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मिल्खा सिंह (Milkha Singh): “फ्लाइंग सिख” की अद्भुत कहानी

मिल्खा सिंह (Milkha Singh): “फ्लाइंग सिख” की अद्भुत कहानी

मिल्खा सिंह (Milkha Singh) एक विलक्षण प्रतिभा के धनी इंसान थे। 20 नवंबर 1929 को पाकिस्तान के मुगोकिला गाँव में जन्मे मिल्खा सिंह, जिन्हें “फ्लाइंग सिख” के नाम से जाना जाता है, भारतीय खेल इतिहास के सबसे प्रेरणादायक एथलीटों में से एक हैं। उनका जीवन संघर्ष, हार और जीत से भरा रहा है, जो उन्हें लाखों लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनाता है।

बचपन और शुरुआती जीवन:

मिल्खा सिंह का जन्म एक साधारण किसान परिवार में हुआ था। उनके पिता एक पुलिस अधिकारी थे और उनकी माँ घर का काम करती थीं। उनका परिवार धार्मिक था और वे गुरुद्वारे में नियमित रूप से जाते थे। मिल्खा सिंह बचपन से ही शरारती और ऊर्जावान थे। वे अक्सर खेतों में दौड़ते और खेलते रहते थे। 12 साल की उम्र में, उन्होंने अपने जीवन की पहली त्रासदी का सामना किया जब उनकी माँ का निधन हो गया। इस घटना ने उन्हें गहराई से प्रभावित किया, और उन्होंने खुद को पढ़ाई और खेलकूद में लगा दिया।

विभाजन और सेना में शामिल होना:

1947 में भारत के विभाजन के दौरान, मिल्खा सिंह का परिवार पाकिस्तान से भारत आ गया। रास्ते में, उन्होंने अपने पिता और भाई-बहनों को दंगों में खो दिया।

यह उनके जीवन का एक अत्यंत दर्दनाक दौर था, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। भारत आने के बाद, उन्होंने सेना में शामिल होने का फैसला किया। सेना में रहते हुए, उन्होंने अपनी दौड़ने की प्रतिभा को पहचाना और एथलेटिक्स में प्रशिक्षण लेना शुरू कर दिया।

प्रारंभिक सफलता और राष्ट्रीय पहचान (Milka Singh):

मिल्खा सिंह (Milkha Singh) ने जल्दी ही अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा लिया।

1952 में उन्होंने सेना की ओर से भाग लेते हुए 400 मीटर दौड़ में राष्ट्रीय रिकॉर्ड बनाया।

1954 में उन्होंने भारतीय सेना में शामिल होने का फैसला किया और 1956 में मेलबर्न ओलंपिक में भाग लेने के लिए चुने गए।

हालांकि, मेलबर्न में 400 मीटर दौड़ का फाइनल उनके लिए निराशाजनक रहा। वे चौथे स्थान पर रहे, 0.1 सेकंड से पदक जीतने से चूक गए।

लेकिन इस हार ने मिल्खा सिंह को हतोत्साहित नहीं किया। उन्होंने और भी कठोर प्रशिक्षण लिया और 1958 में एशियाई खेलों में 400 मीटर दौड़ में स्वर्ण पदक जीतकर इतिहास रच दिया।

यह दौड़ रोमांचक थी। शुरुआत में मिल्खा थोड़ा पीछे थे, लेकिन धीरे-धीरे उन्होंने गति पकड़ी और आखिरी 100 मीटर में उन्होंने जोरदार स्प्रिंट लगाया। दर्शक उत्साह से चिल्ला रहे थे, और मिल्खा सिंह “फ्लाइंग सिख” की तरह फिनिश लाइन पार करते हुए स्वर्ण पदक जीत गए।

यह जीत भारत के लिए ऐतिहासिक थी, क्योंकि यह एशियाई खेलों में 400 मीटर दौड़ में स्वर्ण पदक जीतने वाले पहले भारतीय धावक थे।

मिल्खा सिंह ने 1962 में राष्ट्रीय खेलों में 400 मीटर दौड़ का राष्ट्रीय रिकॉर्ड भी बनाया, जो 45.73 सेकंड का था।

ओलंपिक का सपना और “फ्लाइंग सिख” का जन्म:

1960 में रोम ओलंपिक में मिल्खा सिंह ने 400 मीटर दौड़ के फाइनल में फिर से भाग लिया। इस बार वे तीसरे स्थान पर रहे, 0.05 सेकंड से रजत पदक जीतने से चूक गए। लेकिन, इस प्रदर्शन ने उन्हें “फ्लाइंग सिख” का उपनाम दिला दिया। यह उपनाम उन्हें पाकिस्तानी पत्रकार “रॉबिन सोन” ने दिया था, जिन्होंने मिल्खा सिंह की दौड़ने की शैली की तुलना “उड़ते हुए सिख” से की थी। यह उपनाम मिल्खा सिंह को पसंद आया और यह उनके जीवन का एक अविभाज्य हिस्सा बन गया।

1964 में टोक्यो ओलंपिक में उन्होंने फिर से भाग लिया, लेकिन 400 मीटर दौड़ के फाइनल में वे छठे स्थान पर रहे।

मिल्खा सिंह (Milkha Singh) की उपलब्धियां:

मिल्खा सिंह का निधन:

23 जून 2013 को 83 वर्ष की आयु में चंडीगढ़ में मिल्खा सिंह का निधन हो गया। उनकी मृत्यु भारत के लिए एक बड़ी क्षति थी, लेकिन उनकी प्रेरणादायक कहानी हमेशा लाखों लोगों को प्रेरित करती रहेगी।

विरासत मिल्खा सिंह(Milkha Singh) की :

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