कर्म का फल (Karm Ka Fal) भोगना ही पड़ता है
कर्म का फल (Karm Ka Fal) हर मनुष्य को भोगना पड़ता है। रोहित नामक एक अनाथ बच्चा था। उसके माता–पिता बचपन में ही चल बसे थे, उसके ननिहाल और पिता की तरफ से भी कोई नहीं था। उसके न तो कोई आगे था ना कोई पीछे, अनाथालय में रहा और पढ़ा। वह पढ़ने में मेधावी था उसे आर्मी में नौकरी लग गई और वह एक अधिकारी बन गया। अब सेना के साथ ही रहता, कभी भी घर वापस नहीं आता क्योंकि उसका कोई था नहीं, उसने शादी भी नहीं की थी। उसे जितनी सैलरी मिलती थी वह सब बचा लेता था। आर्मी के कैंटीन में खाता था वहीं पर रहता था, तो उसका खर्चा भी लगभग ना के बराबर था। तो हम कह सकते हैं कि उसने आज तक जितनी सैलरी पाई सब बचा ही लिया था।
सूरजमल सेठ और रोहित का पैसा
उसी कैंटीन में सूरजमल नामक एक सेठ आता था जो कैंटीन के समान का छोटा सप्लायर था। बहुत दिन हो गए दोनों को एक दूसरे को जानते पहचानते, एक दिन सूरजमल ने कहा रोहित आपके पैसे बैंक में रखें हैं। मुझे व्यापार में लगाने को दे दो मैं तुम्हे अच्छा मुनाफा दूंगा। रोहित ने मना कर दिया। रोहित ने कहा मुझे इतनी ज्यादा पैसे की लालच नही है। जो सरकार ने दिया है वह मेरे खाते में पड़ा है। कभी जिंदगी में जरूरत पड़ी तो इस्तेमाल करेंगे नहीं तो कोई बात नहीं। सेठ ने कहा यह भी क्या बात हुई अगर तुम हमें अपना दोस्त मानते हो तो तुम मेरी सहायता ही कर दो। मैं तुम्हें यह पैसा वापस लौटा दूंगा। कम से कम मेरा काम हो जाएगा अभी इस पैसे की तुम्हें जरूरत भी नहीं है।
सेठ की नीयत में खोट
बात तो सही कह रहे हो, पर आप पैसा वापस करोगे इसकी क्या गारंटी है, सेठ ने कहा कसम खाकर कहता हूं धोखा नहीं दूंगा। रोहित ने कहा सेठ जी! लोग तो पैसे के लिए क्या क्या कर देते हैं।पर कोई नही चलिए मैं आपकी बात को मान लेता हूं। कम से कम आप का तो भला हो जाए। सेठ ने मुस्कुराते हुए, धन्यवाद कहा और रोहित को गले लगा लिया। पैसा लेने के बाद सेठ जब भी आता रोहित को बहुत–बहुत धन्यवाद देता। सेठ का बिजनेस रोहित के पैसों से बढ़ रहा था आमदनी दिन दुगनी रात चौगुनी हो रही थी। आमदनी बढ़ने के साथ अब सेठ की नीयत में बेईमानी आ चुकी थी। वह अब पैसा ना लौटाना पड़े उसका बहाना ढूंढता रहता।
बॉर्डर पर युद्ध
इसी बीच बॉर्डर पर पड़ोसी देश के साथ युद्ध शुरू हो गया और रोहित को भी जाना पड़ा। जहां युद्ध हो रहा था वो इलाका काफी दुर्गम था। वहां पहुंचने का एक मात्र रास्ता घोड़े से पहुंचने का था। रोहित एक कुशल घुड़सवार था, उसे जो घोड़ी मिली वो बिगड़ैल थी। रोहित के पीठ पर बैठते ही सरपट दौड़ने लगी, रोहित उसे काबू में करने की जितनी कोशिश करता वो अपनी गति और तेज करती जाती। रोहित ने लगाम पूरी ताकत से खींचा, घोड़ी का मुंह कट चुका था पर पता नही आज ये बिगड़ैल घोड़ी कुछ भी सुनने को राजी नहीं थी। घोड़ी दौड़ते दौड़ते दुश्मन के खेमे के सामने जाकर खड़ी हो गई। रोहित दुश्मन की गोलियों का शिकार हो गया।
सेठ की खुशी
सेठ बराबर आर्मी कैंट में जाता था उसे वहां पता चला की रोहित युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुआ। सेठ ने वहां काफी दुख दिखाया और कैंट से बाहर आते ही खुशी से झूम उठा। अब पैसा वापस नही करना होगा। सेठ का व्यापार दिन दोगुनी रात चौगुनी तरक्की कर रहा था। कुछ दिनों के बाद सेठ की पत्नी मां बनी और सेठ एक सुंदर बच्चे का पिता बना। सेठ के जीवन का ये सबसे बेहतरीन समय चल रहा था।
समय बीतते देर नहीं लगती। सेठ का बेटा अमर जो अब बड़ा हो गया था और अब सेठ के साथ मिलकर व्यापार करता था। अमर विवाह योग्य हो चुका था। अच्छे घर की सुंदर सुशील कन्या देखकर अमर की शादी हो गई। अब सेठ कहता कुछ दिन की और बात है अब बेटा व्यापार संभालेगा। मेरी जिंदगी सफल हो गई और क्या चाहिए मुझे।
अमर की बीमारी
अमर की शादी हुए मुश्किल से 2 महीने हुए थे, अमर सड़क पार कर रहा था उसे चक्कर आया और गिर गया। लोग उसे उठाकर हॉस्पिटल पहुंचाए, उसके ब्रेन का एमआरआई और अन्य टेस्ट हुए तो पता चला अमर को ब्रेन कैंसर है। सेठ ने डॉक्टरों से कहा पैसे की चिंता मत करें आप इलाज करें। डॉक्टर और हॉस्पिटल बदलते गए पर अमर की हालत दिन ब दिन बिगड़ती गई। सेठ अब व्यापार पे ध्यान नहीं दे पा रहा था, उसके कस्टमर छूटते जा रहे थे।
हॉस्पिटल का बढ़ता बिल और अमर की बीमारी
हॉस्पिटल का बिल बढ़ता जा रहा था। अब सेठ पर कर्ज काफी हो चुका था, सेठ परेशान था। अब अमर को डॉक्टर ने जवाब दे दिया, सेठ हार चुका था। किसी चमत्कार की आशा में बैठा था, चमत्कार तो नही हुआ। पर अमर अब इस दुनिया में नही रहा। महीनो जिंदगी की जंग लड़ने के बाद अमर हार चुका था। सेठ के घर में हाहाकार मच गया। सेठ, सेठानी, अमर की पत्नी सब विलाप कर रहे थे। यहां तक की घर के नौकरों का भी रो रो कर हाल बुरा था।
साधु का सच और कर्म फल (Karm Ka Fal)
एक साधु उधर से गुजर रहे थे उन्होंने करुण क्रंदन सुना तो रुक गए। वहां जाकर उन्हें कहा रोने से कुछ नही होगा, जो होना था वो हो गया। सेठ गुस्से में बोला “मेरे साथ ही क्यों?” साधु ने कहा सब कर्म का फल (Karm Ka Fal) है, यहीं चुका कर जाना होता है। आज बहुत रो रहे हो, कल तो तुम बहुत हस रहे थे।
सेठ ने कहा “मै कुछ समझा नही महाराज“, साधु ने कहा “तुमने अपने व्यापार के लिए उधार पैसे लिए थे। जब व्यापार चल पड़ा, तो तुमने, जिसके पैसे थे उसे लौटाए नही। सेठ ने कहा “गलत, वो मर गया था, किसे लौटाता?”, साधु ने कहा “झूठ नही। तुम भूल गए उसके मरने के समाचार पे तुम कितना खुश हुए थे?, उस दिन तुमने मिठाई बांटी थी। क्या मिठाई बांटना सही था? तुम उसके पैसे को सरकार को या अनाथालय या किसी जरूरतमंद को दे सकते थे पर तुमने नही दिया। तुम्हारी नीयत में खोट थी।
शर्मिंदा सेठ और कर्म का फल (Karm Ka Fal)
सेठ शर्मिंदा था। आज सेठ वहीं पर खड़ा था जहां पर आज से 20 साल पहले खड़ा था। आज ना तो पैसे थे न व्यापार और ना ही पुत्र और ढेर सारा कर्ज था। साधु ने कहा ये तुम्हारा पुत्र वही लड़का रोहित था, ये अपना हिसाब करने आया था, हिसाब कर लिया और चला गया। जितना उसने तुम्हे दिया था सूद सहित वापस ले लिया। तुमने उसकी शिक्षा, शादी, हॉस्पिटल सब पर खूब खर्च किया जब वो गया तुम्हे भिखारी बना कर गया। सेठ ने सुबकते हुए कहा, मान लिया मेरी गलती थी।
पत्नी के कर्म का फल (Karm Ka Fal)
इस बेटी की क्या गलती, इससे तो सिर्फ दो महीने पहले शादी हुई थी। साधु ने कहा ये इसका कर्म फल (Karm Ka Fal) था। ये पिछले जन्म में वो घोड़ी थी जिसके चलते रोहित की जिंदगी खत्म हुई। आज रोहित ने बदला ले लिया, और इसकी जिंदगी नर्क बना कर चला गया। जीवन में कुछ भी बिना कारण नही हो रहा है, हो सकता है बीज आपने बहुत पहले लगाया हो और आप भूल गए हो। वही बीज पेड़ बन जाता है तब हमें पता चलता है। इसलिए आप कैसा बीज लगाते हो हमेशा याद रखो। प्रकृति हिसाब करती है, आप याद रखो न रखो प्रकृति हमेशा याद रखती है। सेठ, निरुत्तर, हताश, घर की सीढ़ी पर बैठा, अपने कर्म को कोस रहा था। हमेशा अपने कर्म पर ध्यान दें, ऊपर वाले की लाठी में आवाज नही होती पर असर पूरा करती है।