खटखटा बाबा की कहानी (Khatkhata Baba Ki Kahani)

खटखटा बाबा की कहानी (Khatkhata Baba Ki Kahani)

 खटखटा बाबा की कहानी (Khatkhata Baba Ki Kahani) 1905 में शुरू होती है। उत्तर प्रदेश (तब के सेंट्रल प्रोविंस) के इटावा में एक डिप्टी कलेक्टर हुआ करते थे। उनका नाम था पंडित शिव प्रसाद चौधरी। वे मूलरूप कश्मीरी पंडित थे। उन्हें मिस्टर सपरु के नाम से बुलाया जाता था। सपरु जी अपना दिन भर का काम खत्म कर रात के दस बजे सोने आते। उनका एक सहायक हुआ करता था। उसका नाम मनोहर था। जैसे ही साहब आते, मनोहर उनकी सेवा में लग जाता। उनके नहाने-धोने, खाने-पीने का पूरा प्रबंध करता। जब सपरु साहब के सोने का समय हो जाता तब वह अपने मालिक के पैर दबाता और उनके सो जाने पर ही वहां से जाता। उस दिन भी ऐसा ही हुआ सपरु साहब सोने के लिए आ चुके थे। मनोहर उनके पैर दबा रहा था। तब सपरु साहब ने मनोहर से कहा, “मनोहर! आज एक कहानी सुनाओ।

मनोहर की कहानी

मनोहर ने भी उन्हें कहानी सुनाना शुरू कर दी। एक बार की बात है। एक भव्य राज्य में एक अहंकारी राजकुमारी रहती थी। उसकी बहुत सारी दासियां थी। सभी दासियां पूरी सतर्कता से के साथ अपने कार्य को करती थी। उसकी एक खास दासी थी। जो उसके बिस्तर को प्रतिदिन साफ सुथरा करती सजाती एवं उस पर इत्र लगती। साथ ही प्रतिदिन वह राजकुमारी के कमरे को सजाती। एक दिन की बात है नगर में उत्सव का आयोजन होना था। सभी दासियों के पास बहुत कार्य थे। इस दासी के पास भी बहुत सारे कार्य थे। उसने सारे कार्य समाप्त कर, राजकुमारी के कक्षा की सजावट के लिए पहुंची। अत्यंत थकी दासी ने पूरी लगन के साथ राजकुमारी के कक्ष को सजाया। फिर इत्र भी उनके बिस्तर पर लगा दिया। अपनी सजावट देख दासी अति प्रसन्न हो रही थी। सोचा आज तो राजकुमारी अति प्रसन्न होंगी।

दासी को मिला दंड

फिर उसके मन मे ख़्याल आया कि, “क्यों न मैं भी एक बार इस बिस्तर पर सर रख कर देखुं? की इस पर सो कर कैसा लगता है? दासी अति थकी हुई थी। साथ ही कमरे में आ रही ठंड़ी हवा ने मानो लोरी का काम किया हो। दासी को पता भी नही चला कि उसे कब नींद आगई। उसके सोते ही राजकुमारी वहाँ आ गई। राजकुमारी ने दासी को अपने बिस्तर पर सोता देख, अपना आपा खो दिया। राजकुमारी के अहंकार को ठेस पहुंची की ‘मेरे बिस्तर पर कोई दासी सो रही है’। वह चिल्ला उठी। “रे दासी! तेरी औकात की तू मेरे बिस्तर पर सोए? तुझ जैसी को मेरे कमरे में आने की अनुमति है, वही प्रयाप्त है और तूने मेरे बिस्तर पर अपने नीच देह को रखने का दुःसाहस किया। तुझे अभी के अभी यहीं 60 कोड़े मारे जाएं।”

दासी की माफी और हंसी

दासी राजकुमारी के पैरों में गिर कर जीवन दान मांगने लगी। बोली, “राजकुमारी! मैं 60 कोड़े का दर्द नही सह पाऊंगी। मुझे माफ़ कर दीजिए। मुझसे गलती हुई है। परंतु, आप मुझे गलत समझ रही हैं। मेरा आपके बिस्तर पर सोने की कोई मंशा नही थी। मुझसे यह अपराध गलती से हुआ। मुझे माफ़ कर दीजिए। परंतु, राजकुमारी के अहंकार ने इतने क्रोध को जन्म दे दिया था कि वह समझ ही नही पाई की वो किस अपराध के लिए क्या दंड देने जा रही है। दासी को कोड़े पड़ने लगे। वह कराहने लगी। कोड़े की पीड़ा सह नही पा रही थी। कष्ट में चिल्ला रही थी। जब लगभग उसे 30 कोड़े पड़ चुके थे, तब वह अचानक से हंसने लगी। उसकी हंसी सुनकर सब अचंभित रह गए।

दासी का ज्ञान

राजकुमारी ने उसके हंसने का कारण पूछा। तब दासी ने कहा, “हे धर्मविमुख राजकुमारी! मुझे ख्याल आया कि मैं तो चंद क्षण भूल वश इस बिस्तर पर सोई तो ईश्वर ने मुझे 60 कोड़ों की सजा दी है। तुम तो इस पर जाने कितने दिनों से सो रही हो। मैंने तो गलती की कि राजकुमारी के बिस्तर पर मुझे झपकी आ गई। इसके लिए मुझे अपराध अनुकूल दंड भी मिलना चाहिए। परंतु यह दंड तो नीतिविरुद्ध और अहंकार अनुकूल हैं। तुमने अन्याय किया है। तुम्हारे इस अपराध का दंड जाने कैसा होगा?” मनोहर कहानी पूरी भी नही कर पाया था कि, सपरु साहब विचलित हो अपने शयनकक्ष से बाहर निकल आए। मनोहर भी पीछे पीछे भागा । मनोहर अपने मालिक से पूछता रहा, साहब मैंने कुछ गलत कह दिया क्या? मुझे क्षमा कर दीजिए। साहब घर से बाहर निकल एक वृक्ष के नीचे जा बैठे।

कौन थे खटखटा बाबा? (Khatkhata Baba Ki Kahani)

फिर साहब ने मनोहर से कहा, “नही! तुमने कुछ भी गलत नही कहा अपितु मेरी आँखें खोल दीं। मैं यह क्या कर रहा था अपने जीवन मे अब तक? मैं भी तो उन्ही का चाकर हूँ जो मानवता विरुद्ध नीति लगा कर भारत मे काम कर रहे हैं। अपने ही लोगों को मेरे द्वारा दंड मिलता है जो अपराध के सामने कई गुना बड़ा होता है। अन्याय तो मुझसे भी हो रहे हैं” मनोहर कुछ समझ नही पाया। परंतु, सपरु साहब सब समझ चुके थे। उन्होंने अपनी नौकरी छोड़ दी। जीवन से सन्यास ले लिया।

अगले दिन सुबह उठ कर एक सोंटा, एक लोटा, एक लंगोट, एक जोड़े खड़ाऊं एवं एक गमच्छा ले कर घर से निकल पड़े। वे यमुना नदी में घंटो नहाते। भिक्षा में जो अन्न मिलता वह यमुना किनारे बसे पशु पक्षियों के साथ बांट कर खाते। फिर, वन में भीतर जाकर पूरे दिन ध्यानस्थ रहते। फिर शाम से देर रात तक ग्रंथों का अध्ययन करते।

संत खटखटा बाबा (Khatkhata Baba Ki Kahani)

जब वे चलते तो उनके खड़ाऊं से खट खट की आवाज आती है इसीलिए आसपास के लोगों ने उनका नाम खटखटा बाबा (Khatkhata Baba) रख दिया। वे आज भी वह खटखटा बाबा के नाम से ही जाने जाते हैं। सरस्वती पीठ बाबा का आश्रय बन गया। बाबा को मौसम से कोई प्रभाव नही पड़ता। वे सदैव खुले आसमान के नीचे ही सोते। मानो गर्मी, सर्दी और बरसात उनके मित्र हों। जल्दी ही बाबा (Khatkhate Baba) के चमत्कार एवं ज्ञान की बातें पूरे भारत मे होने लगीं। दूर दूर से लोग बाबा के दर्शन को आते। बाबा भौतिकता के मद में चूर लोगों को रोज समझाते की चाकरी ही करनी है तो मन की नही ईश्वर की करो। जीवन को व्यर्थ मत करो। बाबा मूल रूप से कश्मीरी थे। वहां के राजा हरि सिंह भी बाबा के दर्शन को आते। उत्तरप्रदेश के जसवंत नगर में बाबा का मंदिर है।

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