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करवा चौथ क्या है?
आज हर सुहागिन स्त्री करवा चौथ की कहानी जानना चाहती है। प्रतिवर्ष कार्तिक मास के चतुर्थी के दिन करवा चौथ का व्रत मनाया जाता है। भारतीय महिलाओं द्वारा अपने पति के अखंड सौभाग्य और लंबी उम्र के लिए यह त्यौहार की यह व्रत किया जाता है। द्वापर युग से लेकर कलियुग तक इस व्रत की महिमा लगातार बनी हुई है। आज सुहागन महिलाएं इस व्रत को पूर्ण निष्ठा और मन पूर्ण मनोयोग से करती हैं।
आपने देखा होगा दिवाली से पहले त्यौहार के त्योहार के समय भारत में काफी चहल-पहल होती हैं। क्योंकि उस वक्त बहुत सारे त्योहार मनाए जाते हैं। उनमें से एक प्रमुख पर्व व्रत करवा चौथ है। इस दिन महिलाएं उपवास करती हैं और शाम होने पर चांद को देखकर जल ग्रहण करते हैं करती हैं। क्या आपने कभी सोचा है की करवा चौथ का नाम करवा चौथ क्यों पड़ा ? आखिर वह करवा माता कौन थी और त्यौहार को कब से मनाया जाता है आइए इसके बारे में जानते हैं।
करवा चौथ की कहानी क्या है ?
प्राचीन कथा के अनुसार करवा नामक एक पतिव्रता स्त्री थी। उनके पति वयोवृद्ध थे। एक दिन वह नदी में स्नान करने के लिए गए उसी समय एक मगरमच्छ ने उनका पैर पकड़ लिया। करवा के पति चिल्लाने लगे। पति के चिल्लाने की आवाज सुनकर करवा दौड़ती हुई आई और बिना एक पल व्यतीत किए हुए पानी में छलांग लगा दी। वह एक पतिव्रता नारी थी उसमें काफी बल था। अपने सूती साड़ी के धागे से उसने मगरमच्छ को बांध दिया। और अपने तपोबल के माध्यम से उसे लेकर यमराज के पास पहुंची।
यमराज ने करवा से पूछा देवी यहां आने का कारण क्या है? आप क्या चाहती हैं और यह मगरमच्छ कौन है कृपया बताएं। यमराज की ओर करवा ने हाथ जोड़कर कहा प्रभु इस दुष्ट मगरमच्छ ने मेरे पति को मारने की कोशिश की है। मैंने इसे अपने तपोबल से बांध दिया है। इसने एक पतिव्रता नारी के पति को मारने की कोशिश की है इसे दंड मिलना चाहिए।
यमराज ने कहा अभी इस मगरमच्छ की आयु शेष है मैं कैसे दंड दे सकता हूं। करवा ने कहा अगर आप मेरे पति को चिरायु होने का वरदान नहीं देंगे और इस दुष्ट मगरमच्छ को दंड नहीं देंगे तो मैं अपने तपोबल से आप को ही नष्ट कर दूंगी।
चित्रगुप्त ने करवा को क्यों आशीर्वाद दिया ?
करवा की बात सुनकर चित्रगुप्त जी सोचे अगर इसकी बात न मानी जाए तो अनर्थ हो जाएगा। अतः इस मगरमच्छ को दंड मिलना ही चाहिए क्योंकि करवा के तपोबल की अनदेखी करना अनर्थकारी हो सकता है। चित्रगुप्त जी ने मगरमच्छ को यमलोक भेज दिया और करवा को आशीर्वाद दिया कि तुम्हारा पति दीर्घायु होगा और हर सुख समृद्धि से जीवन जियेगा। चित्रगुप्त जी ने कहा जिस तरह तुमने अपने पति के प्राणों की रक्षा की है उससे मैं प्रसन्न हूं और मैं तुम्हें वरदान देता हूं कि आने वाले समय में आज ही के दिन जो भी महिला पूर्ण विश्वास और निष्ठा के साथ तुम्हारी पूजा करेगी उसके सौभाग्य की मैं रक्षा करूंगा।
करवा चौथ कब मनाते हैं ? क्या करवा चौथ की कहानी हमारी संस्कृति का हिस्सा है?
प्रत्येक वर्ष कार्तिक महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को करवा चौथ मनाया जाता है। हाँ, ये नैतिकता की शिक्षा है कि कैसी कैसी पतिव्रता स्त्रियां हुई और किस तरह से उन्होंने अपने पतिव्रता बल पर पति को मौत के मुँह से बाहर निकाला।
करवा चौथ पर चांद क्यों देखते हैं?
करवा चौथ सुहागिनों का एक महत्वपूर्ण त्यौहार है। सुहागिने अपने पति के लंबी उम्र के लिए व्रत करती हैं सुबह से शाम तक उपवास करते हैं जल का एक बूंद भी ग्रहण नहीं करती और शाम होने पर पूजा करने के बाद चांद और पति को छलनी में से देखकर अपना व्रत पूरा करते हैं। चांद निकलने के बाद महिलाएं छलनी में दीपक रखकर चांद को देखती हैं उसके बाद अपने पति को देखती हैं। पति अपने हाथों से पत्नी को पानी पिलाते हैं।
कहा जाता है कि चांद को जीवन भगवान भोलेनाथ की कृपा से मिली है और वह काफी लंबी है। तो चांद को देखने से पति को लंबी आयु का वरदान मिलेगा। चांद के सदृश्य पति में शीतलता, प्रेम, प्रसिद्धि और सुंदरता भी होगी। इसलिए सभी महिलाएं यह कामना करती हैं कि उनके पति में चांद के जैसा मौजूद सारा गुण आ जाए। दीर्घायु तो मूल है और बाकी जो गुण है वह भी पति में होनी चाहिए ऐसा स्त्रियों का मानना है।
करवा चौथ कहाँ कहाँ मनाया जाता है ?
यह भारत के दिल्ली, पंजाब, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, मध्य प्रदेश और राजस्थान में मनाया जाने वाला पर्व है। अब भारत के कुछ अन्य राज्यों में भी करवा चौथ का प्रचलन बढ़ रहा है।
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