मोहिनी एकादशी (Mohini Ekadashi)

मोहिनी एकादशी (Mohini Ekadashi) : सर्वश्रेष्ठ एकादशी 

सभी एकादशियों में मोहिनी एकादशी (Mohini Ekadashi) सर्वश्रेष्ठ मानी जाती है।

Mohini Ekadashi

मोह किसी भी चीज का हो, मनुष्य को कमजोर ही करता है। इसलिए मोह से छुटकारा पाने की कामना रखने वाले इंसान के लिए बहुत उत्तम है मोहिनी एकादशी का व्रत। इस एकादशी से और भी बहुत सारे फल और वरदान पाए जा सकते हैं। इस एकादशी को सभी एकादशी में श्रेष्ठ माना गया है। इसी दिन भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण किया था।

मोहनी एकादशी के बारे में सभी गुरु अपने शिष्यों को बताते थे, गुरु वशिष्ठ ने भी अपने शिष्य श्री राम को बताया था। श्री राम तो स्वयं ही विष्णु हैं। जब हरि श्री कृष्ण रूप में आए तब उन्होंने भी इस फलदायी एकादशी के बारे में कल्याण हेतु लोगों को बताया। यहां तक कि भगवान श्री कृष्ण ने महाराज युधिष्ठिर को भी बतलाया था। एकादशी व्रत वर्णन पुराणों में भी मिलता है। यह व्रत भगवान विष्णु को समर्पित है।

मोहिनी एकादशी का महत्व 

मोहिनी एकादशी (Mohini Ekadashi) का व्रत व्यक्ति को पाप से भी मुक्ति दिलाता है। अंजाने में हुए पापों से मुक्ति मिलती है। इस व्रत के दिन दान का भी महत्व है। भगवान विष्णु की पूजा करने के बाद जरुरतमंदों को भोजन कराने से भगवान प्रसन्न होते हैं। मोहिनी एकादशी का व्रत व्यक्ति को मोक्ष प्रदान करता है। इस व्रत को करने से व्यक्ति में एक प्रकार की सकारात्मक ऊर्जा महसूस होती है। जो उसे निरोग बनाने में सहायक होती है और मानसिक तनावों को दूर करती है।

इसे संबंधों में दरार को दूर करने वाला व्रत भी माना गया है। यह व्रत बहुत ही फलदायी होता है। इस व्रत को करने से समस्त कामों में आपको सफलता मिलती है। मान्‍यता है कि इस व्रत को करने से सभी प्रकार के पापों का नाश होता है और 10 हजार सालों की तपस्या के बराबर फल मिलता है। अथवा सुनने से एक हजार गोदान का फल प्राप्त होता है।

आइए जानते मोहिनी एकादशी (Mohini Ekadashi) की कथा

मोहिनी एकादशी के विषय में कहा जाता है कि समुद्र मंथन के बाद जब अमृत को लेकर देवों और दानवों के बीच विवाद हुआ था तब भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण किया। जिनके रूप पर मोहित होकर दानवों ने अमृत का कलश उन्हें सौंप दिया। इसके बाद मोहिनी रूप धारी भगवान विष्णु ने सारा अमृत देवताओं को पिला दिया और देवता अमर हो गये। जिस दिन भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण किया था। उस दिन वैशाख माह के शुक्‍ल पक्ष की एकादशी तिथि थी। तब से भगवान विष्णु के इसी मोहिनी रूप की पूजा मोहिनी एकादशी के रूप में की जाती है।

राहु केतु की कहानी

जब देवताओं को अमृत दिया जा रहा था तब भेष बदल कर एक राक्षस भी अमृत पान करने के लिए देवताओं के साथ कतार में खड़ा हो गया और अमृत पी लिया। तभी सूर्य और चंद्र देव ने उसे पहचान लिया। जब उसे पकड़ने की कोशिश की गई, तब वह भागने लगा। तभी श्री हरि ने अपने सुदर्शन से उसका सिर काट दिया। परंतु, ईश्वर ने अमृत को अमर करने की शक्ति दी है और चूंकि उस राक्षस ने अमृत पहले ही पी लिया था। इसलिए वो अमर हो गया था। उसका सर और धड़ दो भागों में विभक्त हो गया। जिसे राहुऔर केतुके नाम से जाना गया। राहु और केतु ज्योतिष में बहुत बड़ा स्थान रखते हैं। मोहिनी एकादशी का व्रत एवं पूजा, श्री हरि की कृपा प्राप्त करने का एक सुफल उपाय है।

आइए जानते हैं मोहिनी एकादशी (Mohini Ekadashi) की पूजन विधि

नियमित रूप से सुबह जल्दी उठें और स्नानध्यान के बाद घर को और पूजा घर को शुद्ध करें। साफ कपड़े पहनें और एक चौकी पर लाल या पीले रंग का वस्त्र बिछाएं। इसके बाद चौकी पर भगवान विष्णु की मूर्ति को स्थापित करें और उन्हें पीले रंग का तिलक लगाएं। भगवान को पीले वस्त्र अर्पित करें और धूप, दीप, नैवेद्य अर्पित करें। ऐसा करने के बाद मोहिनी एकादशी कथा का पाठ करें और पूजा समाप्त होने के बाद अपने सामर्थ्य अनुसार जरूरतमंद लोगों को दान करें। शाम के समय आरती करें द्वादशी तिथि के दिन व्रत का पारण करें।