नरभक्षी आत्मा ‘छोया‘ (Narbhkashi aatma Chhoya)
नरभक्षी आत्मा ‘छोया’ (Narbhkashi aatma Chhoya) की कहानी दार्जिलिंग की है। दार्जिलिंग शहर से लगभग 10 से 12 किलोमीटर बाहर एक बुजुर्ग दंपत्ति रहते थे। जिनकी इकलौती बेटी थी, विद्या। उनकी बेटी की शादी लगभग 10-12 साल पहले कोलकाता में रहने वाले एक बहुत बड़े उद्योगपति से हो चुकी थी। कोलकाता के बड़े जाने माने उद्योगपति होने कि वजह से उनके लिए अपने बच्चों को कोलकाता में पढ़ाना लिखाना एवं उनकी सुरक्षा एक बड़ी जिम्मेदारी बन गई थी। इसलिए उन्होंने प्रारंभिक शिक्षा के लिए अपने बच्चों को दार्जिलिंग भेज दिया। दार्जिलिंग में बच्चे अच्छे स्कूल में पढ़ भी रहे थे और उन्हें परिवार का प्रेम भी मिल रहा था। हर माता–पिता अपने बाल बच्चों को सुरक्षित रखना चाहते हैं परंतु किसकी जिंदगी कितने दिन की है यह बात केवल नियति जानती है।
बच्चों की पढ़ाई
बच्चे धीरे धीरे बड़े हो रहे थे और अब पांचवी कक्षा में पहुंच चुके थे। विद्या के बेटे शार्दुल और देवाशीष दोनों जुड़वा थे और 10 वर्ष के हो चुके थे। दोनों बच्चे नाना घर में रहते स्कूल जाते और आसपास के इलाकों में खेलते। एक दिन शाम को खेलते खेलते सुनसान जंगल की ओर चले गए जहां में भटक गए। वहां से बाहर निकलने का रास्ता ढूंढते हुए दोनों भटके हुए बच्चे नरभक्षी आत्मा ‘छोया’ के इलाके में पहुंच गए। जब वे वहां पहुंचे तो उन्हें लगा, पेड़ों से कुछ चादर के जैसा उतरता है और फिर वापस पेड़ पर चढ़ जाता है। वे डरने लगे। हवाएं तेजी से आती और उनके पैरों से टकराती और चली जाती। दोनों बच्चे बुरी तरीके से डर चुके थे। अंधेरा होने को था।
विचित्र नरभक्षी आत्मा ‘छोया’ (Narbhkashi aatma Chhoya)
छोया के पैर नहीं थे। वह जमीन के ऊपर चलती थी। देख कर लगता मानो सफेद रंग के लिबास में हो। छोया के साये से ऐसा लगता था जैसे वो हमेशा एक सफेद चादर ओढ़े रहती थी। वो अपने शिकार को इसी चादर के अंदर समेट लेती थी। जब वह किसी का शिकार करने वाली होती थी तब वह अपने चादर को खोलती और उसे चादर के अंदर ले लेती थी। फिर, मिलती थी तो सिर्फ उस आदमी की लाश। जो एक बार छोया के इलाके में चला जाता है छोया उसे कभी नहीं छोड़ती। उसे जाकर मार ही देती थी। वह अपना रूप बदल सकती थी। अपनी आवाज बदल सकती थी एवं भ्रमित भी कर सकती थी।
आर्मी की एक गाड़ी
छोया पेड़ों से उतर कर तेजी से इन दोनों की तरफ बढ़ रही थी। तभी उधर से आर्मी की एक गाड़ी गुजरी। आर्मी वालों ने देखा कि वहां दो बच्चे भटके हुए हैं। उन्होंने उन बच्चों को से पूछा वह वहां क्या कर रहे हैं और उनके माता–पिता कहां है? बच्चों ने अपने भटकने की पूरी कहानी उन्हें बता दी। आर्मी वालों ने उन बच्चों को घर तक पहुंचा दिया अब दोनों बच्चे अपनी नानी घर में सुरक्षित तो थे परंतु बड़े डरे हुए थे। जब नाना नानी ने उनसे पूछा की, बेटा! क्या हुआ? तुम इतने डरे से क्यों हो? तब दोनों बच्चों ने रोते रोते पूरी दास्तान बता दी।
नाना नानी की तरकीब
नाना नानी समझ गए कि उनके बच्चे छोया के इलाके में चले गए थे। तब जल्दी से नानाजी ने अपने घर के चारों तरफ लोबान जला दिया। अपने घर के अंदर भी लोबान जला दिया। फिर दोनों बच्चों से कहा, आज रात कोई कितना भी आवाज दे, कुछ भी हो जाए पर घर के बाहर नहीं जाना है और किसी भी आवाज का उत्तर नहीं देना है। उधर उन्होंने अपने दामाद और बेटी को फोन करके जल्दी से बच्चों को ले जाने के लिए कहा।
घबराए नाना नानी
छोया या तो अपने इलाके में शिकार करती थी या तो आधी रात में। छोया अपने इलाके से जितना दूर जाती उसकी शक्तियां उतनी कम हो जाती हैं। इसीलिए नाना चाहते थे कि बच्चे कोलकाता चले जाएं, जहां छोया उन्हें परेशान ना कर पाए। बस इस एक रात की बात थी और नाना नानी को अपने नातियों को एक रात के लिए बचा कर रखना था नाना नानी भी बहुत बुरी तरीके से घबराए हुए थे। जैसे–जैसे रात बढ़ने लगी वैसे–वैसे छोया की शक्तियां बढ़ने लगी और वही हुआ जो हर बार होता था। छोया आधी रात को शार्दुल और देवाशीष को मारने उनके नाना के घर पहुंच ही गई।
अलग–अलग आवाज आने लगी घर में। अलग–अलग महक आने लगी। दोनों बच्चे डरे से अपने कमरे में बैठे थे अपने नाना नानी के साथ। उन्हें बस इंतजार था तो उनके माता–पिता के आने का की कब वे आए और कब सुबह हो और वह यहां से चले जाए।
छोया की चाल
बहुत देर तक छोया ने अपनी चालें चली लेकिन नाना नानी के सूझबूझ से बच्चे उसमें नहीं फंसे। फिर अचानक से गाड़ी की आवाज आयी, अभी रात के 2:00 रहे थे। नाना नानी को भी हिम्मत आयी और बच्चों को भी सुकून मिला। जब विद्या और उनके पति ने गेट खटखटाया तो नाना ने नानी से कहा, “तुम बच्चों के पास बैठो। मैं दरवाजा खोलता हूं।” नाना दरवाजा खोलने गए और नानी बच्चों का के साथ बैठी रही। तभी घबराई हुई विद्या कहती है, “मम्मी तुम कहां हो और मेरे बच्चे कहां है? शार्दुल अपनी नानी का हाथ छोड़ अपनी मां की तरफ दौड़ता है और यह क्या? विद्या का रूप लिए छोया अपनी सफेद चादर फैलती है और शार्दुल को उस में लपेट ले जाती है।
शार्दुल का गायब होना
देवाशीष डर से बेहोश हो जाता है और नानी चिल्लाने लगती है। नाना अपने बेटी दामाद के साथ जब अंदर आते हैं तो देखते हैं की शार्दुल नहीं है और उसकी नानी रो रो कर सारी बातें बताती है। वो लोग समझ नही पा रहे थे की दूसरे बेटे को बचाएं की गायब बच्चे को ढूंढे। अगले सुबह छानबीन पर छोया के इलाके के बाहर शार्दुल का मृत शरीर मिलता है। इस दुख को उसके परिवार वाले सह नहीं पाते है। दोनों पति पत्नी अपने साथ देवाशीष को गाड़ी में बिठाते हैं। साथ ही शार्दूल के पार्थिव शरीर को लेकर कोलकाता वापस आ जाते हैं। जब कुछ वर्ष बीत गए, तब देवाशीष 11वीं से 12वीं में जा चुका था। इसी समय उसके नाना का देहांत हो जाता है।
देवाशीष का लौटना
तब देवाशीष एक बार फिर अपने माता–पिता संग दार्जिलिंग लौटता है। उसकी नानी ने पहले से ही पूरे घर में लोबान जला रखा था ताकि उसके नाती को कुछ ना हो। परंतु छोया जिसे एक बार देख लेती है अपने इलाके में उसे कभी जिंदा नहीं छोड़ती है। उस पर हमला अवश्य करती है। हालांकि अब देवाशीष बड़ा और समझदार हो चुका था। उसे पता था कि यदि छोया आये तो उसके किसी भी छलावे में नही आना है। उसके नानी और माता–पिता ने उसे बार–बार समझाते रहे कि बेटा कोई भी आवाज दे, तुम्हें नहीं जाना है। तुम्हें उसकी बात का जवाब नहीं देना है। चाहे कुछ भी हो जाए। हम में से किसी को भी तकलीफ में भी देख लो तो भी तुम कुछ मत करना।
नरभक्षी आत्मा ‘छोया’ का वार (Narbhkashi aatma Chhoya)
एक बार फिर छोया उस रात वहां आयी। पहले तो उसके बहुत सारे तरीके विफल हुए। वह देवाशीष को डराने में और कमजोर करने में असफल रही। परंतु छोया शिकार करना जानती थी। उसने मृत शार्दुल का भेष धर लिया। वही 10 वर्ष का शार्दुल, जो अपने भाई से कहता है, “मेरे भाई मुझे बचा लो यह मुझे रोज सताती है। मुझे बचा लो। अपने मरे हुए भाई के मोह में आकर देवाशीष उठकर उसकी तरफ दौड़ता है। वैसे ही छोया अपनी सफेद चादर में इस बार देवाशीष को लपेट कर ले जाती है। शार्दूल की तरह ही उसका भी मृत देह छोया के इलाके के बाहर मिलता है।
यह कहानी एक सच्ची घटना पर आधारित है। हमें सीखना चाहिए की आत्माओं के इलाकों में नहीं जाना चाहिए। अनजान इलाकों में नहीं जाना चाहिए। जब किसी आत्मा के बारे में जानते हैं, उसके शिकार करने के तरीके को जानते हैं तो उसे हंसी में नहीं लेना चाहिए। अन्यथा आप अपने या अपनों के जान से हाथ धो बैठेंगे।
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