सफलता की कुंजी (Safalta Ki Kunji) : निरंतर अभ्यास

निरंतर अभ्यास से मिलती है सफलता की कुंजी (Safalta Ki Kunji)

सफलता की कुंजी (Safalta Ki Kunji) हर कोई पाना चाहता है पर इसे कैसे पाया जाता है, क्या आप जानते हैं ?

सफलता की कुंजी (Safalta ki kunji) : निरंतर अभ्यास

बहुत पुरानी बात है। उन दिनों स्कूल नहीं हुआ करते थे, स्कूल की जगह गुरुकुल होते थे। बच्चे वहीं पढ़ने जाते थे। गुरुकुल आजकल के बोर्डिंग स्कूल की तरह होते थे, जहां रहकर बच्चे पढ़ते थे। और, जब बीच-बीच में छुट्टियां होती थी, तब वह अपने घर आया करते थे। वहां गरीब अमीर सभी के बच्चे एक साथ पढ़ते थे। उन्हें पढ़ाने वाले गुरु भी वहीं रहते थे। गुरुकुल में केवल पढ़ाई ही नहीं होती थी, उसके अलावा वहां पर बच्चों को नैतिक शिक्षा के साथ-साथ जीवन को आसान बनाने हेतु प्रशिक्षण भी दिए जाते थे।
 

अटलदेव और गणित

ऐसे ही एक गुरुकुल में अटल देव नाम का छोटा सा बालक पढ़ता था। वह गुरुकुल में प्रारंभिक शिक्षा ग्रहण कर रहा था। परंतु, उसके लिए गणित बहुत ही कठिन था। और कठिन गणित ने उसके गुरुकुल के जीवन को भी कठिन बना दिया था। वहां से वह लौट कर अपने मां-बाप के पास भी नहीं जा सकता था। उसके माता पिता अत्यंत गरीब थे और उन्हें अपने बेटे से बहुत उम्मीदें थी। अटल देव जो भी पढ़ता, उसे कुछ समझ नहीं आता। गणित उसके लिए इतना संघर्षपूर्ण हो चुका था कि, अब वह उससे डरने लगा था। जो कुछ उसे गणित में पढ़ाया जाता, वह कुछ नहीं समझ पाता था। उसे प्रतिदिन डांट पड़ती थी। वह हर समय सहमा सहमा रहने लगा।

निराश अटल देव का जाना

एक दिन निराश होकर उसने यह योजना बनाई कि, जब रात को सब सो रहे होंगे तब मैं गुरुकुल छोड़ कर चला जाऊंगा। परंतु यह क्या जब तक उसकी आंख खुली तब तक सवेरा होने वाला था। परंतु अटल देव का गणित से डर,बाकी हर डर से बड़ा था। अटल देव ने सोचा अभी सवेरा तो नहीं हुआ चलो जल्दी जल्दी भाग जाता हूं। वह उठकर गुरुकुल से भाग गया। दो-तीन घंटे चलने के बाद, वह एक गांव में पहुंचा। तब तक सुबह हो चुकी थी, गांव के कुए पर महिलाएं पानी भर रही थी।

वह बेचारा छोटा सा बच्चा घंटों से चल रहा था। अब बहुत थक चुका था। गुरुकुल छोड़ते समय उसने यह तो नहीं सोचा था कि, उसे इतना कष्ट पहुंचेगा। अन्यथा वह गुरुकुल क्यों ही छोड़ता? अब बेचारे को भूख और प्यास दोनों लगी थी। परंतु, उसे यह पता था कि कहीं उसे कुछ नहीं मिलने वाला है।

प्यास और कुंआ

जब उसने कुँए पर महिलाओं को पानी भरते देखा तो उसे लगा खाना ना सही, परंतु मुझे पानी तो पिला ही देंगी। फिर उसने कुएं पर जाकर, एक महिला से पानी मांगते हुए कहा “माता! क्या आप मुझे पानी पिलायेंगी?” तब उस महिला ने सहमति भरे संकेत देते हुए, बाल्टी को कुँए में डालकर पानी निकालने लगी। पानी निकाल कर, एक लोटे में भर कर अटल देव को पानी दिया। प्यासे अटल देव ने जब भर पेट पानी पिया तब उसकी सांस में सांस आई। परंतु, अटल देव के चेहरे पर निराशा साफ झलक रही थी। अटल देव पानी पीने के बाद, धन्यवाद कह, लोटा रखकर जा रहा था। तभी, उस महिला ने अटल देव से कहा “बालक! तुम्हारा नाम क्या है?”

कुँए पर माता से मुलाकात

अटल देव ने कहा “जी! मेरा नाम अटल देव है माता।” फिर, उस महिला ने अटल देव से पूछा “इतने निराश क्यों हो? और सुबह-सुबह कहां जा रहे हो?” तब उस बच्चे ने कहा, “माता! मैं जा नहीं रहा, मैं आ रहा हूं। मुझे नहीं पता अभी मैं कहां जा रहा हूं। मैंने अपना गुरुकुल छोड़ दिया क्योंकि मुझसे गणित के प्रश्न नहीं बनते थे। मेरे लिए गणित पहाड़ जैसा है, इतना कठिन की मैं कुछ नही समझ पाता हूँ।

मेरे पास भागने के अलावा कोई और चारा भी नहीं था। इसलिए, मैं अपने गुरुकुल से भाग गया। मैं अपने घर भी नहीं जा सकता, क्योंकि मेरे माता-पिता को मुझसे बहुत उम्मीदें हैं। इसलिए, अभी मुझे नहीं पता कि मैं कहां जाऊंगा? यह बोलकर बच्चा जोर-जोर से रोने लगा।” उसे देख कर महिला को दया आ गई। महिला ने उसे गले से लगा लिया। और कहा, “तुमने मुझे माता कहा है, इस हिसाब से तो तुम मेरे पुत्र हुए।

माता की सीख और सफलता की कुंजी (Safalta Ki Kunji )

चलो मैं तुम्हें माता होने के नाते एक बात बताती हूं। क्या तुमने कुँए के इन पत्थरों पर पड़े निशान को देखा ?” अटल देव ने उत्तर दिया “हां, देख रहा हूं।” महिला ने अटल देव से पूछा “क्या तुम मुझे बता सकते हो यह निशान कैसे बने होंगे? किसने बनाए होंगे?” अटल देव ने पत्थर पर बने निशान को देख कर कहा “मुझे नहीं समझ आ रहा कि, इतने मजबूत पत्थर पर किस चीज के यह निशान हैं? किस चीज से कटे हैं यह पत्थर?” तब महिला ने मुस्कुराते हुए रस्सी की ओर इशारा किया। और, कहा “इस मुलायम रस्सी ने इस चट्टान पर निशान बनाए हैं।” आश्चर्यचकित होकर अटल देव ने पूछा “माता! इस मुलायम सी रस्सी से इस पत्थर पर निशान कैसे बन सकते हैं?” तब महिला ने कहा, “बिलकुल वैसे ही जैसे तुम्हारे बार-बार के अभ्यास करने से गणित सरल हो सकता है।”

अटलदेव को मिली अनमोल शिक्षा

अटल देव ने आश्चर्य भरी निगाहों से उस महिला को देखकर बोल, “यह आप क्या कह रही हैं माता? मुझे समझाइए।” तब महिला ने कहा, “हे पुत्र! यह रस्सी हजारों बार इस पत्थर से रगड़ा कर नीचे गई और पानी की बाल्टी उठाकर लेकर आई। इस रस्सी से बार-बार रगड़ खाने के कारण इस शिला पर निशान बन गए हैं क्योंकि यह पत्थर कट चुका है। तुम सोचो यदि इतनी मुलायम रस्सी, इतने कठोर पत्थर को काट सकती है केवल अभ्यास मात्र से। तो फिर, अभ्यास से क्या नहीं हो सकता है पुत्र?

गणित तो बहुत ही सरल चीज है। उसमें केवल अभ्यास की आवश्यकता है। जीवन में जिस चीज का भी तुम अभ्यास निरंतर करोगे, वह तुम्हारे लिए सरल हो जाएगा। इसलिए जीवन में अपनी लड़ाई लड़ो, अपने अभ्यास करो। गुरुकुल से भागना या कठिन चीजों से भागना, जीवन में उपाय नहीं है अपनी लड़ाई लड़ना सीखो पुत्र।

प्रतिदिन उसका अभ्यास करो, जिससे तुम्हें डर लगता है या कठिन लगता है। फिर, हर चीज तुम्हारे जीवन में सरल हो जाएगा।” उस महिला की बात को सुनकर, अटल देव को विश्वास हो गया कि, गणित सच में इतना भी कठिन नहीं, जितना उसे लग रहा था। अभ्यास की कमी के कारण, गणित उसे समझ में नहीं आता था। और, उसने अब मन बना लिया कि अब चाहे कुछ भी हो जाए, मैं गणित में इतने प्रश्न हल करूंगा, गणित का इतना अभ्यास करूंगा कि, गणित मेरे लिए सरल हो जाएगा। और, आगे चलकर ऐसा ही हुआ, अटल देव आगे चलकर बहुत बड़े गणित के विद्वान बने।

सफलता की कुंजी (Safalta Ki Kunji )कहानी की सीख

जीवन मे समस्याओं से भागना समाधान नही है और निरंतर अभ्यास का कोई तोड़ नही है।