अभिमन्यु वध (Abhimanyu Vadh): अधर्म की पराकाष्ठा

अभिमन्यु वध (Abhimanyu Vadh): अधर्म की पराकाष्ठा

अभिमन्यु वध (Abhimanyu Vadh) महाभारत में अधर्म की पराकाष्ठा का उदाहरण है। महाभारत युद्ध के 13 वें दिन कि बात है। युद्धिष्ठिर को चक्रव्यूह में फंसा कर बंदी बनाने की मंशा से कौरवों ने अर्जुन को दक्षिण की ओर युद्ध मे फंसा रखा था। युद्ध के नियम के अनुसार, यदि कोई योद्धा किसी योद्धा से युद्ध करते समय, बीच में युद्ध छोड़ कर भाग जाता है तो उसे हारा हुआ माना जायगा। इस कारण से अर्जुन दक्षिण की ओर ही युद्ध कर रहे थे। समय की गंभीरता को समझते हुए द्रोणाचार्य द्वारा चक्रव्यूह की रचना की गई।

यह चक्रव्यूह पांडव सेना की अत्याधिक क्षति तथा युधिष्ठिर को बंदी बनाने हेतु आगे बढ़ रहा था। चक्रव्यूह का दूसरा नाम पद्मव्यूह है। इसको भेदना अति गोपनीय है। युधिष्ठिर को चक्रव्यूह भेदना नही आता था। यदि वह इस चक्रव्यूह में आते है तो निश्चित ही बंदी बनते और पीछे हटते तो उनकी हार मानी जाती।

कौन कौन चक्रव्यूह भेदना जानता था?

महाभारत काल में, चक्रव्यूह भेदने एवं उससे बाहर निकलने का पुर्ण ज्ञान केवल श्री कृष्ण, अर्जुन, द्रोणाचार्य एवं प्रद्युम्न (श्री कृष्ण के पुत्र) को था। इनके अलावा केवल अभिमन्यु ही ऐसे थे जो चक्रव्यूह में प्रवेश करना जानता थे। अपनी माता के गर्भ में रहते हुए तेजस्वी अभिमन्यु ने चक्रव्यूह भेदना सीखा था। जब अर्जुन, अपनी गर्भवती पत्नी सुभद्रा को चक्रव्यूह भेदना समझा रहे थे। परंतु, माता के बीच मे सो जाने के कारण, अभिमन्यु पूर्ण ज्ञान नही ले सके। चक्रव्यूह भेदना तो सीख लिया परंतु बाहर निकलना नही सीख पाए। अर्जुन एवं सुभद्रा पुत्र अभिमन्यु एक कुशल योद्धा थे। अभिमन्यु को रौद्रधारी भी कहा जाता है, क्योंकि वह रौद्र नामक धनुष को धारण करते थे। यह धनुष उन्हें उनके जेष्ठ मामा बलराम से प्राप्त हुआ था। मूल रूप से यह धनुष महादेव का है। महादेव ने यह धनुष बलराम जी को दिया था।

अभिमन्यु को क्यों जाना पड़ा चक्रव्यूह (Abhimanyu Vadh) में?

अपनी वीरता एवं दृढ़ता का परिचय देते हुए वीर अभिमन्यु ने महाराज युधिष्ठिर से चक्रव्यूह भेदने की आज्ञा मांगी। युधिष्ठिर ने अभिमन्यु को आज्ञा नहीं दी। परंतु, दृढ़ एवं विवेकी अभिमन्यु, यह जानते थे की उसके अलावा वहां उपस्थित योद्धाओं में से कोई भी चक्रव्यूह को भेदना नहीं जानता था। वह यह भी जानते थे की, यदि युधिष्ठिर इस चक्रव्यूह में गए तो उनका बंदी बनना तय है। साथ ही, धर्म युद्ध यहीं पर समाप्त हो जाएगा। धर्म की हार होगी और अधर्म की जीत होजायगी। कौरवों की कुटिलता एवं समय की गंभीरता को समझते हुए, अभिमन्यु ने आप ही चक्रव्यूह में जाने का निर्णय लिया। उसके निर्णय के आगे युधिष्ठिर भी हार गए।

अभिमन्यु ने चक्रव्यूह में क्या किया?

जब अभिमन्यु व्यूह में घुसे, जयद्रथ ने व्यूह का द्वार बंद कर दिया। वहीं युधिष्ठिर, भीम, नकुल, सहदेव, अपने ससुर द्रुपद के साथ चक्रव्यूह में घुसने का प्रयास करते रह गए। परंतु व्यर्थ। व्यूह के बाहर, उन्हें जयद्रथ जैसे कौरव पक्ष के योद्धाओं से युद्ध भी करना पड़ रहा था। जब रौद्रधारी अभिमन्यु ने चक्रव्यूह को भेदना शुरू किया, तब उसने किसी की प्रतीक्षा नही की। वीर सुभद्रा नंदन एक के बाद एक घेरे भेदते गए। रास्ते में आ रही कौरव सैना को ऐसे छलनी कर रहे थे, मानो कोई माली घास काट रहा हो। अभिमन्यु युद्ध मे एक छोटे से बालक थे, परंतु अतिश्रेष्ठ योद्धा। छठे घेरे को पार करते-करते अभिमन्यु ने रुक्मार्थ, बृहदबाला, लक्ष्मण (दुर्योधन का पुत्र), छह परामर्शदाताओं, कर्ण के सात पालक भाइयों, शल्य के पुत्र, सहित कई योद्धाओं को मार डाला।

वीर अभिमन्यु (Abhimanyu Vadh) पर किस किसने हमला किया ?

यह सब देख कौरव पक्ष विचलित हो उठा। वीर अभिमन्यु से कौरव पक्ष के योद्धा एकल युद्ध करने में अक्षम प्रतीत हो रहे थे। दुर्योधन पुत्र हानि से क्रोधित, किसी भी मूल्य पर अभिमन्यु की मृत्यु चाहता था। उसने द्रोणाचार्य से अभिमन्यु पर मिल कर हमला करने का आदेश दिया। महाभारत के युद्ध में, जो पक्ष अधर्म का प्रतीक था। उसने अपना परिचय देते हुए अधर्म की पराकाष्ठा दिखलाइए। युद्ध के नियमों को तोड़ते हुए वीर योद्धा अभिमन्यु को बहुत सारे योद्धाओं ने मिल कर छति पहुंचाई। वीर बालक अभिमन्यु पर द्रोणाचार्य, दुशासन, अश्वत्थामा, कर्ण, शकुनि, दुर्योधन, कृपाचार्य, कृतवर्मा, वृषभसेन और द्रुमसेना द्वारा हमला किया गया था। सारे योद्धा मिलकर इतनी वेग से अभिमन्यु के रथ पर हमला कर रहे थे की, अभिमन्यु का रथ टूट गया। परंतु, अभिमन्यु ने हार नहीं मानी।

अधर्मियों के अधर्म की पराकाष्ठा

वह धरती पर खड़े होकर भी युद्ध करते रहे। उसकी ढाल मार के गिरा दी गई। तब उन्होंने रथ का पहिया हाथ में उठाकर उसे ढाल बनाकर युद्ध किया। इसी बीच जयद्रथ ने, पीछे से महान योद्धा अभिमन्यु की पीठ पर भाले से प्रहार किया। भाला वीर अभिमन्यु के शरीर को भेदता हुआ बाहर निकल गया। फिर एक के बाद एक कौरव पक्ष के योद्धाओं ने अभिमन्यु पर बार-बार वार किया। सुभद्रा नंदन अभिमन्यु वीरगति को प्राप्त हो गए। साथ ही उन पर वार करने वाले कौरव पक्ष के सभी योद्धा निम्न प्रतीत हुए। जब अर्जुन चक्रव्यूह को भेदते हुए अंदर पहुंचे तो अपने पुत्र की यह अवस्था वो सहन नही कर पाए। तभी अर्जुन ने जयद्रथ वध की शपथ ली थी।

निष्कर्ष

महाभारत के युद्ध मे बहुत से महान योद्धाओं ने युद्ध लड़ा परंतु जो शौर्य, साहस एवं क्षमता वीर अभिमन्यु की थी। वह किसी और कि नही। सुभद्रा नंदन देवी द्रौपदी के प्रिय पुत्र अभिमन्यु अमर हैं। अभिमन्यु की वीरता सदैव प्रेरणादायक रही है।

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