
‘डौंग’
राजकुमार: एक पल के लिए रुक जाओ, मुझे कुछ कहना है।
‘डौंग’
सिंड्रेला फिसली उसकी एक सैंडल पैरों से निकलकर सीढ़ी पर गिर गयी, और वो आह करते भागती रही
‘डौंग’
राजकुमार: एक पल के लिए रुक जाओ
‘डौंग’
सिंड्रेला दरवाज़े पर पहुँच चुकी थी, निकलने से पहले उसने राजकुमार को आखरि बार पलट कर देखा और निकल गयी।
‘डौंग’

सिंड्रेला का जाना

12 बज चुके थे, सिंड्रेला जा चुकी थी पर राजकुमार ने हार नहीं मानी। उसने सिंड्रेला के कांच से बने सैंडल को हाथ में उठाया और सोचा यह मेरा अंतिम सहारा है। फिर वह दौड़ता हुआ उपर की तरफ आया और दरवाजे से बाहर जा कर नीले गाउन में आयी सिंड्रेला को ढूंढने लगा। पर तब तक वो जा चुकी थी, राजकुमार सिपाहियों के साथ दूर दूर तक सिंड्रेला को ढूंढता रहा। मायूस राजकुमार थक-हार कर घंटों बाद लौटा। वापिस आकर भी वो सिंड्रेला के सैंडल को ही निहारता रहा और अचनाक उसके मन में ख्याल आया की इस सैंडल को देख कर लगता है की यह खास उसी के लिए बना है। यदि मैं राज्य की हर युवती को पहना कर देखूं तो मुझे वो जरूर मिल जाएगी। ऐसा सोच उसने राज्य अवकाश घोषित करवा दिया और यह शाही- आदेश मिला कि राजकुमार सब के घर आएंगे अपनी राजकुमारी ढूंढने। जनता भी अति उत्साहित होगयी थी। राजकुमार एक-एक घर, झोपड़े, भवन मे जाकर युवतियों को सैंडल पहनने को कह रहे थे।

सिंड्रेला के घर राजकुमार का आगमन

लगभग सारे ही घर हो आये थे, परन्तु ना हीं किसी को वो सैंडल अच्छे से आयी ना ही किसी भी युवती की आँखों में वो बात दिखी जो राजकुमार को सिन्ड्रेला की आँखों मे दिखी थी।

अंततः राजकुमार सिंड्रेला के घर पहुंचा। तभी सिंड्रेला की एक सौतेली बहन ने अति-उत्साह में चीखा “राजकुमार आगए हैं”, जैसे ही माँ ने पूछा “कहाँ?”…तो दूसरी बहन चीखी “दरवाजे पर”। माँ ने कहा “जल्दी करो तुममे से किसी एक के पैरों मे वो सैंडल आना ही चाहिए, चाहे कुछ भी हो…मैं दरवाजा खोलती हूँ”। सौतेली माँ ने दरवाजा खोल कर बड़े ही आदरभाव से राजकुमार को अंदर आने को कहा। राजकुमार अंदर आये। सौतेली माँ ने कहा “यही दोनों मेरी प्यारी बेटियां हैं”। एक-एक कर दोनों ने हर संभव प्रयास किया पर दोनो मे से किसी के भी पैरों में वो सैंडल नहीं आया।

मायूस राजकुमार: और कोई नहीं है अपके घर में?
सौतेली माँ: नहीं
राजकुमार: फिर तो मुझे जाना चाहिए

सिंड्रेला को राजकुमार ने पहचाना

सिंड्रेला (कमरे मे आते हुए): शायद कोई है!
राजकुमार (सौतेली माँ से): पर आपने तो कहा और कोई नहीं है
सौतेली माँ: कोई आपकी राजकुमारी बनने योग्य नहीं, ये तो दासी है

परन्तु सिंड्रेला की आँखे राजकुमार को अपनापन का एहसास दिला रही थीं, उसके कालिख और राख से सने कपडों मे भी वो अपनी राजकुमारी को देख पा रहा था और फिर राजकुमार ने सिंड्रैला से कहा “आइए और सैंडल पहन कर देखिए”। सिंड्रेला राजकुमार के तरफ बढ़ी, राजकुमार घुटने पर बैठ कर सिंड्रेला को सैंडल पहनाने लगा। और पाया की वो सैंडल सिंड्रेला की ही थी। फिर मुस्कुराते हुए सिंड्रेला ने अपनी जेब से दूसरी सैंडल को निकाल कर दूसरे पैर मे पहन लिया। ख़ुशी से पागल राजकुमार ने कहा “मुझे पता था की वो आप ही हो”

सिंड्रेला को मिला सपनों का राजकुमार

एक सौतेली बहन (चीखते हुए): क्या?
दूसरी सौतेली बहन (गुस्से में): नहीं!
सौतेली माँ (गुस्से में): ऐसा नहीं हो सकता

परन्तु अब वो सिंड्रेला को दासी की तरह कैद नहीं रख सकते थे। राजकुमार ने सिंड्रेला को ढूंढ़ लिया था।

राजकुमार (सिंड्रेला की आंखो मे देख कर): आपके बालों में लगे राख, चेहरे पर कालिख के निशान, आपकी इन आँखों को मुझसे नहीं छुपा सके। मैंने आपको पा ही लिया।
सिंड्रेला: और मैंने आपको पा लिया

फिर इन दोनों की शादी होगई और वो दोनों खुशी-ख़ुशी साथ रहने लगे।

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