जीवों में भेद (Jeevon Mein Bhed), ईश्वर से भेद है
जीवों में भेद (Jeevon Mein Bhed) करना निम्न श्रेणी के मनुष्यों के प्रमुख लक्षण हैं। एक बार की बात है बाबा रामानंदाचार्य के आश्रम में बहुत भीड़ लगी थी। एक धनाढ्य शिष्य उनसे अपने घर आने के लिए आग्रह कर रहा था। वैसे तो उनके आश्रम में शिष्यों की भीड़ एवं निमंत्रण हेतु प्रार्थना तो बहुत आम बात थी। परंतु, आज राज्य के धनाढ्यों में से एक पधारे थे। सुरक्षाकर्मी लोगों की सुरक्षा से अधिक एक व्यक्ति विशेष पर केंद्रित हो गए थे। उस धनाढ्य परिवार के लोग बाबा जी को अत्याधिक सम्मान से संबोधित कर रहे थे । बाबा के यहाँ किसी भी प्रकार का भेद भाव नही था। बाबा कभी किसी से न जाति पूछते, ना बाबा कभी किसी से आमदनी पूछते। बाबा भेद करना शायद जानते ही नहीं थे और यही वह हम मनुष्य को भी सीखाना चाहते थे।
मानो भगवान आए हों
उन धनाढ्य शिष्य को आए देख बाबा ने लोगों के बीच असहजता को अनुभव किया। परंतु, धनाढ्य शिष्य भी तो आखिर शिष्य था। बाबा केवल उससे इसलिए भेदभाव नहीं कर सकते थे, क्योंकि वह धनवान था। उसके आग्रह को मानते हुए बाबा ने उसके निमंत्रण को स्वीकार किया। निमंत्रण कि स्वीकृति के अनुसार बाबा उस धनाढ्य व्यापारी के घर पधारे। वहां उन्हें अद्वितीय आदर सत्कार मिला। व्यापारी का पूरा परिवार बाबा के आगे पीछे उनके सुख सुविधा और उनके सम्मान में लगा हुआ था। वह ऐसा कर रहे थे, मानो उनके घर स्वयं भगवान चल कर आए हो।
धनाढ्यों के घर मे निम्नतम व्यवहार
कुछ समय उपरांत, व्यापारी ने बाबा से कहा, “बाबा जी! मेरे पूरे घर में चलकर आप मेरे घर की सकारात्मक ऊर्जा को बढ़ा दीजिए”। बाबा ने भी हामी भरी और वह उसके घर के एक-एक कोने को देखने के लिए तैयार हो गए। व्यापारी का पूरा परिवार बाबा जी के साथ-साथ घर में घूम रहा था। घूमते घूमते बाबा घर के उस हिस्से में पहुंचे जहां नौकर चाकर रहते थे। जब वे वहां पहुंचे तब नौकर चाकर अपने लिए भोजन पका रहे थे। उनके रहने की व्यवस्था और उनके बन रहे खाने को देखकर बाबा जी को बहुत पीड़ा हुई। इतना धनाढ्य परिवार परंतु अपने सहायकों को रखने के लिए इतना निश्चतम श्रेणी का स्थान! खाने के लिए नीचतम श्रेणी का भोजन! जब माता लक्ष्मी की इतनी कृपा है फिर भी ऐसी सोच!
बाबा ने मांगा चाकरों का भोजन
बाबा व्यापारी और उसके परिवार के हाव-भाव से तो पहले ही समझ चुके थे। वे लोग बाबा जी को आदर तो करते हैं परंतु उनके भीतर बहुत भेदभाव है। वह मनुष्यों को उनकी क्षमता और समर्थ्य के हिसाब से सम्मान देते हैं। घर में घूम कर जब बाबा जी भोजन के स्थान पर बैठे तब उन्हें नाना प्रकार के व्यंजन भोग लगाए गए। बाबा ने व्यापारी से कहा, “पुत्र! तुम मुझे वही भोजन परोसो जो चाकर जन वहां पका रहे थे। हाथ जोड़कर व्यापारी ने कहा, “बाबा जी! ऐसा कैसे हो सकता है? यह आपका भोजन है। यह आपके लिए प्रेम और आदर पूर्वक पकाया गया है। चाकर का भोजन आप कैसे खा सकते हैं? वे निम्न कोटि, निम्न जाति एवं निम्न परिवार से आते हैं। निम्न लोगों का भोजन आपको कैसे परोसा जा सकता है?”
भेदभाव पाप है
तब बाबा जी ने कहा, “या तो यह भोजन उन्हें भी परोसो या तो उनके लिए बनाया गया भोजन मुझे भी भरोसे। तुम्हारे पास यही दो विकल्प हैं पुत्र! अन्यथा मैं यहां भोजन ग्रहण नहीं कर पाऊंगा।” यह सुनकर व्यापारी ने तुरंत अपने चाकरों के लिए भी वही भजन लगाने का आदेश दिया। व्यापारी अपने किए पर शर्मिंदा था। वह समझ चुका था कि, जब बाबा जैसे श्रेष्ठ जन भी उन्हें निम्न नहीं समझते जिन्हें समाज निम्न समझता है। इसका अर्थ है कि, वह लोग निम्न नहीं है। वह पिछड़े हैं, गरीब हैं इसलिए उन्हें निम्न समझा जाता है। बाबा ने व्यापारी से कहा, “पुत्र! ईश्वर ने अमीर और गरीब को, काले और गोरे को, पढ़े लिखे और अनपढ़ को, कभी भेद से नहीं देखते। ईश्वर ने सबके लिए बराबर सूर्य और बराबर बादल बनाएं। प्रकृति में ईश्वर ने सब कुछ सबके लिए बराबर बनाया है।”
सब परमात्मा के अंश हैं (Jeevon Mein Bhed)
बाबा ने आगे कहा, “जो भी विभाजन हम देख पाते हैं वह मनुष्य के द्वारा निर्मित है। हम सब, मानव हों, पशु हों, या पक्षी हों, सबके लिए ईश्वर ने बराबर प्रकृति का निर्माण किया है। उसने हमें एक जीव मात्र बनाया है। जीवो में भेद करना ईश्वर से भेद करने के बराबर है। तुम कितने भी पुण्य कर्मकांड कर लो! स्वच्छता से रहो! परंतु यदि मन में भेदभाव का मैल हो, कर्मों में भेदभाव का पाप हो, तो ईश्वर से मिलन लगभग असंभव हो जाता है। जीवों में भेद (Jeevon Mein Bhed) जानकर आप उनसे जितनी दूरी बनाते हैं ईश्वर से भी आप उतने ही दूर हो जाते हैं। पुत्र! अनेकता में एकता को देखो। भिन्नता में एकता को देखो। हम सब के कार्य अलग-अलग हैं। परंतु, हम सब के अंदर वही आत्मा है जो परमात्मा का अंश है।”