महिला का साथ (Mahila Ka Saath)

महिला का साथ (Mahila Ka Saath)

क्या महिला का साथ (Mahila Ka Saath) देना सन्यासियों के लिए अपराध है ?
दो सन्यासी बरसात के मौसम में एक आश्रम से दूसरे आश्रम की ओर जा रहे थे। बीच में नदी और जंगल पड़ती थी। दोनों सन्यासी पैदल यात्रा कर रहे थे। एक सन्यासी 25 वर्ष का था और दूसरा सन्यासी 65 वर्ष का। छोटे सन्यासी बड़े सन्यासी की बड़ी सेवा करते थे, आश्रम में नए सन्यासी सदैव अपने बड़े सन्यासियों के प्रति आदर सम्मान एवं सेवा का भाव रखते हैं। बड़े सन्यासी आगे आगे चल रहे थे। छोटे सन्यासी उनके ठीक पीछे चल रहे थे।

युवा स्त्री और वृद्ध सन्यासी

कुछ देर चलने के उपरांत अब उन्हें एक नदी पार करनी थी नदी के पास एक सुंदर सी युवा स्त्री खड़ी थी उसे स्त्री ने बड़े सन्यासी जी से निवेदन किया। स्त्री ने कहा मुझे तैरना नहीं आता और ये नदी पार करनी है। बड़े सन्यासी ने स्त्री की ओर अपना चेहरा घुमाया। स्त्री ने पुनः कहा मेरी सहायता कीजिए, मुझे नदी पार करवा दें। बड़े सन्यासी जी रुके और सोचने लगे, “क्या मुझे ऐसा करना चाहिए? मानवता के रूप से तो यह सही है। परंतु, मेरा इतने वर्षों का ब्रह्मचर्य है। कहीं स्त्री के स्पर्श से वह नष्ट ना हो जाए। मेरे इतने सालों की तपस्या है।

मैं यूं ही किसी की मदद करने के लिए उसे नष्ट नहीं कर सकता।” यह सब विचार कर बड़े सन्यासी जी ने हाथ जोड़कर उस महिला को मदद करने से मना कर दिया। बड़े सन्यासी जी नदी की ओर मुड़ कर नदी पार करने के लिए नदी में उतर पड़े।

छोटे सन्यासी और महिला का साथ (Mahila Ka Saath)

जब नदी पार कर बड़े सन्यासी दूसरे छोर पर पहुंचे। तब उन्होंने पीछे मुड़कर छोटे सन्यासी को देखना चाहा कि, आखिर छोटे सन्यासी जी अभी कहां तक पहुंचे हैं। यह क्या? वह देखकर अचंभित रह गए। छोटे सन्यासी उस महिला को नदी पार करवाने में मदद कर रहे थे। छोटे संन्यासी ने उस महिला को अपनी पीठ पर चढ़ा रखा था और पानी में तैर रहे थे। यह सब देख बड़े सन्यासी हैरान भी थे और उन्हें क्रोध भी आ रहा था।

बड़े सन्यासी समझ नहीं पा रहे थे कि, वह इस बात से ज्यादा दुखी हैं या क्रोधित। वे सोच रहे थे आखिर कोई इतना मूर्ख कैसे हो सकता है कि अपने इतने सालों के संन्यास को और तपस्या को भंग कर दें? वह भी एक स्त्री के लिए! या फिर अभी इस छोटे सन्यासी की तपस्या में कमी थी? या वो अभी पूर्ण रूप से ब्रह्मचारी बन ही नहीं पाया था? एक स्त्री के सौंदर्य को देखकर भटक गया। यदि वह उसे मदद नहीं करता तो कौन सा मानव जाति पर कोई आपत्ति आ जानी थी?” यह सब सोच बड़े सन्यासी जल्दी-जल्दी आगे बढ़ते जा रहे थे।

क्रुद्ध वृद्ध सन्यासी

बड़े संन्यासी ने जब फिर से पीछे मुड़कर देखा तो पाया कि वे दोनों नदी पार कर चुके हैं। छोटे सन्यासी उस महिला से कह रहे थे की, देवी आप अब सुरक्षित हैं। अब आप अपने गंतव्य स्थान को जा सकती हैं। मैं आपसे अब जाने की आज्ञा लेता हूँ। यह कह कर वह भी बड़े सन्यासी के पीछे-पीछे आने लगे। बड़े सन्यासी आगे मुड़कर वापस आगे जाने लगे। तभी बड़े सन्यासी के पैर में एक कांटा चुभ गया और बड़े सन्यासी के पैरों से लहू बहने लगा। यह देख छोटे सन्यासी दौड़े और बड़े सन्यासी के पैर से कांटा निकाल दिया। फिर उन्हें बिठाने के लिए एक शिला साफ किया। परंतु, बड़े सन्यासी छोटे सन्यासी से अत्यंत क्रुद्ध थे। उन्होंने छोटे सन्यासी को डपटते हुए कहा, “मुझे तुम्हारी सहायता या सेवा की आवश्यकता नहीं है।”

छोटे सन्यासी का सेवा भाव

यह कहकर लंगड़ाते हुए वह आगे बढ़ने लगे। जब भी छोटे सन्यासी कोई बात कहना चाहते या बड़े सन्यासी की सेवा करना चाहे, तो बड़े सन्यासी झिड़क देते। छोटे सन्यासी समझ नहीं पा रहे थे कि आखिर हुआ क्या है? उनके सोच में यह बात दूर-दूर तक नहीं थी कि महिला की मदद करने के कारण बड़े सन्यासी दुखी एवं क्रोधित हैं। चलते चलते दोनों सन्यासी दूसरे आश्रम तक पहुंच गए। उन दोनों के रहने की व्यवस्था एक ही कमरे में की हुई थी।

दूसरे आश्रम के सन्यासियों ने इन दोनों का स्वागत किया। जब आश्रम के बाकी लोग कमरे से चले गए, तब बड़े संन्यासी ने क्रोध में बोला, “ये तुम्हें सन्यासी समझ रहे हैं। पर इन्हें क्या मालूम? तुम सन्यासी नहीं! भोगी हो। तुम मे सन्यासी और ब्रह्मचारी के कोई लक्षण नहीं है। छोटे सन्यासी कुछ समझ नहीं पाए। तब उन्होंने हाथ जोड़कर कहा, “मुझ से क्या अपराध हुआ है? जिसके कारण आप मुझसे इतना क्रोधित है? आप ऐसा क्यों कह रहे हैं कि मुझ में सन्यासी ब्रह्मचारी के कोई लक्षण नहीं?

बड़े सन्यासी का उत्तर

यह सब सुनकर बड़े सन्यासी कहने लगे, “जैसे तुम्हें पता ही नहीं कि तुमने क्या किया है? उस महिला ने मुझे भी तो मदद मांगी थी। पर मैंने अपने ब्रह्मचर्य को, अपने संन्यास को ताक पर रखकर, उसकी मदद करने की। तुमने एक क्षण सोचना भी आवश्यक नहीं समझा की, क्या उचित है? क्या अनुचित है? उसके सौंदर्य के आगे, अपनी तपस्या अपने सन्यास एवं ब्रह्मचर्य को एक बार भी याद नहीं कर पाए। सब का त्याग कर, उस महिला के हाथ को पड़कर नदी पार करने लगे। ऐसे अमर्यादित कृत्य करने के बाद तुम मुझसे पूछ रहे हो कि, मैंने ऐसा क्या किया है? माथे पर जब रूप का आकर्षण चढ़ता है तब कुछ और नहीं दिखता।”

मस्तिष्क में महिला (Mahila Ka Saath)

तब हाथ जोड़कर छोटे संन्यासी ने मुस्कुराते हुए कहा, “आप सही कह रहे हैं। जब रूप का आकर्षण माथे पर चढ़ता है, तब कुछ और नहीं दिखता। मैंने तो उस महिला का साथ कब का छोड़ दिया, परंतु वह अभी तक आपके माथे में बैठी हुई है। क्या क्रोध, कुंठा और दुख ब्रह्मचर्य को भंग नहीं करते? क्या केवल स्त्री का स्पर्श ब्रह्मचर्य को भंग करता है?

ब्रह्मचर्य का स्थान मनुष्य के अंदर है, बाहर नहीं। बाहर की कोई भी स्थिति, प्रस्थिति, वस्तु, या स्थान एक संन्यासी एक ब्रह्मचारी को भंग नहीं कर सकते। जब तक वह स्वयं अंदर से भंग ना हो। मैंने तो उस स्त्री को केवल एक असहाय मानव के रूप में देखा। उसकी सहायता की और आगे चल पड़ा। सन्यासी जीवन में तो काम, क्रोध, मद, मोह किसी के लिए भी स्थान नहीं है। ब्रह्मचर्य का अर्थ ब्रह्म जैसा आचरण होता है। सन्यासी का अर्थ हर प्रकार के बंधन से मुक्ति होता है।”

वृद्ध सन्यासी और क्षमा याचना

यह सब सुन, बड़े सन्यासी हाथ जोड़कर छोटे सन्यासी से कहने लगे, “मुझे क्षमा कीजिए सन्यासी जी, आप आयु में मुझसे छोटे हैं, परंतु ज्ञान में मुझे बहुत ही बड़े हैं। मुझसे अपराध हुआ है।” तब छोटे संन्यासी ने कहा, “आपने सीख ले ली यह पर्याप्त है। बाकी अब आप मुझे, आपकी सेवा करने दें। यहां यही मेरा धर्म कहता है और दोनों मुस्कुराने लगे।

कहानी की सीख 

इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है की, मनुष्य बाहर की बुराइयों से तभी आकर्षित हो सकता है, जब उसके अंदर में उन बुराइयों के लिए स्थान हो। यदि मनुष्य अपने आप को अंदर से निर्मल कर ले, तो बाहर की बुराइयां उसे दूषित नहीं कर सकती।

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