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गुरु पूर्णिमा क्यों मनाते हैं – Why is Guru Purnima Celebrated?

गुरु पूर्णिमा क्यों मनाते हैं – Why is Guru Purnima

Celebrated?

इसका आपको इस लेख के अगले हिस्से में उत्तर मिलेगा कि गुरु पूर्णिमा क्यों मनाते हैं -Why is Guru Purnima Celebrated? पहले जानते गुरु पूर्णिमा कब मनाते हैं? वर्षा ऋतु के आरम्भ में जो पहली पूर्णिमा पड़ती, वो आषाढ़ मास की पूर्णिमा होती है। उसी पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा कहते हैं। हिन्दू, जैन और बोद्ध धर्म के अनुयायी गुरु पूर्णिमा को उत्सवरूप में मनाते हैं। गुरु पूर्णिमा वर्ष की एक ऐसी पूर्णिमा है जो सभी आध्यात्मिक और अकादमिक गुरूजनों को समर्पित है। यह पर्व भारत, नेपाल और भूटान में मनाया जाता है। इस पवित्र दिन को शिष्य अपने गुरुजन एवं शिक्षकगण को समर्पित करते हैं। उनको सम्मान देकर एवं अपनी कृतज्ञता का भाव दिखलाकर शिष्य इस दिन को उत्सवपूर्ण बनाते हैं। दो विशेष कारण से इस दिन को गुरु पूर्णिमा कहते हैं।  ये दोनों ही कारण भारतवर्ष की धरती पर अलग अलग काल खंड में घटित हुए।

आषाढ़ पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा क्यों मनाते है – Why is Guru Purnima Celebrated ?

पहला कारण कि गुरु पूर्णिमा क्यों मनाते हैं –  Why is Guru Purnima Celebrated? यह पवित्र दिन शिव से योग विज्ञान के पहले संचरण का प्रतीक है। महादेव को आदियोगी अर्थात सबसे पहले योगी के रूप में भी हम जानते हैं। सतयुग के समय, इस पवित्र दिन को आदियोगी ने अपने पहले शिष्यों यानि सप्तर्षियों को योग विज्ञान सिखाया था। इस दिन वो आदि गुरु या प्रथम गुरु बन गए। इस पवित्र एवं ऊर्जापूर्ण दिवस को गुरु पूजा का विधान है।

गुरु पूर्णिमा की कहानी (Story of Guru Purnima)

सतयुग के समय हिमालय के ऊपरी क्षेत्रों में एक योगी प्रकट हुए। वह कहाँ से आए थे? कोई नहीं जानता था। ना हि उन योगी ने अपना कोई परिचय ही दिया। वहीँ शिलाओं पर आसान लगा बैठ गए, और कुछ भी नहीं किया। ढेरो संख्या में लोग एकत्रित हुए, समय बीतते हुए भी कोई क्रिया प्रतिक्रिया देखने को ना मिलने पर लोग धीरे-धीरे जाने भी लगे। परन्तु सात लोग वहीँ रह गए, उन्होंने योगी के आँखें खोलने की प्रतीक्षा की।

योगी ने आँखें खोलीं

दक्षिणायन होने समय की पूर्णिमा के दिन योगी ने अपनी आँखें खोलीं। योगी के आंखे खोलते ही इन लोगों ने सत्य जानने और यह तकनीक सिखाने के लिए निवेदन किया। परन्तु, आदियोगी ने उनकी बात पूर्णतः काटते हुए कहा “यह आपकी क्षमता से परे है, इसके लिए आप तैयार नहीं हैं। कड़ी मेहनत और लगन से तैयारी करने की आवश्यकता है। यह कोई करतब नहीं।”

84 वर्ष की तपस्या

उनकी लगन और निष्ठा देखते हुए आदियोगी ने उन्हें कुछ प्रारंभिक कदम बताए। फिर उन्होंने अपनी आँखें बंद कर ली। ज्ञान पाकर उन सात निष्ठावान पुरुषों ने तैयारी आरम्भ कर दी। दिन, मास, वर्ष बीतते चले गए। 84 वर्ष की तपस्या पूर्ण कर, उसी पूर्णिमा के दिन (जो दक्षिणायन के आरम्भ के समय होती है, यानि सूर्य का उत्तरी गोलार्ध से दक्षिणी गोलार्ध जाने की क्रिया ) आदियोगी से ज्ञान प्राप्त करने योग्य बने। एक मास बाद, सूर्य उत्तरायण की पहली पूर्णिमा के दिन, यानि आषाढ़ पूर्णिमा को आदियोगी ने अपने योग्य शिष्यों को योग विज्ञान का ज्ञान देना आरम्भ किया। आदियोगी, आदिगुरु भी बन गए और आषाढ़ पूर्णिमा गुरु पूर्णिमा बन गयी।

आषाढ़ पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा क्यों कहते है?

दूसरा कारण

विष्णु पुराण में कहा गया है कि “वेदों को त्रुटि से सुरक्षा प्रदान करने हेतु” , हर महायुग के तीसरे चरण यानि द्वापर युग में श्री हरिविष्णु अंश समय समय पर अवतरित होते हैं। मूल रूप से एक वेद को चार भागों में सुव्यवस्थित करते हैं। इसलिए उन्हें व्यास कहते हैं। अन्य व्यासों जैसे ही महर्षि कृष्ण द्वैपायन व्यास जी (वेद व्यास जी) ने भी वेदों को चार भागों में व्यस्थित किया। इस मन्वन्तर में कृष्ण द्वैपायन व्यास जी 28वें व्यास हुए।

व्यास जी का जन्म ( Guru Purnima Story)

वेदों को व्यवस्थित करने के अलावा उन्होंने मानव कल्याण हेतु और भी कई महान ग्रंथों की रचना की जैसे महाभारत, 18 प्रमुख पुराण, ब्रम्ह सूत्र, पतंजलि योग भाष्य इत्यादि। व्यास जी अभी भी अस्तित्व में हैं, वो सात चिरंजीवियों में से एक हैं। व्यास जी परम ज्ञानी एवं वेदों के ज्ञाता हैं, अतः उन्हें वेद व्यास कहते हैं। कृष्ण द्वैपायन व्यास जी का जन्म आषाढ़ मास की पूर्णिमा को हुआ था। और, इसी दिन उन्होंने वेदों को विभाजित भी किया था। उनके सम्मान में आषाढ़ पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा भी कहते हैं। गुरु शिष्य पारम्परिक जन इस शुभ दिन को गुरु पूर्णिमा के रूप में मानते हैं।

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