बाबा गोरखनाथ कैसे प्रकट हुए (Baba Gorakhnath Ki Kahani.)?

बाबा गोरखनाथ कैसे प्रकट हुए (Baba Gorakhnath Ki Kahani)?

बाबा गोरखनाथ (Baba Gorakhnath Ki Kahani) कैसे प्रकट हुए इसकी कहानी भारतीय संतों की सिद्धियों को दिखाती है। बहुत समय पहले की बात है। बाबा मत्स्येंद्र नाथ भ्रमण पर निकले थे। उन्हें बाबा मछिंद्रनाथ नाथ के भी नाम से जाना जाता है। पूर्व काल के बड़े ही प्रसिद्ध एवं दिव्य योगी हैं। बाबा मछिंद्रनाथ ने ही नाथ संप्रदाय की स्थापना की थी। भ्रमण करते हुए बाबा गोदावरी नदी के किनारे बसे चंद्रगिरी नगर में जा पहुंचे। उस नगर में चलते हुए वह एक घर के सामने रुक गए। उस घर के द्वार खुले हुए थे। बाबा ने वहां खड़े होकर गृहस्तों को भोजन हेतु स्वर लगाए। तभी अंदर से एक महिला निकल कर बाहर आई बाबा को देखते ही उन्हें प्रणाम किया और भोजन लाने अंदर चली गई।

पुत्र का वरदान (Baba Gorakhnath Ki Kahani)

जब महिला भोजन लेकर आई तब उसके मुख पर प्रसन्नता नहीं थी। उसने आकर बाबा के पात्र में भोजन रख दिया। उसके मुख की उदासी देखकर बाबा समझ तो गए थे कि उसके दुखों का कारण क्या है? परंतु, वह उस महिला से उसकी इच्छा जानना चाहते थे। बाबा मत्सेन्द्र नाथ ने उस महिला से उसकी उदासी का कारण पूछा। महिला ने अश्रुपूरित आंखों के साथ बाबा से कहा, “बाबा! मैं निःसंतान हूं। बाबा ने विभूति देते हुए उस महिला से कहा, “देवी यह विभूति खा लेना। निःसंदेह आपके घर पुत्र पैदा होगा। यह बोलकर बाबा वहां से चले गए।

महिला ने अवसर चुका

अब महिला विचार में पड़ गई कि उसे यह विभूति खानी चाहिए या नहीं खानी चाहिए। एक तो लोक लाज की बात भी थी। दूसरा, आसपास की महिलाओं ने भी उस महिला को विभूति नहीं खाने की सलाह दी थी। सारी बातें सोचने सुनने के बाद उस महिला ने विभूति को नहीं खाने का निर्णय लिया। उस नगर में एक स्थान था, जहां वर्षों से लोग गोबर जमा करते थे। फिर बाद में उस गोबर को खेती में उपयोग करते थे। उसी गोबर के टीले पर जाकर उसने उस विभूति को फेंक दिया।

बाबा मत्सेन्द्र नाथ फिर आए

13 वर्षों के बाद बाबा उस नगर में वापस आए। नगर आने के बाद वह उस महिला के द्वार पर पहुंचे और स्वर लगाया। जब महिला द्वारा पर बाहर निकली तो बाबा ने उसे उसके संतान के बारे में पूछा। महिला ने बाबा को बताया कि उसे कोई संतान हुई ही। बाबा ने उस महिला से सच बताने को कहा क्योंकि वह विभूति अभिमंत्रित थी। ऐसा हो ही नहीं सकता कि उसे संतान की उत्पत्ति ना हुई हो। घबराई हुई उस महिला ने धीरे-धीरे बाबा को पूरी सच्चाई बता दी। बाबा ने महिला से कहा, “ठीक है! तुम मुझे उसे गोबर के टीले के पास ले चलो। क्या वहां अभी भी गोबर का टीला है? महिला ने उत्तर देते हुए कहा, “हां बाबा! सालों से वहां हम लोग गोबर जमा करते हैं।” महिला बाबा को गोबर के टीले के पास ले गई।

अलख निरंजन (Baba Gorakhnath Ki Kahani)

वहां पहुंच कर बाबा ने जोर से स्वर लगाया, “अलख निरंजन”। बाबा के स्वर लगाने के कुछ समय बाद गोबर के टीले के बहुत अंदर से एक बालक निकला। महिला और गांव वाले गोबर के अंदर से निकले बालक को देखकर अचंभित रह गए। वह बालक लगभग 12 वर्षों का था। जब बाबा उस बालक को लेकर जाने लगे तब महिला ने बाबा से माफी मांगी और उस बालक को उसे देने को कहा। बाबा ने महिला को मना करते हुए बोला कि, “अब वह इस बालक के प्रति अधिकार नहीं रखती हैं। अब बालक का पालन पोषण शिक्षा दीक्षा बाबा स्वयं करेंगे। 12 वर्षों तक गोबर में रक्षित रहने के कारण इस बालक का नाम गोरक्ष पड़ा। ये बालक बड़े होकर बाबा गोरक्षनाथ एवं बाबा गोरखनाथ (Baba Gorakhnath Ki Kahani) के नाम से प्रसिद्ध हुए।

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