दिल्ली का भुतहा फ्लैट (Delhi Ka Bhutaha Flat)
दिल्ली का भुतहा फ्लैट (Delhi Ka Bhutaha Flat) की कहानी दिल्ली के इर्द गिर्द घूमती है। फरजाना, सकीना, नाजिया और अमला दिल्ली के मल्टीनेशनल कंपनी में काम करती थी। यह चारो सहेलियां एक दूसरे के अच्छे बुरे समय में सदैव साथ देती थी। इनकी आपसी समझ अच्छी थी। इनमे से अमला ज्यादा खुले विचारों की थी। वो ज्यादा नियम कानून को, रूढ़िवादी विचारधाराओं को नहीं मानती थी। इस वजह से वह कभी-कभी खतरों में पड़ जाती थी हालांकि उसकी बाकी तीन सहेलियां उसको समझती भी थी और उसके साथ खड़ी भी रहती थी। ये सहेलियां अपने आफिस के पास रहना चाहती थी। परंतु कोई पीजी इन्हें पसंद नही आ रहा था। उन्होंने सोचा कि हम क्यों ना एक फ्लैट ले ले और चारो सहेलियां आराम से वहीं पर रहे।
सोसाइटी का भुतहा फ्लैट
बहुत खोजने के बाद इन्हें बहुत मुश्किल से अपनी ही कंपनी के पास एक सोसाइटी में एक फ्लैट मिला। वो फ्लैट में सभी आधुनिक सुविधाओं थी। परंतु उन्हें पता चला कि यह एक भुतहा फ्लैट है। सकीना यहां नहीं रहना चाहती थी परंतु आमना का मानना था कि “भूत जैसी कोई चीज होती नहीं है। इस प्रॉपर्टी का वैल्यू कम करने के लिए आसपास के लोगों ने ऐसा फैलाया है। इससे हमारे को फायदा हो रहा है की कम रेंट में इतनी अच्छी प्रॉपर्टी मिल रही है।” बाकी दो सहेलियां भी इस बात से सहमत हुई की ‘रहकर देखते हैं अगर हमें कोई ऐसी गतिविधि महसूस होगी तब यहां से चले जाएंगे’।
भुतहा फ्लैट (Delhi Ka Bhutaha Flat) में रहना
चारों सहेलियां नए फ्लैट में शिफ्ट हो गए। अपना अपना कमरा चुन लिया और सामान यथोचित स्थान पर रखने लगे। इनमे सकीना थोड़ी ज्यादा डरपोक थी। उसे हर बात पे लगता कि भूत ने ही किया है। एक शाम उसने सारी क्रोकरी खोलकर स्लैब पर रखे थे। परंतु सुबह सारी क्रोकरी डाइनिंग टेबल पर पड़ी थी। इसपर सकीना के भुतहा गतिविधि कहने पर फरजाना ने कहा कि “हो सकता है कि तुम भूल गई होगी”। इस पर सकीना कहती है, “मैं भूली नहीं हूं, मुझे बिल्कुल अच्छे से याद है”। इस पर अमला चिढ़ कर कहती है की, “हां हां क्यों नहीं? कोई भूत नहीं होता है। यदि होता है तो मैं बुलाती हूं भूत आओ! क्या वह आया? यह सब मन का वहम है।
फरजाना कहती है “चलो! अब बस, यही बंद करो आज ऑफिस का लास्ट डे है। अटेंड करते हैं, फिर हम सब ईद पर घर चले जाएंगे।
कुत्ते का बच्चा
शाम को आफिस से आते समय अमला ने अपने छोटे भाई के लिए एक छोटा सा प्यारा सा कुत्ते का बच्चा खरीदा। अमला भी हमेशा से एक कुत्ते का बच्चा पालना चाहती थी। सारी सहेलियां उस कुत्ते के बच्चे की मासूमियत पर मोहित थीं। उसकी दवाइयां एवं बाकी चीजें ले कर यह सब लेकर अपने घर पहुंचते हैं। फिर डाइनिंग रूम में मैट बिछा कर कुत्ते के बच्चे को वहां बांध देते हैं। फिर फरजाना और सकीना अपनी फ्लाइट के लिए निकल जाते हैं। जबकि नाजिया रात को 9 बजे अपनी ट्रेन के लिए निकलने वाली थी और अमला अगले दिन सुबह।
अमला को दादरी ही जाना था, तो वह अपनी गाड़ी से जाने वाली थी। ईद आने की खुशी में इन दोनों ने खाना बाहर से आर्डर कर खाया। साथ ही अपने कुत्ते के बच्चे को भी खिलाया। फिर बचे हुए खाने को डाईनिंग टेबल पर रख दिया। और दोनों टीवी देखने लगीं।
कुत्ते के बच्चे का खुला पट्टा
अब 8:00 बज चुके थे। डाइनिंग रूम में जब पानी लेने जब नाज़िया आयी तो देख कर चौंक गयी। उसने चिल्ला कर अमला को बुलाया। कुत्ते के बच्चे का पट्टा खुला हुआ था। सारा खाना जो डाइनिंग टेबल पर रखा था, वह नीचे गिरा हुआ था। यह देखकर अमला जोर से चीखती है और कहती है “इस कुत्ते के बच्चे को मुझे खरीदना ही नहीं चाहिए था। मन तो करता है इसे नीचे ही फेक दूँ। देखो! इसने क्या किया। अब सफाई करनी पड़ेगी।” इस पर नाज़िया कहती है “यह इतना छोटा सा बच्चा है, यह टेबल पर कैसे चढ़ेगा? देख अमला! कुछ तो गड़बड़ है। तुम भी पैकिंग कर ले और अभी ही निकाल लेते हैं। वरना तू अकेली रह जाएगी।”
इस पर झटकते हुए अमला कहती है, “प्लीज़ नाजिया! अब तू भी शुरू मत हो जा। तू टेंशन मत ले तू जा। मैं सफाई करूँगी और कल सुबह जाऊंगी।” नाजिया ने अमला को समझाने का प्रयास किया पर अमला सुनने को तैयार नहीं थी। फिर “टेक केयर” कह कर नाजिया भी रेलवे स्टेशन चली गई।
चादर का खींचना
इधर अमला साफ सफाई कर, कुत्ते को अच्छे से बांधकर अमला सोने चले गई। बीच रात में उसकी नींद खुली तब उसे ऐसा लगा जैसे कोई उसके चादर को खींचने की कोशिश कर रहा है। वह जितनी जोर से अपनी चादर को पकड़ी हुई थी, कोई दूसरी तरफ से उतनी ही जोर से उसके चादर को खींच रहा था। वह घबरा गई। फिर अचानक खीचने वाले ने चादर छोड़ दी। कुछ ही पल बाद उसे ऐसा लगा जैसे उसके बिस्तर पर कोई उठने के लिए करवट बदल रहा हो। बहुत ज्यादा डरी हुई अमला ने जल्दी से बेड लैंप ऑन किया। देखा तो कोई भी नहीं है। डर के मारे पसीने से भीगी अमला ने पहली बार ऐसा एहसास किया था।
फरजाना का कमरा
अचानक से उसके कमरे के बगल में फरजाना का कमरा किसी ने खोल दिया। वह दौड़ कर अपने कमरे से बाहर जाकर देखा तो फरजाना का कमरा खुला हुआ था। उसने घबराकर सारी लाइट्स ऑन कर दी। पर उसे कमरे के अंदर कुछ नहीं दिख रहा था क्योंकि कमरे के अंदर की लाइट बंद थी। उसने अपने फोन का टॉर्च जलाया और कमरे के बाहर से कमरे के अंदर टॉर्च जलाकर चिल्लाने लगी, कौन है? कौन है? जब कोई आवाज नहीं आया आई तब वह अपने कमरे की ओर जाने लगी। देखा तो, यह क्या? उसका कमरा बंद था और वह कितना भी प्रयास करें कमरा खुले ही ना। तभी अचानक से कुत्ते के बच्चे की ऐसी आवाज आने लगी मानो किसी ने उसका गला दबा दिया हो।
जब वह डाइनिंग हॉल की तरफ गई तो उसने देखा बाथरूम का दरवाजा खुला है और कुत्ता डाइनिंग हॉल में नहीं है। उसने बाथरूम में जाकर देखा तो कुत्ता का बच्चा वहां बेहोश सा पड़ा था। उसे अंदर जाने की हिम्मत नहीं हुई। वो भागने लगी तो सारे लाइट्स अचानक बंद होगए। नाज़िया की आवाज़ आई, “मुझे बचाओ मुझे बचाओ, मैं कमरे ही बंद हूँ। जब कि नाज़िया कब का जा चुकी थी। अमला समझ गयी ये उसे फ़साने की योजना है। फिर नाज़िया के कमरे के खुलने की आवाज आई। नाज़िया का कमरा घर का सबसे अंतिम कमरा था। अब अमला में इतना डर भर चुका था कि वह अंधेरे में दौड़ती हुई, गाड़ी की चाबी ले कर घर से बाहर निकल गई।
भागती अमला और दिल्ली का भुतहा फ्लैट (Delhi Ka Bhutaha Flat)
भागती हुई अमला गाड़ी में जा बैठी और गाड़ी को पार्किंग से निकालकर रोड पर लगा दिया। जब थोड़ी शांत हुई तो बोतल निकल कर दो घूंट पानी पिया। फिर जब समय देखा, तो रात के 2:30 बजे रहे थे। अमला ने सोचा “आज यही रहूंगी, सुबह होने पर जाऊंगी”। जब सुबह 5:00 बजे सोसाइटी की पार्क में लोग चलने लगे तब वह बिल्डिंग की तरफ आगे बड़ी। उसका फ्लैट से रोड फेसिंग था। उसने अपने फ्लैट के बालकनी को देखा तो चौंक गए। बालकनी का गेट खुला हुआ था। वह समझ नहीं पा रही थी कि, उसे उपर जाना चाहिए या नहीं जाना चाहिए। उसका डर अभी तक खत्म नहीं हुआ था। वह धीरे धीरे आगे बढ़ रही थी।अचानक उसकी नज़र उसके बालकनी के नीचे जमीन पर पड़ी और वह स्तब्ध रह गयी। वहां उसके कुत्ता का बच्चा गिर के मरा हुआ था।
वह उस कुत्ते के बच्चे के पास बैठकर फुट के रोने लगी और कहने लगी अगर मैंने अपने दोस्तों की बात मान ली होती तो आज ये सब नही होता।
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