श्री राम की शपथ (Shree Ram Ki Shapath)
हमे ये जानना चाहिए कि श्री राम की शपथ (Shree Ram Ki Shapath) के क्या मायने होते हैं। एक बार की बात है। गोस्वामी तुलसी दास जी अवध में थे। वे सरयू नदी में स्नान करने आए। जब वे नदी में उतर कर अंदर की ओर जा रहे थे, उसी समय एक महिला भी वहां स्नान करने पहुंची। उसे जल्दी स्नान करना था। उसने तुलसीदास जी को देख कर प्रणाम किया और कहा, “बाबा जी! मुझे शीघ्र स्नान करना अनिवार्य है। आप उस ओर मुख कर नदी में खड़े हो जाईए। आपको आपके राम जी की शपथ है, जब तक मैं ना कहूँ, आप न पीछे मुड़ कर देखेंगे, न नदी से बाहर निकलेंगे। गोस्वामी जी ने भी उन महिला को अस्वासन दे, नदी में महिला की ओर पीठ घुमा कर खड़े होगए।
कहाँ हैं गोस्वामी जी (Shree Ram Ki Shapath)?
कड़ाके की ठंड पड़ रही थी। महिला जल्दी जल्दी नहा कर भागी। जल्दबाजी में वह महिला गोस्वामी जी को पीछे मुड़ने व बाहर निकलने को कहना भूल गई। इस कारण गोस्वामी जी घंटों नदी में ही रह गए। जब इतनी देर हो गई और गोस्वामी जी मंदिर नहीं पहुंचे। तब लोग हर जगह उन्हें ढूंढने लगे। ढूंढते ढूंढते पता चला की, गोस्वामी जी स्नान करने गए थे। तब से अभी तक वापस नहीं आए हैं। उनके साथ के लोग सरयू नदी के किनारे जा पहुंचे। उन्होंने वहां पाया की गोस्वामी जी नदी में खड़े हैं। उन्होंने गोस्वामी जी से बाहर निकालने का आग्रह किया। तब गोस्वामी जी ने मना करते हुए कहा, “मैं बाहर नहीं निकल सकता हूँ। एक महिला ने मुझसे शपथ ली है। यदि वह देवी मुझे बाहर निकलने को कहेंगी तभी मैं बाहर निकल सकता हूं।”
सबसे महत्वपूर्ण है राम का नाम (Shree Ram Ki Shapath)
तुलसीदास जी की बात सुनकर सभी लोग हैरान हो गए। धीरे-धीरे यह बात राजा के पास पहुंच गई। राजा कुछ समझ नहीं पाए। वह शीघ्र ही गोस्वामी जी के पास पहुंचे। राजा ने गोस्वामी जी से बाहर निकलने की विनती करते हुए कहा, “किसी व्यक्ति की शपथ के कारण इस कड़ाके की ठंड में नदी में खड़े रहना स्वास्थ्य के लिए सही नही है। सबसे महत्वपूर्ण आपका स्वास्थ्य है।” परंतु, गोस्वामी जी ने उन्हें मना करते हुए बताया कि, “मेरे से कहीं अधिक मेरे प्रभु का नाम महत्वपूर्ण है। उन देवी ने मुझे मेरे प्रभु श्री राम की शपथ दिलाई थी। उनका नाम मेरे पूरे अस्तित्व से अधिक महत्वपूर्ण है।”
भागी आई वह महिला
राजा ने गोस्वामी जी से पूछा, “बाबा जी! उन देवी का नाम क्या है? कहाँ की रहने वाली हैं वो?” इस प्रश्न पर तुलसीदास जी ने राजा से कहा, “मुझे ज्ञात नही है।” तब राजा ने पूरे अवध में ढोल बजवा के उन महिला को शीघ्र सरयू नदी के तीर पर उपस्थित होकर गोस्वामी जी को शपथ मुक्त करने का आदेश दिया। उन महिला को जैसे ही अपनी गलती का आभास हुआ। वे दौड़ती हुई, नदी के तीर पर जा पहुंची। वहाँ हाथ जोड़ कर क्षमा याचना करती हुई गोस्वामी जी से कहने लगी, “बाबा जी! अब आप पीछे मुड़ सकते है और नदी से बाहर भी निकल सकते हैं।”
तुलसीदास की भक्ति एवं आंतरिक शांति
फिर कहने लगी, “हे बाबा जी! मुझसे बड़ा अपराध हुआ। मैं दंड की भागी हूँ। यदि आप की दया हो तो क्षमा करें।” गोस्वामी तुलसीदास ने मुस्काते हुए कहा, “नही देवी! आपसे कोई अपराध नही हुआ है। मेरे प्रभु चाहते थे कि मैं यहां एकांत में श्री सरयू जी के जल में उनकी भक्ति करूँ। मुझे ऐसा करने का शुभअवसर प्राप्त हुआ। इसके लिए आपको धन्यवाद।” ऐसे होते है सिद्ध पुरुष। अन्तः शांत। यह भारत भूमि है, देवभूमि है। जिसे भगवान भी अवतरित होने के योग्य समझते हैं। भारत भूमि संतों की भूमि है। अनंत काल से कितने ही बड़े ऋषि, मुनि, महात्मा, संत जन, साधु यहां जन्म लेते आए हैं। अपने ज्ञान की धारा से अपने समय मे और उसके बाद भी लोगों को निर्मल करते हैं।