विक्रम और बेताल की कहानियां

विक्रम और बेताल की कहानियां

विक्रम और बेताल की कहानियां

बेताल पच्चीसी या विक्रम और बेताल की कहानियां 25 कहानियों का संकलन है। बेताल राजा विक्रमादित्य को कहानियां सुनाता है और प्रश्न पूछता है। राजा विक्रमादित्य न्याय पूर्ण तरीके से उत्तर देते हैं। विक्रम बेताल की कहानियों को बेताल पच्चीसी के नाम से भी जाना जाता है। यह 25 प्रेरणादायक कहानियों का संकलन है। इन सभी कहानियों को बेताल तब सुनाता है जब राजा विक्रमादित्य उसे पकड़ कर योगी के पास ले जा रहे होते हैं।

बेताल की क्या शर्त थी ?

हर बार बेताल कहानी सुनाने से पहले एक शर्त रखता था कि अगर कहानी खत्म होने के बाद राजा के मुंह से आवाज निकली तो वह वापस पेड़ पर लटक जाएगा। उधर जब भी बेताल कहानी संपन्न करता और राजा से प्रश्न पूछता और कहता अगर तुमने प्रश्न का उत्तर नहीं दिया तो मैं तुम्हारा सर फोड़ दूंगा। मजबूर होकर राजा विक्रमादित्य को जवाब देना पड़ता। पहली शर्त के अनुसार विक्रमादित्य के बोलते ही बेताल पेड़ से उल्टा लटक जाता था। इस तरह 24 बार बेताल राजा विक्रमादित्य के कंधे से भागकर पेड़ पर लटक जाता था। आखिर 25वीं कहानी के बाद ऐसा क्या हुआ की बेताल राजा विक्रमादित्य के साथ चलने को तैयार हुआ जानने के लिए सारी कहानियों को एक कर पढ़ें।

बेताल पच्चीसी क्या है ?

बेताल पच्चीसी संस्कृत के ग्रंथ वेताल पंच वसंतिका का हिंदी नाम है। ऐसा कहा जाता है कि राजा विक्रमादित्य के नवरत्नों में से एक बेताल भट्टराव विक्रम बेताल की कहानी के रचयिता थे। इतिहासकारों का मानना है कि विक्रम बेताल की इन कहानियों का मूल बृहत्कथा नामक ग्रंथ है।

विक्रम बेताल की कहानियां क्यों प्रसिद्ध है?

ये कहानियां न्यायप्रिय, प्रेरक, रस्यप्रद, रोमांचपूर्ण और हास्य से परिपूर्ण होती है। पाठक को सीख के साथ साथ पूर्ण मनोरंजन की भी प्राप्ति होती है। इसलिए इसलिए विक्रम बेताल की कहानियों पर आधारित अनेक तरह के धारावाहिक बने, कार्टून बने, कॉमिक्स और किताबें लिखी गई।

विक्रम और बेताल कहानी की शुरुआत कैसे हुई?

विक्रमादित्य को एक न्याय प्रिय और दान शील राजा के रूप में जाना जाता है। वर्तमान उज्जैन के राजा विक्रमादित्य थे। एक दिन की बात है शांति शील नाम का एक योगी राजा विक्रमादित्य के दरबार में आया। दरबार में आने के बाद उस योगी ने राजा विक्रमादित्य को एक फल दिया और चला गया। राजा विक्रमादित्य को संदेह हुआ। उन्होंने वह फल नहीं खाया और भंडार में रखने के लिए दे दिया। प्रतिदिन योगी आता और एक फल राजा को देकर चला जाता।

एक दिन की बात है राजा विक्रमादित्य अपने अस्तबल में थे उस समय वही योगी वहां पर आया और पुनः एक फल राजा के हाथ में दिया। बात करते-करते राजा ने उस फल को उछाला पर दुर्भाग्यवश वह जमीन पर गिर पड़ा। उस जमीन पर गिरे फल को एक बंदर ने उठा लिया। देखते ही देखते उस बंदर ने उसे जमीन पर पटक दिया और और उस फल के अंदर से लाल रंग का चमचमाता रत्न निकला। राजा विक्रमादित्य आश्चर्यचकित हो गए। उन्होंने पूछा ये क्या है तो योगी ने कहा ” महाराज, राजा, गुरु, वैद्य, ज्योतिषी और पुत्री के यहां खाली हाथ नहीं जाना चाहिए”।

अब सभी पुराने फलों की जांच की गई तो सभी से इसी तरह के कीमती रत्न निकले। राजा ने जौहरी को बुला कर उनके मूल्य का आकलन करने को कहा। जौहरी ने कहा एक एक रत्न का मूल्य कई राज्यों के मूल्य से ज्यादा है। विक्रमादित्य आश्चर्यचकित थे।

योगी के आने का क्या प्रयोजन था ?

राजा ने योगी से आने का प्रयोजन पूछा। योगी ने कहा महाराज मैं अकेले में बात करना चाहता हूं। राजा ने सभी को वहां से जाने को कहा। उनके जाते ही योगी ने कहा ” महाराज गोदावरी नदी के किनारे श्मशान में मैं एक मंत्रसिद्ध कर रहा हूं। उसके सिद्ध होने से मेरी मनोरथ सिद्ध हो जाएगी। ये तब ही संभव है जब आप मेरा साथ दो। एक रात को आपको अकेले अपने अस्त्र शस्त्र के साथ मेरे पास आना होगा। विक्रमादित्य ने कहा ठीक है मैं निश्चित समय निश्चित तिथि को आपके पास पहुंच जाऊंगा। योगी ने उन्हें तिथि और समय बता दिया।

विक्रम और बेताल की कहानी में योगी ने राजा विक्रमादित्य को क्या करने को कहा ?

निश्चित तिथि को उचित समय पर राजा विक्रमादित्य योगी के पास पहुंचे। योगी ने कहा राजन दक्षिण की दिशा में दो 2 कोस दूर पीपल के पेड़ पर एक मुर्दा लटका है। मुझे वह मुर्दा चाहिए उसे आप वहां से उठा कर ले आए। तब तक मैं पूजा करता हूं। योगी की बातों को सुनकर राजा उस मुर्दे को लाने के लिए निकल पड़े।

अंधेरी रात थी बारिश हो रही थी अंधेरे सड़कों पर चलते चलते हैं विक्रमादित्य ने महसूस किया उनके पैरों में आकर सांप लिपट रहे हैं शमशान के चारों ओर भूत प्रेत शोर मचा रहे हैं। विक्रमादित्य बेधड़क आगे बढ़ते गए। जंगली जानवरों की कर्कश ध्वनि उनके कानों को क्षति पहुंचाने की कोशिश कर रही थी। राजा विक्रमादित्य उस पीपल के पेड़ के पास पहुंच गए जहां पर मुर्दा लटका था। पेड़ में बहुत तेज आग लगी थी। राजा विक्रमादित्य और रस्सी काट दी मुर्दा धड़ाम से नीचे गिरा और रोने लगा। विक्रमादित्य ने नीचे आकर पूछा तू कौन है? इतना पूछना था इतना पूछना था की वह मुर्दा खिलखिला कर हंस पड़ा। राजा को अचरज हुआ तभी वह फिर पेड़ पर जा लटका फिर राजा ऊपर चढ़े और उसकी रस्सी काटी, मुर्दे को बगल में दबा कर नीचे ले आए और पूछा बता तू कौन है?

मुर्दा चुप रहा। विक्रम उसे अपने कंधे पर लादकर योगी के पास ले चले। रास्ते में उस मुर्दे ने कहा मेरा नाम बेताल है और तुम मुझे कहां ले जा रहे हो? राजा ने कहा मेरा नाम विक्रमादित्य है और मैं धारा नगरी का राजा हूं। मैं तुझे योगी के पास ले जा रहा हूं।

बेताल की शर्त

बेताल बोला मैं एक शर्त पर चलूंगा अगर तू रास्ते में बोलेगा तो मैं लौट कर कर पेड़ पर पुनः आ लटकूंगा। राजा ने उसकी बात मान ली। बेताल बेताल ने कहा मैं तुम्हें कहानी सुनाऊंगा इससे मेरा भी मन लगा रहेगा और तुम्हारा भी मन लगा रहेगा पर तुम्हें इसके बीच में कुछ भी नहीं बोलना न हां ना हूं, चुपचाप सुनना है और ना ही कोई प्रश्न करना है। विक्रमादित्य ने कहा ठीक है इसके बाद बेताल ने अपनी कहानी शुरू की यहीं से बेताल पच्चीसी की कहानी शुरू होती है। 25 इसलिए कहते हैं कि बेताल ने एक ही रात में 24 कहानियां सुनाएं और और अंतिम कहानी उस धूर्त योगी की है जिसके कारण पूरे पच्चीस कहानियों का संग्रह बेताल पच्चीसी कहा जाता है।।