कृतज्ञ हाथी (Grateful Elephant) 

कृतज्ञ हाथी (Grateful Elephant) और बुधना

कृतज्ञ हाथी (Grateful Elephant) भी हो सकता है। झारखंड के चतरा जिले की वर्षों पुरानी बात है। उस समय यह जिला जंगलों से घिरा रहता है। इन जंगलों में बाघ, लकड़बघ्घा, लोमड़ी, सियार, सोना चीता, जंगली सुअर, हाथी, हिरण जैसे जंगली जानवर पाए जाते थे। तब यहां शहरी क्षेत्र के नाम पर कोई प्रगति नही थी। ग्रामीण क्षेत्र वाले इस जिले के कई गाँव मे जंगली जानवर घुस जाते थे। आज भी यहाँ हाथियों का गाँव मे घुसना या सड़कों पर चलना आम बात है। उन दिनों आज की तरह सड़कों पर गाड़ियां तेजी से नही चलती थी। गाँव और शहरों को जोड़ने वाली एक सड़क पर बुधना पंचर दुकान नामक एक पंचर बनाने वाली छोटी सी दुकान थी। ठंड का महीना था और शाम हो रही थी। बुधना अपना काम कर रहा था।

आ गया हाथी !

अंधेरा बढ़ रहा था। बुधना ने अपनी दुकान के अंदर ढिबरी ( बोतल में मिट्टी तेल भर कर जलाए जाने वाली बत्ती) जला ली। वह काम ही कर रहा था कि, उसे लगा कोई आया है। जब उसने सर उठा कर देखा तो, देखता ही रह गया। एक नज़र पड़ते ही उसके पसीने छूटने लगे। उसने देखा। उसकी दुकान से दुगना बड़ा हाथी उसकी दुकान के सामने खड़ा है। हाथी को देखते ही वह हाँथ जोड़ कर बड़बड़ाने लगा। “अरे गणेश जी! जान छोड़िये मेरी। मैं रोज़ आपके पिता जी को जल चढ़ाता हूँ। मुझसे क्या गलती हो गई प्रभु? मेरी जान क्यों लेना चाहते हैं?” इतने में हाथी ने अपना एक पैर उठाया। बुधना समझ गया था की आज उसका अंतिम दिन है। उसने अपनी आंखे जोर से मीच लीं। उसे पता था कि क्षण भर में यह हाथी मुझे कुचल देगा।

बुधना ने की हाथी की मदद

कुछ क्षण आंखे मीचने के बाद जब उसने आंखें खोली तो देखा की हाथी ने अपने पैर को पलट कर उसके सामने रखा हुआ है। बुधना ने ध्यान से देखा तो पाया कि हांथी के पैर में एक मोटा सा लोहे का कील चुभा हुआ था। बुधना कभी कील को देखता तो कभी हाथी को। फिर उसने सोचा कि, “यदि मैं इस कील को हाथी के पैर से निकाल दूँ तो शायद ये मुझे नही मारेगा। परंतु, यदि इससे इसे दर्द हुआ तो यह मुझे मार भी सकता है।” फिर उसने सोचा, “चलो निकाल देता हूँ। भगवान को दया आयी तो बचा ही लेंगे। वैसे भी यहां से भाग निकलने का कोई उपाय तो नही है।” यह सोचते हुए उसने लोहे से बना कील निकालने वाला एक औजार उठाया। पूरे ध्यान से उसने हाथी के पैर से कील निकाल दी।

हांथी ने किया बुधना का पीछा

कील निकला देख हाथी चिंघाड़ने लगा। बुधना डर गया। कुछ क्षण के बाद हाथी बुधना की दुकान के बगल में जाकर बैठ गया। बुधना को डर भी लगे। वह सोचने लगा, ‘ यह जाता क्यों नही है? यहाँ क्यों बैठ गया?’ उससे घर भी जाना था। बुधना धीरे धीरे उठकर दुकान बंद करने लगा। हाथी टस से मस न हुआ। बुधना को थोड़ी हिम्मत आई। वह अपने घर की ओर निकल पड़ा। राहत की सांस लेता बुधना चल रहा था। उसके मन मे ख्याल आया, “कहीं हाथी मेरे पीछे तो नही आ रहा?” जब उसने पीछे मुड़ कर देखा तो सच मे हाथी उसके पीछे आ रहा था। बुधना ने सोचन लगा, “ये आज मैं कहाँ फंस गया हूँ? यह मेरे पीछे क्यों आ रहा है?’ तब तक बुधना का घर गया।

चला गया हाथी (Grateful Elephant)

घर पहुंचते ही बुधना ने अपने घर मे घुस कर दरवाजा बंद कर लिया और फिर झरोखे से हाथी को झांकने लगा। हाथी वहीं कुछ देर खड़ा रहा। इधर उधर देखता रहा। फिर लगभग 5 मिनट बाद चला गया। बुधना जब मुड़ा तो देखा उसका पूरा परिवार भी चुपचाप यह सब देख रहा था। परेशान बुधना ने अपने परिवार को पूरी आपबीती सुनाई। कुछ घंटों तक वे लोग झाक कर देखते रहे कि कहीं हाथी फिर से तो नही आ गया। जैसे तैसे राहत की सांस ली। बहुत रात हो जाने पर वे लोग भी सो गए।

हाथी की कृतज्ञता (Grateful Elephant)

ठंड के दिनों में जल्दी कहाँ धूप निकलती है? उस दिन बुधना का परिवार देर से उठा। जब झरोखे से झांक कर देखा तो हाथी वहीं खड़ा था। परंतु इस बार बुधना, घबराया नही अचंभित था। हाथी ने बुधना के दरवाजे को छोड़ कर उसके घर के सामने करीब 100 गन्ने रख रखे थे। बुधना अपने परिवार सहित घर के बाहर निकला। तभी हाथी ने चिंघाड़ते हुए अपनी सूंढ को उठाया और बुधना के माथे को धीरे धीरे सहलाया। बुधना अब उसके प्रेम और कृतज्ञता तो महसूस कर पा रहा था। फिर हाथी चला गया। बुधना समझ गया कल हाथी कील निकल जाने के बाद क्यों बैठा रहा? क्यों मेरा पीछा कर रहा था?”

भोलू और वीरू की दोस्ती (Bholu aur Veeru ki Dosti) पढ़ें।