हितोपदेश -पक्षी और बंदरों की कहानी

पक्षी और बंदरों की कहानी

हितोपदेश की पक्षी और बंदरों की कहानी एक आज के परिदृश्य में प्रासांगिक है जहाँ दुष्ट अच्छी बातों का भी बुरा मान लेते हैं। नर्मदा के तीर पर एक बड़ा सेमर का वृक्ष है। उस पर पक्षी घोंसला बनाकर उसके भीतर, सुख से रहा करते थे। फिर एक दिन आसमान में काले बादल छाए। उसके बाद मूसलाधार बारिश हुई। बारिश से बचने के लिए बंदरों का झुण्ड पेड़ के नीचे आया। उसी पेड़ पर पक्षियों का परिवार रहता था। उन भीगे और ठण्ड से कांपते बंदरों को देख पक्षियों को दया आयी।

पक्षियों की दया

पक्षियों ने दया से कहा – अरे भाई बंदरों सुनो

अस्माभिर्निमिता नीडाश्चंचुमात्राहृतैस्तृणै:।
हस्तपादादिसंयुक्ता यूयं किमिति सीदथ ?

हमने केवल अपनी चोंचों की मदद से इकट्ठा किये हुए तिनकों से घोंसले बनाये हैं और तुम तो हाथ, पाँव आदि से युक्त हो कर भी ऐसा दुख क्यों भोग रहे हो ?

झुंझलाये बन्दर

यह सुन कर बदरं झुंझला गए। उन्होने आपस में विचार किया कि घोसलों में आराम से रह कर ये हमारा मजाक उड़ा रहे हैं। इन्हे सबक सिखाया जाए। बंदरों ने पक्षियों के घोसलों पर हमला कर दिया। पक्षी किसी तरह जान बचाकर उड़ पाए। बंदरों ने सारे घोसलों को तहस नहस कर दिया। पक्षियों के अंडे फुट गए। बारिश भी बंद हो गयी थी। बन्दरों का समूह अपनी दुष्टता पर खुश हो कर चला गया। पक्षी आज बिना घोसले के थे। फिर से तिनका तिनका जोड़ कर घोसला बनाने की तैयारी में पक्षी का परिवार निकल गया।

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