आधी रात को सुनसान में भूतों के बीच फंसा डिलीवरी ब्वाय (Bhoot aur Delivery Boy)
भूतों के बीच फंसे डिलीवरी ब्वाय (Bhoot aur Delivery Boy) की कहानी हैरान करने वाली है। जयपुर में एक खानदानी मिठाई की दुकान थी। इनकी चौथी पीढ़ी अब मिठाई के बिजनेस में उतर रही थी। मालिक की बेटी अब बिज़नेस टेक ओवर कर रही थी। ओनर की बेटी ने अपने पिता और दादा से कहा कि हम अपनी दुकान को ऑनलाइन करते हैं। साथ ही डिलीवरी ब्वाय भी बहाल करते हैं। बेटी की बात सुनकर, पापा और दादा ने काफी विचार विमर्श किया। आखिरकार, वे मान गए। यह आइडिया बहुत ही अच्छे से चल पड़ा। उन्हें दुकान में हर दिन डिलीवरी के लिए 30-40 आर्डर मिलने लगे।
लड्डू का आर्डर (Bhoot aur Delivery Boy)
एक दिन उनकी दुकान पर 25 किलो लड्डू का आर्डर आता है। शर्त यह थी की डिलीवरी रात के 2:30 बजे होनी चाहिए। दुकान के मैनेजर ने कहा की 5 किमी से दूर और नाइट डिलीवरी के लिए एक्स्ट्रा चार्जेस लगते हैं। साथ ही आपको पहले ऑनलाइन पैसे जमा करने होंगे, तभी यहां से आर्डर निकलेगा। यह सुन कर ऑर्डर देने वाले ने बात मान ली और बिल के अनुसार पैसे जमा कर दिए। फिर क्या था? 25 किलो लड्डू का आर्डर पैक हो गया। डिलीवरी ब्वाय सोहनलाल को यह ड्यूटी मिली। रात को दो बजे, सोहनलाल 25 किलो लड्डू का आर्डर लेकर जयपुर के बाहरी इलाके में डिलीवरी के लिए निकल पड़ा।
रात की डिलीवरी और भूत
ठीक 2:30 बजे रात को वह पते पर पहुंच गया। परंतु, यह क्या? यहां पर एक झोपड़ी के अलावा कुछ भी नहीं था। दूर–दूर पर बस पेड़ थे। ना कोई आदमी, ना कोई गाड़ी, ना कोई घर, ना कोई पार्टी, कुछ भी नहीं। उस लोकेशन पर केवल एक झोपड़ी थी। सोहनलाल अपनी बाइक लगाकर लोकेशन पर खड़ा हो गया। झोपड़ी की ओर देखने लगा तो पाया कि उस झोपड़ी पर दरवाजा तक नहीं था। झोपड़ी के दरवाजे की जगह पर बोरे की चादर लटक रही थी।
तभी उस बोरे की चादर को हटाकर, एक लंबा चौड़ा आदमी बाहर निकाला। उस आदमी ने सोहन लाल से पूछा “आप ही सोहनलाल है? जो लड्डू की डिलीवरी करने आए हैं?” सोहन लाल ने हामी भरते हुए, लड्डू निकाले। “यह रहे आपके लड्डू” कहकर सोहनलाल ने 25 किलो लड्डू उस आदमी को दे दिए। उस आदमी ने लड्डू लेकर, सोहन लाल को ₹5000 की टिप दी। यह देखकर सोहनलाल हैरान रह गया। परंतु कुछ कहता इससे पहले वह आदमी लड्डू लेकर झोपड़ी के अंदर चला गया। सोहनलाल भी अपनी ने भी अपनी बाइक स्टार्ट की और चल पड़ा।
सोहनलाल और टिप
रास्ते भर सोहनलाल यही सोचता रहा कि “आखिर झोपड़ी में रहने वाले आदमी ने उसे टिप में ₹5000 कैसे दिए? जबकि आमिर से अमीर लोग के यहां जब वह डिलीवरी करने जाता है। तब उसे कोई ₹5 नहीं देता।” फिर उसके मन मे ये विचार भी आने लगे कि “यह झोपड़ी में रहने वाला आदमी 25 किलो लड्डू का करेगा क्या? आखिर इतनी देर रात को 2:30 बजे ही क्यों डिलीवरी मांगी?” यह सब बातें उसके मन में चल रही थी। लेकिन उसे इस बात की खुशी भी थी कि उसे टिप में ₹5000 मिले हैं। खुशी–खुशी वह अपने घर चला गया।
डिलीवरी रात 2:30 बजे
अगले दिन फिर से 25 किलो लड्डू का ऑर्डर उसी आदमी ने उसी पते पर दिया। फिर से शर्त यही थी कि डिलीवरी रात को 2:30 बजे होगी। फिर से सोहन लाल की ही ड्यूटी लगी। रात के 2:30बजे, सोहनलाल फिर से 25 किलो लड्डू अपनी बाइक पर बांधे उसी झोपड़ी के पास पहुंच गया। अपनी बाइक को स्टैंड पर लगाकर खड़ा कर दिया। वही आदमी झोपड़ी से निकला। लड्डू ले कर, सोहन लाल को ₹5000 का टिप देकर अंदर चला गया।
सोहनलाल की उत्सुकता (Bhoot aur Delivery Boy)
सोहनलाल यह जानने के लिए बड़ा ही उत्सुक हो जाता है कि “आखिर वह इस लड्डू का करेगा क्या? और आखिर उसके झोपड़ी में कौन लोग बैठे हुए हैं?” परंतु उसे झोपड़ी में झांकने की हिम्मत नहीं हो रही थी। उसे लगा वह इतना लंबा चौड़ा आदमी है, कहीं गुस्सा हो गया तो दो–चार हाथ में ही उसका मुंह नाक बराबर कर देगा।
वह यह सब सोच ही रहा था कि, तब तक वह आदमी फिर से बाहर निकल आया। उसने सोहनलाल से पूछा, “क्या हुआ भाई? अभी तक गए नहीं?” सोहनलाल ने घबरा कर कहा, “जी मुझे बहुत जोर से वाशरूम जाने की इच्छा हो रही है। परंतु यहां आस–पास में तो कोई वाशरूम नहीं है। क्या मैं आपके वाशरूम में जा सकता हूं?” उस आदमी ने गर्मजोशी से मुस्कुराते हुए कहा, “हां! हां! क्यों नहीं? आओ मेरे घर।” यह कह कर, जोर से सोहनलाल की कलाई को पकड़ा और उसे खींचता हुआ झोपड़ी के अंदर ले गया। इतने में ही सोहनलाल डर गया। उसे तो अंदाज़ा ही नही था कि अभी वो कितनी आत्माओं से मिलने वाला है। जैसे ही झोपड़ी के अंदर पहुंचा, उसकी आंखें फटी की फटी रह गई।
भूतों से भेंट (Bhoot Ki Kahani)
वह देखता है कि, वहां एक आलीशान पार्टी चल रही है। जिसमें हजारों लोग बैठकर खा रहे हैं। परंतु वह सारे लोग जख्मी है। किसी का सर फटा है, किसी को गोली लगी है, किसी के मुंह से झाग गिर रहा है, कोई जला हुआ है, कुछ तो बहुत ही वीभत्स स्थिति में है। परंतु कोई उसे नहीं देख रहा है। सब अपना भोजन कर रहे हैं। सोहनलाल सोहन लाल का हाथ पकड़ कर वह आदमी 40-50 कदम चल चुका था। अब तीन–चार कदम सीढ़ियां चढ़ रहा है। पसीने से लथपथ सोहन लाल (Bhoot aur Delivery Boy) की सांसे डर से चढ़ जाती हैं। सीढियां चढ़कर, वह आदमी सोहनलाल से कहता है “यह रहा आपका वॉशरूम” और वहां से चला जाता है। सोहन लाल जल्दी से दरवाजा बंद कर लेता है।
डरा सोहन लाल और आत्माएं (Bhoot aur Delivery Boy)
उसके चेहरे की हवाइयां उड़ी जाती हैं। वह सोचने लगता है कि, “इतनी छोटी सी झोपड़ी के अंदर यह हज़ारो लोगों की दावत कैसे चल सकती है? क्या भूतों के बीच फंस गया हूँ? इतने मृत लोग बैठ कर यहाँ भोजन कर रहें हैं। मैं यहाँ से आखिर कैसे भागूं? डर के मारे पसीने से भरा हुआ सोहनलाल ने सोचा कि, मैं वाशरूम का दरवाजा खोलूंगा और सीधा दौड़ना शुरू कर दूंगा। ना दाएं देखूंगा, ना बाएं देखूंगा।
हिम्मत जमा करके, भगवान का नाम लेकर, सोहनलाल दरवाजा खोलकर दौड़ना शुरू करता देता है। यह क्या? दो कदम दौड़ कर ही वह सीधा अपने बाइक से टकरा जाता है। अब उस अंधेरी सन्नाटेदार रात में वहां कोई झोपड़ी भी नहीं थी। सोहनलाल जैसे–तैसे अपनी बाइक को स्टार्ट करता है और भागता है। वह सही सलामत घर तो पहुंच जाता है, परंतु डर के मारे बीमार हो जाता है। बाद में वह उस नौकरी को भी छोड़ देता है।
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