क्या सच में राजा दशरथ ने अपनी बेटी (Raja Dasrath ki Putri Shanta) को त्याग दिया था?
राजा दशरथ पुत्री शांता (Raja Dasrath ki Putri Shanta) की कहानी। यह बात है त्रेता युग की। तब प्रभु श्री राम मनुष्य रूप में अवतरित नहीं हुए थे। उनके पिता राजा दशरथ अयोध्या में राज्य करते थे। महाराज दशरथ वेदों के ज्ञाता, दूरदर्शी महान, तेजस्वी राजा थे। वे इक्ष्वाकु वंश के अतिरथी थे। अतिरथी वह योद्धा होते हैं, जो एक साथ दस हज़ार महारथियों के साथ अकेले युद्ध करने में समर्थ होते हैं। राजा दशरथ के राज्य का वैभव एवं प्रतिष्ठा दूर-दूर तक फैली थी। धर्म, अर्थ एवं सारी सुविधाओं से पूर्ण राज्य अयोध्या के नागरिक सुखपूर्वक अपना जीवन यापन करते थे।
कौन थे अंगराज रोमपाद?
महाराज दशरथ के अनन्य मित्र थे, अंग देश के राजा रोमपाद। महाराज दशरथ एवं अंगराज रोमपाद बाल्यकाल के मित्र थे। रोमपाद अंगराज बृहद्रथ के पुत्र थे। बृहद्रथ के वृद्ध हो जाने के बाद रोमपाद अंग प्रदेश के राजा बने। परंतु, रोमपाद अंगराज बृहद्रथ के औरस पुत्र (प्रकृत पुत्र / जैविक पुत्र) नही थे। अंगराज ने रोमपाद को गोद लिया था। रोमपाद यदुवंशी राजा विदर्भ के पुत्र थे। राजा विदर्भ एवं राजा बृहद्रथ अनन्य मित्र थे। राजा विदर्भ के अनेक पुत्र थे परंतु अंगराज बृहद्रथ के एक भी नही। तब अंग प्रदेश के राजा बृहद्रथ ने राजा विदर्भ से उनके पुत्र रोमपाद को गोद ले लिया। इस तरह रोमपाद बृहद्रथ के दत्तक पुत्र हुए।
दशरथ पुत्री शांता का जन्म (Raja Dasrath ki Putri Shanta)
अंगराज रोमपाद का विवाह राजकुमारी वृष्नी से हुआ था। अंगराज रोमपाद को बहुत समय तक संतान प्राप्ति नही हुई। उन्हें यह भय सताने लगा कि कहीं उनकी भी संतान नही हुई तब क्या होगा? तब महाराज दशरथ की भी कोई संतान नही थी। परंतु अपने मित्र का मानसिक कष्ट दूर करने हेतु उन्होंने अपने मित्र रोमपाद से कहा, “मित्र! यदि मेरे संतान होने तक तुझे संतान प्राप्ति नही होती है, तब मैं अपनी पहली संतान तुझे दे दूंगा।” राजा दशरथ की पटरानी देवी कौशल्या थी। कुछ वर्ष उपरांत महारानी कौशल्या ने महाराज दशरथ की पुत्री को जन्म दिया। उनकी पुत्री का नाम रखा गया शांता (Raja Dasrath ki Putri Shanta)। बाल्य काल से ही शांता दिव्य लगती थी। उनके माता-पिता उनसे अत्यधिक प्रेम करते थे।
अंगराज रोमपाद ने याद दिलाया राजा दशरथ को उनका वचन
अंगराज रोमपाद को भी इस समाचार का पता चला। अंगराज रोमपाद अपने मित्र से मिलने चले आए। पहले रोमपाद ने बच्ची को आशीर्वाद एवं सप्रेम भेंट दिया। कुछ पहर बाद उन्होंने महाराज दशरथ को उनकी कही बात याद दिलाई। साथ ही विनती की एवं संतानहीनता की व्यथा कही। महारानी कौशल्या जानती थी कि महाराज दशरथ वचन बद्ध हैं। परंतु, महाराज को अपनी पहली संतान से प्रति प्रगाढ़ प्रेम भी था। तब महारानी कौशल्या ने अपनी बात रखी कि, हमारी एक संतान हो चुकी है। आगे भी हमारी और संतान होने की संभावना है। परंतु, अंगराज रोमपाद की एक भी संतान नहीं है। क्या पता उन्हें संतान होने की संभावना है या नहीं? हमारी पुत्री हमारा हृदय है।”
अंगराज की दत्तक पुत्री: देवी शांता
महारानी आगे कहती हैं, “वही दूसरी ओर, अंगराज रोमपाद आपके भ्राता तुल्य है। वे शांता से अत्यंत प्रेम भी करते हैं। यदि हम अपनी पुत्री उन्हें दे दें तो भ्राता तुल्य मित्र का कष्ट दूर हो जाएगा। वहीं हमारी पुत्री को प्रेम पूर्ण माता पिता भी मिलेंगे। अंततः है तो वो हमारी ही पुत्री, उसके लिए जो करना होगा हम वैसे भी करेंगे ही। इन सब से भी अधिक आवश्यक आपका वचन और मान भी बना रहेगा।” महारानी कौशल्या की बात सुन कर, राजा दशरथ ने अपनी पुत्री शांता अंगराज रोमपाद को पुत्री स्वरूप में सौंप दिया। शांता को पुत्री रूप में पाकर अंगराज रोमपाद अति प्रसन्न हुए। आगे उन्होंने ने ही देवी शांता का विवाह आदि संस्कार किए। राजा दशरथ ने अपनी पुत्री शांता को त्यागा नही था। अपितु, अपने अनन्य मित्र रोमपाद (जो संतानहीन थे) को पुत्री रूप में दिया था।