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स्वामीभक्त नंदी और हंसी (Swamibhakt Nandi Aur Hansi)

Swamibhakt Nandi Aur Hansi

स्वामीभक्त नंदी और हंसी (Swamibhakt Nandi Aur Hansi)

स्वामीभक्त नंदी और हंसी (Swamibhakt Nandi Aur Hansi) कहानी मनुष्य और जानवरों के सहअस्तित्व की कहानी है। प्रेम से सब कुछ संभव है। घुमावदार पहाड़ियों के बीच घाटियों में एक गांव था। उस गांव में संयम नाम का एक किसान रहता था। उस किसान के पास एक ही बैल था। उस बैल का नाम नंदी था। नंदी एक शानदार बैल था। उसके कंधे चौड़े एवं मांसपेशियाँ शक्तिशाली थी। वह अपने दिन खेतों में मेहनत करते हुए बिताता। संयम को भी नंदी के काम पर गर्व था। नन्दी खेती हेतु जमीन को तैयार करने के लिए लगन से जुताई करता। सुबह से शाम तक मेहनत करने वाला नंदी, केवल भोजन एवं पानी के लिए रुकता। नंदी मेहनती के साथ साथ मालिक प्रेमी भी था। संयम को भी नंदी पर पूरा भरोसा था। दोनो मिलकर सफल खेती करते और अच्छी फसल उगाते।

घायल बंदर

एक बार संयम और नंदी खेत से घर लौट रहे थे। रास्ते मे नंदी ने एक घायल बंदर को देखा और उसकी तरफ जाने लगा। संयम भी नंदी के पीछे जाने लगा। नंदी जाकर बंदर के पास रुक गया और उसे पैर से हिलाने लगा। बंदर घायल था, परंतु उसने आंखें खोलीं। तब संयम ने उसे पानी पिलाया। फिर, उसे उठा कर नंदी की पीठ पर लेटा दिया। नंदी और संयम बंदर को घर ले आए। वहां उसकी खूब सेवा की। देखते ही देखते कुछ दिनों में बंदर ठीक होगया। बंदर जब ठीक हो गया तब बहुत करतब दिखलाता और सबको हंसाता। संयम ने बंदर का नाम हंसी रख दिया। जब नंदी खेत जाता, प्रतिदिन बंदर भी नंदी की पीठ पर सवार होकर खेत जाता। उनकी दोस्ती भी गहरी होती जा रही थी।

हंसी भी परिवार बन गया

जब संयम इशारा करता, हंसी नंदी के खाने के डेग में घांस भर देता। हंसी भी किसान की मदद करने लगा। कभी बाल्टी में पानी भर देता, तो खेत मे भी पटवन में सहायता करता। खुद भी फल खाता और किसान के लिए भी फल और सब्जियां तोड़ कर जमा करता। यहां तक कि बाजार में बेचने के लिए टोकरियां भी भरता। संयम के घर दोनो ही जानवर, नंदी बैल और हंसी बंदर खुशी खुशी जीवन जी रहे थे। बरसात का मौसम था। संयम ने अपनी खेत पर मकई की खेती की थी। मकई की अच्छी फसल हुई थी। अब बस मकई के पौधों से भुट्टे तोड़ने बाकी थे। इसी बीच संयम एक विवाह निमंत्रण में सपरिवार चला गया। बस दिन भर की बात थी। संयम शाम को वापिस लौटने वाला था।

खेत मे घुसे चोर

नंदी घर के बाहर बंधा था। हंसी भी वहीं खेल रहा था। संयम के घर से ही खेत दिखता था। तभी संयम की खेत मे कुछ लोग घुसे और भुट्टे तोड़ने लगे। यह देख कर नंदी रंभाने लगा। अपनी सूझ बूझ का परिचय देते हूए हंसी ने नंदी के गले की रस्सी खोल दी और उसकी पीठ पे चढ़ कर बैठ गया। नंदी दौड़ता हुआ खेत पहुंचा और तेज़ी से इधर उधर दौड़ने लगा। भुट्टा चोर इधर उधर भागने लगे। नंदी और हंसी ने मिल कर सारे चोर भगा दिए। किसी का गमछा खेत मे गिरा तो भागने में किसी की चप्पल टूट कर खेत मे रह गयी। हंसी ने नंदी को घर चलने का इशारा किया। नंदी हंसी को लेकर घर चला आया। वहां नंदी ने घांस ढोने वाले बोरे को नंदी की पीठ पर रख कर बैठ गया। फिर दोनों वापिस खेत आ गए।

नंदी एवं हंसी की स्वामीभक्ति (Swamibhakt Nandi Aur Hansi)

किसान संयम के पास घांस लाने के लिए दो बोरे थे। जो आपस मे रस्सी से जुड़े थे। संयम उसे नंदी की पीठ पर ऐसे रखता की रस्सी नंदी की पीठ पर और दोनो बोरे नंदी के बाएं एवं दाएं ओर लटके होते। हंसी ने भी नंदी पर बोरे को ऐसे रख कर, उसमे भुट्टा तोड़ तोड़ कर भरने लगा। जब दोनों बोरे भर गए, तब वे दोनों घर गए। हंसी तो बोरे नही उतार पाता, तो नंदी धीरे धीरे बैठ गया और घिसट घिसट कर रस्सी से बाहर निकल आया। हंसी ने भुट्टे से भरे बोरों को पुआल से ढक दिया। फिर दूसरे घांस ढोने वाले बोरे को नंदी की पीठ पर रख कर खेत चला गया और फिर से बोरों में भुट्टा जमा करने लगा।

भावुक संयम

इसी बीच संयम घर पहुंचा तो देखा कि पुआल का ढेर लगा है और दोनो जानवर गायब हैं। वह कुछ समझ नही पाया। जब पुआल हटाने लगा तो पाया कि भुट्टे से भरे बोरे हैं। वह आश्चर्यचकित रह गया। खेत की ओर देखा तो दोनों जानवर खेत मे थे और बंदर भुट्टे तोड़ रहा था। संयम दौड़ता हुआ खेत पहुंचा तो देखा खेत मे दूसरे लोगों के चप्पल और तौलिए गिरे हुए हैं। वह समझ गया खेत पर चोर आए थे और उसके जानवरों ने उसकी खेती बचा ली। वह जैसे ही नंदी और हंसी के पास पहुंचा तो नंदी रंभाने लगा, हंसी भी उसकी ओर दौड़ा। किसान संयम अपने जानवरों को गले से लगा कर रोने लगा। फिर उन्हें प्यार से पुचकारने लगा। संयम अपने नंदी और हंसी का ऋणी हो चुका था।

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