हितोपदेश – धूर्त गीदड़ और कर्पूरतिलक हाथी की कहानी
हितोपदेश – धूर्त गीदड़ और कर्पूरतिलक हाथी की कहानी एक शिक्षाप्रद कहानी की क्यों किसी के बहकावे में नहीं आना चाहिए। ब्रह्मवन में कर्पूरतिलक नामक हाथी था। उसको देखकर सब गीदड़ों ने सोचा,””यदि यह किसी तरह से मारा जाए तो उसकी देह से हमारा चार महीने का भोजन होगा।” उसमें से एक बूढ़े गीदड़ ने इस बात की प्रतिज्ञा की — मैं इसे बुद्धि के बल से मार दूँगा।
बूढ़ा गीदड़ और कर्पूरतिलक हाथी
फिर उस धूर्त ने कर्पूरतिलक हाथी के पास जा कर साष्टांग प्रणाम करके कहा — महाराज, कृपादृष्टि कीजिये। हाथी बोला — तू कौन है, सब वन के रहने वाले पशुओं ने पंचायत करके आपके पास भेजा है, कि बिना राजा के यहाँ रहना योग्य नहीं है, इसलिए इस वन के राज्य पर राजा के सब गुणों से शोभायमान होने के कारण आपको ही राजतिलक करने का निश्चय किया है।
राजा की योग्यता
जो कुलाचार और लोकाचार में निपुण हो तथा प्रतापी, धर्मशील और नीति में कुशल हो वह पृथ्वी पर राजा होने के योग्य होता है।
राजानं प्रथमं विन्देत्ततो भार्या ततो धनम्।
राजन्यसति लोकेsस्मिन्कुतो भार्या कुतो धनम्।।
पहले राजा को ढ़ूंढ़ना चाहिये, फिर स्री और उसके बाद धनको ढूंढ़े, क्योंकि राजा के नहीं होने से इस दुनिया में कहाँ स्री और कहाँ से धन मिल सकता है ?
राज्य का लोभ
इस लिए लग्न की घड़ी टल जाए, आप शीघ्र पधारिये। यह कह उठ कर चला फिर वह कर्पूरतिलक राज्य के लोभ में फँस कर गीदड़ों के पीछे दौड़ता हुआ गहरी कीचड़ में फँस गया। फिर उस हाथी ने कहा — “”मित्र गीदड़, अब क्या करना चाहिए ? कीचड़ में गिर कर मैं मर रहा हूँ। लौट कर देखो। गीदड़ ने हँस कर कहा — “” महाराज, मेरी पूँछ का सहारा पकड़ कर उठो, जैसा मुझ सरीखे की बात पर विश्वास किया, तैसा शरणरहित दुख का अनुभव करो।
यदासत्सड्गरहितो भविष्यसि भविष्यसि।
तदासज्जनगोष्ठिषु पतिष्यसि पतिष्यसि।।
जैसा कहा गया है — जब बुरे संगत से बचोगे तब जानो सीखोगे , और जो दुष्टों की संगत में पड़ोगे तो मरोगे।
फिर बड़ी कीचड़ में फँसे हुए हाथी को गीदड़ों ने खा लिया।