कौरववंश में जन्मा दुर्योधन अधर्मी क्यों था ? (Duryodhan Adharmi Kyun Tha)
क्या आप जानते हैं दुर्योधन अधर्मी क्यों था (Duryodhan Adharmi Kyun Tha) ? हस्तिनापुर के कार्यकारी महाराज धृतराष्ट्र और महारानी गांधारी के सौ पुत्रों में से सबसे ज्येष्ठ दुर्योधन थे। गांधारी के होने वाले 101 बच्चों का जन्म से पहले का विकास अलग अलग घड़ों में हुआ था। 101 घड़ों में से 100 पुत्र एवं एक पुत्री ने जन्म लिया। सबसे पहले दुर्योधन का जन्म हुआ था।
जब दुर्योधन का जन्म हुआ तो वह रोने के बजाया गधे की तरह रेंकने लगा और जन्म लेते ही बोलने भी लगा था। दुर्योधन के जन्म का समय इतना अशुभ था कि, उस समय उपस्थित महर्षि वेदव्यास एवं हस्तिनापुर के राजपुरोहित कृपाचार्य ने इस बच्चे को त्याग ने योग्य बतलाया। साथ में यह भी कहा कि, “यह बालक आगे चलकर हस्तिनापुर के विनाश का कारण बनेगा“। परंतु, पुत्र मोह में धृतराष्ट्र और गांधारी ने ऐसा करने से मना कर दिया।
क्रोध का मानवीय रूप
दुर्योधन क्रोध के मानवीय रूप थे। महाराज धृतराष्ट्र जन्मांध थे। परंतु महाराज धृतराष्ट्र केवल आंखों से ही अंधे नहीं थे अपितु मोह में भी अंधे थे। वे पुत्र मोह में, इस तरह से जकड़े हुए थे, कि वे दुर्योधन के अवगुणों को सदैव हंसी में उड़ा देते थे। जहां कभी उन्हें दुर्योधन की गलती बड़ी लगती थी, वहां वह दुर्योधन से कहने में असमर्थ रहते थे। क्योंकि, महाराज धृतराष्ट्र का मोह, उनके राजधर्म और पिता धर्म पर भारी था। अपने पुत्र को शिष्टाचार ना सिखाना, उसकी गलतियों पर पर्दा करना और, उसके अपराधों पर उसे दंड ना देने का यह नतीजा निकला की सभी को, महाभारत के युद्ध की चौखट पर खड़ा होना पड़ा। हम सदियों से सुनते आए हैं कि, दुर्योधन अधर्मी था। और वह हो भी क्यों ना, जहां क्रोध है, वहां धर्म किस प्रकार हो सकता है।
मामा शकुनि का प्रभाव
क्रोध का जन्म अहंकार से होता है। और जहां अहंकार है, वहां धर्म डगमगा जाता है। दुर्योधन के मामा शकुनी के लिए उनका भांजा दुर्योधन अति प्रिय था। यह मामा भांजे की जोड़ी, क्रोध और कुटीलता की जोड़ी थी। इस जोड़ी ने साथ मिलकर कितने ही अपराध किए। दुर्योधन के अपराध कर्म तो बाल्यकाल से ही शुरू हो गए थे, जब उसने अपने चचेरे भाई भीम को विष देकर मारने का प्रयास किया था। हालांकि, भीम बच गए थे। युवावस्था मे, फिर दुर्योधन ने पांडवों को मारने के लिए वारणावत में लाक्षागृह का निर्माण कराया। जहां पर दुर्योधन के चचेरे भाई पांडवों के साथ उनकी चाची देवी कुंती भी उपस्थित थी। अपने द्वेष की भावना में वह लगातार गिरता गया।
द्रौपदी चीरहरण और दुर्योधन का पतन (Duryodhan Adahrmi kyun tha)
द्रौपदी चीर हरण, उसके पतन का (Duryodhan Adharmi Kyun tha) एक और ज्वलंत उदाहरण है। और अंततः उसका पूर्ण पतन तो तब हुआ, जब श्री हरि नारायण स्वयं युद्ध टालने के लिए मैत्री संदेश लेकर हस्तिनापुर आये। दुर्योधन ने उन्हें बंदी बनाने का प्रयास किया था। दुर्योधन को अनेक अवसर मिले परंतु हर बार उसने सिद्ध किया कि क्रोध केवल विनाश जानता है। अहंकार, द्वेष, घृणा, ईर्ष्या की जड़ें इतनी गहरी थीं दुर्योधन में की धर्म तक वो कभी पहुंच ही नही पाया। दुर्योधन के दुराचारी होने में उसके जन्म और उसके संस्कार दोनों ही भागीदार हैं। माता पिता का मोह और मामा की कुटिलता का बड़ा योगदान रहा उसके दुराचारी होने में, और दुर्योधन के यही अवगुण, कौरवों के अंत का कारण बना।
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