भारत के पहले स्वतंत्रता सेनानी: मंगल पांडेय (Mangal Pandey)
भारत माता के वीर सपूत मंगल पांडे (Mangal Pandey) का जन्म 19 जुलाई 1827 को उत्तर प्रदेश राज्य के बलिया जिले में हुआ था। भारत के इस वीर सपूत ने 29 मार्च 1857 को अन्याय के विरोध में अपने वरिष्ठ अधिकारी पर गोली चलाई थी। उनके इस कदम ने देखते ही देखते गदर का रूप ले लिया जो आगे चलकर भारतीय स्वतंत्रता की पहली लड़ाई के नाम से जानी गई। उनके इस साहस भरे कदम ने न केवल उनके साथियों को उत्साहित किया बल्कि पूरे देश के युवाओं में अन्याय के प्रति विरोध करने का जोश भर दिया।
अंग्रेजों की नीचता का एक और उदाहरण
वे ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की 34वीं बंगाल नेटिव इन्फेंट्री में कार्यरत थे। अंग्रेजी शासन ने एक बार फिर भारतीयों को नीचा दिखाने का कार्य किया। उन्होंने सेना में एनफील्ड राइफल को पेश किया इस राइफल के कारतूस को सैनिको को अपने मुंह से छीलना पड़ता था। उसमें गाय और सूअर की चर्बी का प्रयोग किया गया था। जैसे ही कंपनी में यह बात फैली तो मंगल पांडेय तक पहुंच गई। धार्मिक भावनाओं के साथ खिलवाड़ ने पांडेय की सहन शक्ति को ही चूर कर दिया। वे समझ चुके थे अब चुपचाप सहने का समय नही है।
मंगल पांडेय (Mangal Pandey) ने कह दी साथियों से दिल की बात
गोली बंदूक से लैस मंगल पांडेय सैनिको के बीच पहुंचे और बोले, “नए कारतूसों को चबा कर तुम सब अधर्म करो। मैं नही करूँगा। इससे अच्छा तो इन अंग्रेजों को ही मार दिया जाए। अंग्रेज आ गये हैं, तुमलोग भी साथ चलो।” अधिकारियों को भी मंगल पांडेय के बारे में पता चल चुका था। सार्जेंट मेजर जेम्स हेव्सन वहां पहुंचे। पहुंचते ही हेव्सन ने जमादार ईश्वरी प्रसाद को आदेश दिया कि, “इस विद्रोही को बंदी बनाया जाए”। इस पर ईश्वरी प्रसाद ने असहमति जताते हुए मना कर दिया। शेख पलटू नाम के एक सिपाही के अलावा किसी भी सिपाही ने अंग्रेज़ अधिकारियों की मदद नही की। शेख पलटू को भी बाकी सिपाहियों ने धमकी दी कि, “पांडेय को जाने दे, वार्ना तुझे जान से मार देंगे”।
मंगल पांडेय ने की अधिकारियों की हत्या
अंततः 29 मार्च 1857 को कोलकाता के बैरकपुर में मंगल पांडेय ने सार्जेंट मेजर जेम्स हेव्सन और उनके सहायक हेनरी बॉघ की हत्या कर दी। यह केवल दो लोगों की हत्या नहीं थी, बल्कि अपने लोगों पर लगातार हो रहे अन्याय को रोकने का पहला कदम था। अंग्रेजों के नए-नए नियम कानून से करोड़ों लोगों का जीवन गुलामी में तब्दील हो गया था। कितने ही लोग अपनी मृत्यु से पहले मर रहे थे। परन्तु इसे देखने सुनने वाला कोई नहीं था। मंगल पांडेय की इन गोलियों ने वो कर दिखाया जो लंबे समय से बोली जा रही बोलियों ने नही किया था। लोग जत्थे बना बना कर जहां तहां इन अंग्रेजों से लड़ रहे थे। हम संसाधनों की कमी से बाद में हारते हैं पहले हौसले से हारते हैं। पांडेय की इस वीरता ने भारत भूमि को एक बार फिर हौसले से सींच दिया था।
भारत के अमर सपूत: मंगल पांडेय (Mangal Pandey)
मंगल पांडे (Mangal Pandey) को जब लगा कि अब वह अंग्रेजों के द्वारा पकड़े जा सकते हैं तो उन्होंने खुद को मारने का प्रयास किया। हालांकि वह घायल हुए और जीवित रह गए। एक सप्ताह बाद उन पर मुकदमा चलाकर उन्हें मौत की सजा सुनाई गई। साथ ही ईश्वरी प्रसाद को भी फांसी की सजा सुनाई गई। 8 अप्रैल 1857 को दोनों महान सपूतों को फांसी की सजा हुई। शेख पलटू को पदौन्नति मिली। शेख पलटू को हवलदार बनाया गया। हालांकि, इसके बाद छावनी के भीतर ही सिपाहियों ने पांडेय से विश्वास घात करने के लिए शेख पलटू की हत्या कर दी। 6 मई को बंगाल नेटिव इन्फेंट्री की पूरी 34वीं रेजिमेंट को भंग कर दिया गया। दासता के विरुद्ध विरोध एवं युद्ध ही समाधान है।
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