गुरु की सीख (Guru Ki Seekh Motivational Story in Hindi)

“गुरु की सीख (Guru Ki Seekh ) : जानिए जीवन के अमूल्य उपदेश”

गुरु की सीख (Guru Ki Seekh) भारतीय गुरुकुल परम्परा की बहुत ही प्रेरणादायक कहानी (Motivational Story in Hindi)  है।

Guru Ki Seekh Motivational Story in Hindi

एक आश्रम में एक सिद्ध गुरु अपने सैकड़ों शिष्यों के साथ रहते थे। उन्ही में से उनके कुछ पुराने शिष्य वहीं शिक्षक थे। और, बाकी सब अभी शिक्षा प्राप्त कर रहे थे। उनका एक शिष्य कर्मदास, जो कि अभी उनके आश्रम में छात्र ही था, वह बहुत अधिक बोलता था। सदैव, स्वयं को दूसरों से बहुत श्रेष्ठ समझता और दूसरों की बात काट उन्हें नीचा दिखाता था।  शांत, एकाग्र होकर आश्रम में ज्ञान प्राप्त करने के बजाए, स्वयं को ज्ञानी दिखाने का दंभ भरता था। हर समय बोलता रहता, दिन भर इधर-उधर की बातें करता।

भिक्षाटन के लिए भी जाता तो हर घर से एक नई कहानी लेकर आता। और, आश्रम के दूसरे शिष्यों को सुनाता। एक छात्र से दूसरे की बुराई करता, चुगली करता और दूसरों के सामने अच्छा बनने का प्रयास करता। स्वयं को गुरु के सामने सबसे बुद्धिमान और उत्तम शिष्य साबित करने का प्रयास करता। यहाँ तक की, वह खुद को सभी शिक्षकों से अलग और श्रेष्ठ मानता था। उसका मानना था कि ‘वह त्यागी है, इसलिए वह सर्वश्रेष्ठ है’। वह ऐसा मानता क्योंकि अमीर घर से था। फिर भी, आरामदायक और सुविधाओं से भरा जीवन छोड़ कर सत्य की खोज में निकल पड़ा था। पर कहते है ना, किसी मे कितनी भी बुराई हो, कोई ना कोई अच्छाई अवश्य होती है। कर्मदास में भी मेहनत करने की क्षमता थी, वह बुद्धि से तेज था। बस, अपनी क्षमताओं का उपयोग करना नही जानता था।

महीने भर का संकल्प और गुरु की सीख (Guru Ki Seekh)

एक दिन गुरु ने आश्रम के सभी शिक्षकों को बुलाकर कहा “आप सभी को अगले एक माह के लिए कोई ना कोई संकल्प लेना है। इससे आपकी संकल्प शक्ति मजबूत होगी और आप में अद्भुत शक्ति का संचार होगा। आप सभी अपने सामर्थ्य के अनुसार कोई सा भी संकल्प ले सकते हैं। 1 माह से पूर्व जिसका भी संकल्प टूट जाए वह अपनी दिनचर्या में वापस आ जाएं।” सभी शिक्षकों ने अपनी शक्ति के अनुसार छोटे बड़े संकल्प लिए, और गुरु को अपने अपने संकल्प के बारे में बता कर वहां से चले गए। लेकिन, कर्म दास को यह बात अच्छी नहीं लगी।

उसका मानना था कि संकल्प का अवसर केवल शिक्षकों को क्यों मिला, विद्यार्थियों को भी मिलना चाहिए था। गुरु मुस्कुराते हुए बोले, “तो ठीक है, जिन भी विद्यार्थियों को लगता है कि उनकी संकल्प शक्ति मजबूत है, वह भी एक महीने के लिए संकल्प ले सकते हैं।” कर्मदास स्वयं को सबसे अलग और बड़ा दिखाना चाहता था। उसने गुरु देव से कहा “हे गुरुदेव! आपही बताइए मुझे क्या संकल्प लेना चाहिए? तो गुरुदेव ने कहा, “मेरे पास एक सुझाव है, तुम अपने शिक्षकों और मित्रों के पास जाओ और उनसे जा कर पूछो की तुम्हे क्या संकल्प लेना चाहिए। क्या पता, तुम्हें किसी ऐसे संकल्प के बारे में पता चल जाए जो तुम्हारे जीवन मे कोई बहुत बड़ा परिवर्तन ले आए।”

कर्मदास का संकल्प और गुरु की सीख (Guru Ki Seekh)

गुरु की बात सुन कर, वह अपने शिक्षकों और मित्रों से मिलकर वापस गुरु के पास आया। और बोला, “गुरुदेव! यहां कोई मेरा भला चाहता ही नहीं, ये लोग कहते हैं मौन रहने का संकल्प ले लो।” गुरु ने पूछा सबने यही कहा?” तब कर्मदास ने हामी भरते हुए कहा “जी! लगभग सबने यही कहा।” गुरु ने पूछा “पुत्र कर्मदास ! क्या तुम यह कर पाओगे?”

कर्मदास ने कहा “जी! इसमें कौन सी बड़ी बात है, यह तो मैं आराम से कर लूंगा, मैं इसी का संकल्प ले लेता हूं आपके सामने गुरुदेव कि अब मैं आने वाले एक महीने तक मौन रहूँगा। गुरूदेव ने उसे संकल्प पर अटल रहने का आशीर्वाद दिया और अपनी कुटिया की ओर चले गए। बाकी किसी छात्र ने संकल्प नहीं लिया। कर्म दास प्रफुल्लित हुआ जा रहा था कि, ‘अरे वाह! शिक्षकों के साथ केवल मैंने संकल्प लिया है। बाकी विद्यार्थियों से तो श्रेष्ठ हूँ मैं। मेरा संकल्प तो पूरा भी हो जाएगा, देखते हैं कौन कौन से शिक्षक पूरा कर पाते हैं’। यह सोचता हुआ वह भी विद्यार्थियों की कुटिया की ओर चला गया।

गुरु की सीख (Guru Ki Seekh) के लिए संकल्प और परेशानी

पहले तो उसे चुप रहना बहुत आसान लग रहा था। फिर, उसने एक दिन जैसे-तैसे चुप रह कर काट लिया। लेकिन, दूसरे दिन से उसके मन में ना बोलने का बोझ बढ़ने लगा। तीसरे दिन उसे भारीपन महसूस होने लगा। और चौथे दिन उसके अंदर एक अजीब सी बेचैनी होने लगी क्योंकि, आश्रम में सभी एक दूसरे से बात कर रहे थे। वह भी अपना पक्ष उनके सामने रखना चाहता था। उनकी बोलती बंद कर देना चाहता था। लेकिन उसका संकल्प उसके आगे आ रहा था। उसका सर फटा जा रहा था उसका खाने पीने का मन नहीं कर रहा था, बस बोलना चाहता था।

अपनी परेशानी का हल ढूंढने वह गुरु के पास पहुँचा। गुरु के पास पहुँचकर, उनके सामने बैठ, लिखकर उन्हें बताया की “गुरुदेव मैं बोलना चाहता हूं, मुझसे रहा नहीं जा रहा, मैं क्या करूं? क्या मैं संकल्प तोड़ दूं? गुरु मुस्कुरा कर बोले, “संकल्प तो तोड़ने के लिए ही होते हैं। तो तुम तोड़ सकते हो। परंतु जो अपने संकल्प को पूरा कर लेता है वही अपनी आंतरिक शक्ति और जागृति की राह पर आगे बढ़ जाता है। बाकी संकल्प तुम्हारा है, उसे रखना या तोड़ना तुम्हारे हाथ में है”।

संकल्प टूटने का डर और गुरु का मार्गदर्शन

काफी विचार करने के बाद कर्म दास ने अपने गुरु से कहा “मैं संकल्प तो नहीं तोड़ना चाहता, मैं इसे पूर्ण करूँगा”। यह कह कर, गुरुदेव को प्रणाम कर कर्मदास अपनी कुटिया में चला गया। अब उसने बिना ज़रूरत अपनी कुटिया से बाहर निकलना भी बंद कर दिया। उसके सहपाठी और शिक्षक भी हैरान थे की, कर्मदास का संकल्प इतना लम्बा कैसे चल रहा है? अब कर्मदास बाहर तो जबाब नहीं देता, पर अब जितना ज्यादा मौन रहता उतना ही पुरानी बातें , यादें सब बहुत तीव्र वेग से उसके अंदर प्रकट हो रही थीं। अब मौन और ज्यादा मुखर हो रहा था। कर्मदास ज्यादा बेचैन होने लगा था, उसने पुनः अपने गुरु से इसका हल जानना चाहा। पुनः अपने गुरु से लिख कर पूछा, “मैं बाहर से जितना मौन हूं, अंदर में उतना ही शोर है। क्या इसके बाद भी मेरा संकल्प जारी है? या मेरा संकल्प टूट चुका है?”

गुरु ने उत्तर दिया “तुम्हारा संकल्प अभी भी जारी है, लेकिन जब तक लोगों की आवाज तुम्हारे कानों में पड़ती रहेगी, तुम्हारा मन बोलता रहेगा क्योंकि इसे तो आदत है बोलने की। तुम्हें इससे बाहर आने के लिए इन आवाजों से दूर जाना पड़ेगा। गुरु की ये सीख (Guru Ki Seekh ) लेकर , गुरु को प्रणाम कर, कर्म दास कुटिया छोड़कर जंगल की तरफ चला गया। उसने सोचा, जब मेरा संकल्प का समय पूरा हो जाएगा तभी लौट कर आऊंगा। परंतु जब वह जंगल गया, तब उसने जाना कि वह अंदर से अशांत था, इसीलिए बाहर से इतना शोर मचाता था।

कर्मदास का वापस ना लौटना

जब पूरा महीना बीतने के बाद वह लौटकर आश्रम नहीं आया, तब उसके मित्रगण और शिक्षकों ने गुरुदेव से बात करने का मन बनाया। और, उनसे जाकर कहा “हे गुरुदेव एक महीने से ज्यादा हो चुका है परंतु कर्मदास अभी तक लौटकर वापस नहीं आया। क्या हमें उसे ढूंढना चाहिए? क्या पता किसी जानवर ने उस पर हमला किया हो? या उसकी तबीयत खराब हो? क्या पता, वह रास्ता भटक गया हो? हमें उसके बारे में ज्यादा पता नहीं है। तो क्या हमें उसकी मदद के लिए जाना चाहिए?

गुरु ने अपने शिष्यों से कहा “तुम सब भी तो यही चाहते थे कि, वह चुप हो जाए। यह संकल्प तो तुम ही लोगों ने उसे सुझाया था। फिर, अब तुम उसकी चिंता क्यों कर रहे हो?” सब शर्मिंदा थे और उसी भाव से एक शिक्षक ने कहा “हमें क्या पता था, हमारा यह सुझाव हमारे आश्रम के ही विद्यार्थी के लिए इतना हानिकारक हो जाएगा। और, वह आश्रम छोड़कर चला जाएगा और फिर कभी वापस लौट कर नहीं आएगा।” गुरु ने मुस्कुराते हुए बोला “चिंता मत करो वह आ जाएगा”।

कर्मदास का वापस लौटना

कुछ समय के बाद एक दिन कर्मदास आश्रम आया, उसके मित्रों ने उसे घेर लिया और उससे बातें करने लगे। यह क्या कर्मदास तो सबसे घुलमिल कर प्रेम पूर्वक बातें कर रहा था। ना किसी का उपहास, ना किसी से आगे निकलने की होड़, ना किसी से बड़ा बनने की चाहत। उसे देख कर लग रहा था मानो वह बदल सा गया हो। अपने मित्रों से बात करके वह अपने शिक्षकगण के पास गया, उन्हें भी चरणस्पर्श प्रणाम कर उनके हालचाल पूछे। और, उनसे प्रेम पूर्वक बातें कर अपने गुरुदेव से मिलने चला गया।

गुरुदेव से मिलना

गुरुदेव के सामने हाथ जोड़कर उसने कहा, “हे गुरुदेव, मैं जंगल से वापस आ चुका हूं और मुझे आपसे अपने संकल्प के बारे में बात करनी है”। गुरुदेव ने कहा, “हां ठीक है! परंतु अभी मेरा विश्राम करने का समय हो रहा है, विश्राम के बाद में तुमसे बात करता हूं”। यह कहकर, गुरु अपने कुटिया में चले गए। कर्मदास भी विद्यार्थियों की कुटिया की तरफ चला गया।

यह सब देख रहे, एक शिक्षक ने गुरु से पूछा, “हे गुरुदेव, अपराध क्षमा कीजिएगा, परंतु आपने कर्मदास से बात क्यों नहीं की? वह इतने महीनों बाद आया है, हमें उसकी इतनी चिंता थी। और, वह आपसे कुछ आवश्यक बातें करना चाहता था। फिर आपने उसकी बात टाल क्यों दी?” गुरुदेव ने मुस्कुराते हुए कहा “यही तो उसकी परीक्षा है, क्या वह सच में मुझसे मिलने के लिए शांत रह पाएगा या फिर मेरे मना कर देने से उसके अंदर की अशांति फिर से जाग जाएगी? देखते हैं”। यह बोलकर गुरु विश्राम करने लगे।

गुरु से वार्तालाप और गुरु की सीख

कुछ समय पश्चात जब विश्राम करके जागे तब उन्होंने कर्मदास को बुलाया। और, पूछा…”हाँ, बताओ पुत्र तुम क्या बताना चाहते थे?” कर्मदास ने हाथ जोड़कर कहा, “गुरुदेव! मुझे तो नहीं पता कि मेरा संकल्प पूरा हुआ या नहीं। इसी बारे में आपसे चर्चा करना चाहता था। जब मैं यहां से जंगल गया, तब मेरे बाहर तो बहुत ही शांति हो गई, परंतु मेरे अंदर का शोर बढ़ता गया। जिससे मैं बहुत परेशान होने लगा और फिर मैं जोर जोर से चिल्लाने लगा, परंतु शोर कम नहीं हुआ ।

शोर को सुनना

कुछ समय बाद जब मैंने उस शोर को सुनना शुरू किया तब जाना कि, जो शोर मैं बाहर मचाता था, वह शोर मेरे अंदर रहता था। मेरे अंदर की कमियां, अज्ञानता और इनकी वजह से पनपी असुरक्षा की भावनाओं ने मुझे अशांत कर दिया था। मैं अपनी कमियों को सुधारने और अपने ज्ञानवर्धन करने के बजाए, उसे दबाता था। और, अपने मौखिक शक्ति से जीतना चाहता था।

बातों के बल पर मैं सारी चीजें जीतना चाहता था। यही मेरी गलती थी। जब मैंने अपने अंदर के शोर को समझना शुरू किया और उसे शांत करना शुरू किया, तब मैं समझ पाया कि ‘ना मुझे मौन रहने की आवश्यकता है और ना ही मुझे वाचाल रहने की आवश्यकता है’। मुझे केवल सम्यक रहने की आवश्यकता है। जितनी आवश्यकता है उतना ही बोलना चाहिए अन्यथा चुप रहना चाहिए।

अब आप मुझे बताएं कि, क्या मेरा संकल्प टूट गया? या मेरा संकल्प पूर्ण हुआ? गुरु ने मुस्कुराते हुए कहा, “पुत्र यदि तुम एक महीने तक बिना कुछ बोले चुप रहते और मुझसे कोई प्रश्न भी ना करते और, अपनी यात्रा में आगे भी ना बढ़ते, तब भी तुम्हारा संकल्प पूरा हो जाता। परंतु, उस संकल्प के पीछे की योजना सिद्ध नहीं हो पाती। परंतु, तुमने जंगल जाकर अपने लिए मार्ग भी स्वयं बनाया और उससे स्वयं सिद्ध किया। मैं प्रसन्न हूँ कि तुम्हारा संकल्प भी पूरा हो गया और उसके पीछे की योजना भी सिद्ध हो गई।” कर्मदास यह सुन कर आनंद से भर गया। उसके चेहरे की मंद मुस्कान सब व्यक्त कर रही थी

गुरु द्वारा गुरुकुल के सभी विद्यार्थियों और शिक्षकों से वार्ता

फिर गुरु ने कहा, “अब मैं चाहता हूं कि, मैं इस आश्रम के सभी लोगों से बात करूं, उन सब को बुला लाओ”। कर्मदास जाकर सारे शिक्षकों और विद्यार्थियों को इकट्ठा कर लाया। उन सब ने गुरु को चरणस्पर्श प्रणाम किया और गुरु को सुनने (Guru Ki Seekh) के लिए करबद्ध हो खड़े हो गए। गुरु ने कहा, “मेरे प्यारे शिष्यों! मैंने आप सभी को संकल्प वाले प्रकरण से जुड़े कुछ मुद्दों पर प्रकाश डालने के लिए बुलाया है।

पहला, यदि आपके सामने कोई क्रोधित होता है या आप को नीचा दिखाने की कोशिश करता है, तो आपका कर्म है कि आप उसे शांत करवाएं या शांति की राह दिखाएं। ना कि, उसकी कमियां निकालकर उसे और दुखी या अशांत करें।

दूसरी बात, यदि आप अशांत है और आपको कोई बताता है, तो आप मदद मांगे और अपने आप को शांत करने का प्रयास करें ना कि, मौखिक शक्ति से उसे हराने का प्रयास करें।

तीसरा, किसी से परेशान होकर कोई ऐसा हल ना निकालें जो किसी के लिए हानिकारक सिद्ध हो सकता है क्योंकि, बाद में इस पर आप ही को पछताना पड़ेगा। और चौथा, अपनी कमियों को छुपाने के लिए, अपने मौखिक शक्ति का सहारा ना लें, अपितु अपनी कमियों को सुधारें वही आपकी शक्ति है। सभी को अपनी अपनी गलती समझ आयी और सभी ने स्वयं में सुधार करने की स्वेच्छा बताई।

कहानी की सीख

इस कहानी से हमे यह सीख मिलती है कि, खुद की कमियों से मन अशांत होता है जिससे हम गलत राह पर चलने लगते हैं। अंहकार की तृप्ति या स्वयं को बड़ा दिखाने के लिए ज्यादा बोलना बहस करना, रिश्तों को खराब करता है और आपकी असुरक्षा को दर्शाता है। हमे यथा आवश्यक कम बोलना चाहिए और स्वयं में सुधार कर मन शांत रखना चाहिए।

प्रेरणादायक कहानियों को पढ़ने के लिए कहानीवाला पर बने रहें।