पिठोरिया का शापित भुतहा किला
लगभग ढाई सौ साल पुराना पिठोरिया किला ( Pithoria ka Shapit Bhutaha Qila) भारत का एक शापित किला है। यह किला भारत के झारखंड राज्य की राजधानी रांची में स्थित है। जहां जाने से आज भी लोग डरते हैं और वहां पर्यटन ना के बराबर है। पिठोरिया किले में छल का शिकार हुए स्वतंत्रता सेनानियों की आत्मा आज भी भटकती है और किसी को बसने नही देतीं हैं। वे आत्माएं अविश्वास का शिकार हुई थीं इसलिए अब वे किसी पर भी विश्वास नहीं करती। इसी कारण से यह आत्माएं अब मनुष्यों के लिए बहुत खतरनाक हो चुकी हैं।
शापित पिठोरिया किले की कहानी (Pithoria ka Shapit Bhutaha Qila)
इस भूतिया शापित पिठोरिया किले की कहानी की शुरुआत होती है 1831 से। तब ब्रिटिश व्यापार के लिए छोटा नागपुर क्षेत्र पर अपना पैर जमाने चाहते थे। इसके लिए उन्होंने पिठोरिया राजा को अपने विश्वास में ले लिया। पिठोरिया राजा जगतपाल सिंह उनके हाथों की कठपुतली बन चुके थे। अंग्रेजों ने उन्हें पुचकारने के लिए राजा बहादुर की उपाधि भी दे डाली थी। जब 1857 का विद्रोह शुरू हुआ तब इस क्षेत्र में भयंकर युद्ध हुए। रांची इस विद्रोह का केंद्र बन गया था। जनजातीय विद्रोह ने ब्रिटिश सेना को लगभग धूल चटा ही दी थी। परंतु, घर को आग लगी अपने ही चिराग से और वह चिराग थे राजा बहादुर की उपाधि प्राप्त पिठोरिया राजा जगतपाल सिंह। जिन स्वतंत्रता सेनानियों ने गोरिल्ला युद्ध तकनीक से अंग्रेज सेना को नाको चने चबवा दिए थे, उन महान स्वतंत्रता सेनानियों को धोखा मिला अपने ही मिट्टी के राजा जगतपाल सिंह से।
विश्वासघाती राजा जगतपाल सिंह
पिठोरिया राजा की मदद से अंग्रेजी सेना ने इस विद्रोह को काबू किया। ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव के द्वारा अंग्रेजों से लड़ रहे स्वतंत्रता सेनानियों को धोखा मिला। स्वदेशी राजा ने अंग्रेजों संग मिल कर इन सेनानियों को गिरफ्तार कर मौत के घाट उतरवा दिया। इस गद्दारी को विद्रोह के नेता ठाकुर शाहदेव सह नही पाए। अपनी मिट्टी से गद्दारी करने के लिए ठाकुर शाहदेव ने जगतपाल सिंह को श्राप दिया कि “उनकी कोई संतान नहीं होगी और उनका किला कभी बसेगा नही और किला जब तक ध्वस्त नहीं होता तब तक उस पर वज्रपात होता रहेगा“।
इस घटना को आज इतने वर्ष बीत गए परंतु आज भी भारत के विश्व स्वतंत्रता सेनानियों की आत्मा वहां भटकती है। लोग वहां जाने से डरते हैं। आज भी किले पर वज्रपात होता है। यह किला रांची शहर से मात्र 25 किलोमीटर दूर है, परंतु इसके अंदर जाने की कोई हिम्मत नहीं करता। कहते हैं वे आत्माएं आज भी मनुष्य को विश्वासघाती ही मानती हैं और जो वहां जाता है उस पर हमला कर देती हैं।
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