भूतिया हवेली (Bhutia Haveli)
22 वर्षीय अनिरुद्ध, अपनी बड़ी बहन दीप्ति और जीजा अविनाश से मिलने नैनीताल जा रहा था। दीप्ति की शादी हाल ही में हुई थी और अनिरुद्ध उनसे पहली बार मिलने जा रहा था। काठगोदाम में ट्रेन 4 घंटे लेट होने के कारण, रात हो गयी थी। स्टेशन से दीप्ति का गाँव 7 किलोमीटर दूर था। अविनाश काम में व्यस्त थे, इसलिए रात में अकेले आना अनिरुद्ध के लिए मजबूरी थी। डर और थकान से घिरे अनिरुद्ध ने पैदल चलना शुरू किया। कुछ दूर चलने पर, उसे एक भव्य हवेली दिखी। अंधेरी रात में वो हवेली और भी रहस्यमयी लग रही थी।
अनिरुद्ध और थकान
हवेली के विशाल दरवाजे खोलते ही, एक ठंडी हवा ने उसे अंदर खींच लिया। अंदर का माहौल अजीब था। धूल से ढकी हुई भव्य फर्नीचर, मकड़ी के जाले, और एक अजीब सी शांति। अनिरुद्ध डर रहा था, पर थकान और रात के अंधेरे ने उसे रुकने पर मजबूर कर दिया। वह एक कमरे में जाकर सो गया। आधी रात में, अजीब सी आवाजें और ठंडी हवाओं ने उसकी नींद खोल दी। डरते हुए, उसने कमरे से बाहर झाँका। धुंधली रोशनी में, उसने कुछ आकृतियां देखीं। डर से उसकी सांसें थम गयीं। वो आकृतियां इंसानों जैसी लग रही थीं, पर पारदर्शी थीं। धीरे-धीरे, अनिरुद्ध को एहसास हुआ कि वो भूतों से घिरा हुआ था।
घूमते भूत और अनिरुद्ध (Bhutia Haveli)
भूत इधर-उधर घूम रहे थे, बातें कर रहे थे, हंस रहे थे। अनिरुद्ध डर के मारे कांप रहा था। वो चाहता था कि वो वहां से भाग जाए, पर डर ने उसे जकड़ रखा था। अचानक, एक भूतिया महिला अनिरुद्ध के पास आई। उसकी आँखें लाल थीं और उसके बाल खुले थे। उसने एक भयानक आवाज में कहा, “तुम यहाँ क्या कर रहे हो? यह हमारा घर है। आज नहीं छोडूंगी तुम्हे !” अनिरुद्ध ने हिम्मत जुटाकर कहा, “मैं एक राहगीर हूँ। रास्ता भटक गया था। सुबह होते ही मैं चले जाऊँगा।” भूतिया महिला हंसी और बोली, “कोई यहाँ से जिंदा नहीं जाता!”
यह सुनकर अनिरुद्ध की रूह कांप गयी। अनिरुद्ध हाथ जोड़ कर उस डरावनी शक्ल वाली महिला से हाथ जोड़ कर बार बार वहां आने के लिए माफ़ी मांग रहा था। अचानक उसका ध्यान बैग में रखे हनुमान जी की तस्वीर और हनुमान चालीसा पर पड़ा। पता नहीं अचानक उसके शरीर में इतना बल कहाँ से आया उसने जोर से चिल्लाते हुए हनुमान चालीसा पढ़ना शुरू कर दिया। एक विचित्र शक्ति की उसे अनुभूति हो रही थी। उसने अपने छोटे बैग को हाथ में किया और भागना शुरू कर दिया। वो तेज़ी से दौड़ता रहा, पीछे मुड़कर देखने की हिम्मत नहीं थी। कुछ भूत उसके पीछे दौड़ रहे थे।
मंदिर की घंटी
अचानक, अनिरुद्ध के पैर फिसल गए और वो गिर गया। गिरते के साथ ही उसका बैग जिसमें हनुमान जी की तस्वीर थी दूर जा गिरा। और हनुमान चालीसा पढ़ना बंद हो गया। वो कराह रहा था। एक भूत ने उस पर झपट्टा मारा। इसी बीच मंदिर की घंटी जोर से बजी जिसकी आवाज़ यहाँ तक आ रही थी। सुबह होने वाली थी और ये हनुमान जी की आरती का समय था। अब भूत गायब हो गए। अनिरुद्ध गंभीर रूप से घायल था, पर जिंदा था। ग्रामीणों ने अनिरुद्ध को घायल अवस्था में देखा। उन्होंने उसे तुरंत अपने घर ले जाकर उपचार किया। दीप्ति और अविनाश को जब अनिरुद्ध के बारे में पता चला, तो वे बहुत चिंतित हो गए।
कुछ दिनों बाद, अनिरुद्ध ठीक हो गया। उसने ग्रामीणों को पूरी घटना बताई। ग्रामीणों ने उसे बताया कि वो हवेली (Bhutia Haveli) सालों से भूतिया रही है। कई लोग वहां गायब हो चुके हैं। यह सुनकर अनिरुद्ध को अपनी गलती का एहसास हुआ। उसे पछतावा हुआ कि उसने रात में अकेले हवेली में आश्रय लिया। इस घटना ने अनिरुद्ध को जीवन के महत्व का एहसास दिलाया। उसने सीखा कि हमें कभी भी डर के आगे नहीं झुकना चाहिए और हमेशा सतर्क रहना चाहिए। कुछ दिनों बाद, अनिरुद्ध अपनी बहन और जीजा के साथ वापस दिल्ली लौट आया। वो कभी भी नैनीताल की उस भयानक रात को नहीं भूलेगा।
कहानी की सीख
- अंधेरी रात में अकेले सफर नहीं करना चाहिए।
- अजनबी जगहों पर आश्रय नहीं लेना चाहिए।
- डर के सामने हमें हार नहीं माननी चाहिए।
- हमें सदैव सतर्क रहना चाहिए और जीवन का महत्व समझना चाहिए।
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