बुद्धिमती लीलावती (Buddhimati Leelawati)
अगर घर की नारी बुद्धिमती लीलावती (Buddhimati Leelawati) जैसी हो तो हर घर खुशहाल होगा। यूपी के गंगापुर गांव में मोहनदास अपनी पत्नी लीलावती के साथ रहता था। मोहनदास के पास खेती के लिए एक जोड़ा बैल था। वह अपने जोड़े बैल से खेती करता और अच्छी फसल उगा लेता था। उसके जोड़े बैल का नाम हीरा मोती (हीरा मोती की कहानी) था। उसकी पत्नी लीलावती भी अपने घर का काम कर मोहनदास को खेती में मदद करती थी। लीलावती बड़ी बुद्धिमती थी। वह अपने पति का घाटा नहीं होने देती थी। अपितु, सदैव फायदा ही करवाती थी। ये किसान पति पत्नी अपनी फसल को बैल गाड़ी में रख कर बाजार में बेचने भी जाते थे। इनका परिवार एक सुखी किसान परिवार था।
गायब हो गया मोती
एक बार की बात है। हर शाम की तरह गांव के सभी मवेशी चर कर आ रहे थे। परंतु, इस शाम मोहनदास का एक बैल रंभाता हुआ आ रहा था। गांव के सभी लोग सोचने लगे, “आखिर एक बैल इतना रंभा क्यों रहा है?” तब पता चला कि, मोहनदास का एक बैल ‘मोती’ गायब हो गया है। मोहनदास ओर लीलावती के साथ गांव के लोगों ने मोती को ढूंढने का बहुत प्रयास किया। शाम से रात्रि हो गई। परंतु, बैल कहीं मिला नहीं। मोहनदास एवं उसकी पत्नी बहुत दुखी थे। फिर भी लीलावती ने भोजन पकाया और अपने परिवार को समझा बुझा कर खिलाया।
लीलावती (Buddhimati Leelawati) को ख्याल आया
खाने के बाद लीलावती रात के बर्तन धो रही थी। परंतु, ध्यान उसका बैल पर ही था। गंगापुर के पास ही, हर साल मवेशियों का बड़ा मेला लगता था। अचानक से लीलावती के मन में ख्याल आया कि, ‘कहीं किसी चोर ने मेले में बेचने के लिए उसके बैल को तो नही चुरा लिया’। बर्तन छोड़, हाथ-पांव धोकर, वह जल्दी से अपने पति के पास पहुंची। लीलावती अपने पति से कहने लगी, “सुनते हो! मुझे लगता है, चोर ने हमारे बैल को मेले में बचने के लिए चुराया है। परसों से तो मेला शुरू हो ही रहा है। वही जाकर हम अपने मोती को ढूंढ लेंगे।” दुखी मोहन लाल कहता है, इतने मवेशियों में से हम अपने मोती को कैसे पहचानेंगे?
मेले में पहुंचे दोनो पति पत्नी
हिम्मती लीलावती अपने पती से कहती है, “इतने दिनों से हम अपने मोती की सेवा कर रहे हैं। हमें नहीं पता हमारा मोती कैसा दिखता है? एक मां अपने जुड़वा बच्चों में से पता कर लेती है कि, कौन सा वाला कौन सा है? तो हम अपने मोती को नहीं ढूंढ सकते? फिर, मोती भी तो हमारी प्रतीक्षा कर रहा होगा। वह भी हमे पहचान लेगा।” जैसे ही मेले का दिन आया। दोनों पति-पत्नी मवेशी मेले में पहुंच गए और वहां एक-एक मवेशी को देखने लगे। दोपहर के दो बज चुके थे। अभी तक उन्हें अपना मोती नहीं दिखा था। मोहन लाल अपना धैर्य खो रहा था। उसने अपनी पत्नी से कहा, “लीला मुझे नहीं लगता कि अब हमें हमारा मोती मिलेगा। इतनी देर से हम हर एक मवेशी को देख रहे हैं।
धैर्यवान लीलावती
लीलावती ने धैर्य बंधाते हुए अपने पति से कह रही होती है, “सुनो जी! तुम ऐसे धैर्य मत खो। हमारा मोती हमें अवश्य मिल जाएगा। जैसे ही मोती दिखेगा, हम उसके खरीदार बनाकर जाएंगे। सीधा उसको चोर नही बोलेंगे।” परंतु यह क्या? लीलावती यह कह ही रही थी कि एक बैल के जोर जोर से रंभाने की आवाज़ आने लगी। लीलावती ने नजर उठा कर देखा तो खुशी से पागल हो गई। लीलावती ने कहा, “अरे! अरे! वह रहा अपना मोती।” मोहन लाल ने भी अपने बैल को एक नजर में पहचान लिया। रंभाता हुए मोती इतनी ताकत लगा रहा था, मानो वह अभी अपनी रस्सी तोड़ देगा। लीलावती अपने मोती के पास पहुंच कर उसे पोछने लगती है। पोछते हुए मोती के चेहरे पर अपना आंचल रख देती है।
लीलावती की बुद्धि (Buddhimati Leelawati)
अचानक से मेले में भरी भीड़ के सामने, लीलावती चिल्लाती है, “इसी ने मेरे बैल को चुराया है। यही चोर है। अब जाकर मेरे बैल को मेले में बेच रहा है।” विक्रेता सकपका गया और लीलावती को उल्टा सीधा बोलने लगा। चिल्लम चिल्ली की आवाज सुनकर आसपास में और भी भीड़ जमा हो गई। तब लीलावती ने कहा, “अच्छा! अगर यह तेरा बल है? तो बता! इसकी कौन सी आंख में मोतिया है?” सकपकाए हुए विक्रेता ने कहा, “यह कौन सी बड़ी बात है? मेरा बैल है तो मैं ही नहीं जानूंगा क्या? इसकी दाहिनी आंख में मोतिया है।
घर आया मोती
तब ही लीलावती ने कहा, “सोच कर बताओ! कहीं ऐसा ना हो कि तुमने गलत बता दिया और इस बैल को मैं ले जाऊं!” विक्रेता कहता है, “अरे! लगता है गलती हो गई। उसकी दाहिनी नहीं बाईं आंख में मोतिया है।” तब लीलावती ने भीड़ से कहा, “सुन लिया भाइयों! इसने मेरे बैल को चुराया है। मेरे बैल का नाम मोती है और उसकी किसी आंख में मोतिया नहीं है। यह देख लीजिए।” यह कह कर लीलावती ने अपना आंचल बैल के चेहरे से हटा लिया। चोर को काटो तो खून नहीं। बुद्धिमती लीलावती (Buddhimati Leelawati) और उसका पति अपने बैल मोती को लेकर खुशी-खुशी घर आ गए।