पारिवारिक कुरीतियां एक अभिशाप (Parivarik Kuritiyan ek Abhishap)
पारिवारिक कुरीतियां एक अभिशाप (Parivarik Kuritiyan ek Abhishap) समसामयिक कहानी है। दिसंबर का महीना था। बहुत जोर से ठंड पड़ रही थी। सुबह का समय था। अच्छी धूप खिली थी। मालती देवी अपने घर के बाहर अपनी गायों को चारा खिला रही थी। तभी उनके दरवाजे पर एक भिखारन आई। मालती देवी के घर के परिसर का दरवाजा बड़ा एवं भव्य था। दरवाजे के बाहर खड़े होकर उस भिखारन ने मालती देवी का आवाज लगाई, “माई! खाने को रोटी है क्या? यदि कोई काम हो तो, मैं वह भी कर दूंगी! बस बदले में, कुछ खाने को दे दो।”
मालती देवी ने अपनी नजर उठाकर उसे देखा तो पाया, कम उम्र की सूखी हुई महिला दरवाजे पर खड़ी है। जैसे कितने दिनों से सही से खाना पानी न खाया हो। कमज़ोरी से झुकी हुई थी। परंतु फटे पुराने कपड़े साफ सुथरे थे। देखने से वह महिला पेशेवर भिखारन नहीं लग रही थी।’
भीख क्यों मांग रही हो?
मालती देवी ने दरवान से कहकर उसे अंदर आने दिया। अंदर से उसे रोटी गुड़ और पानी ला कर दिया। वह महिला जल्दी-जल्दी खाने लगी। महिला रोटी खाते हुए ना इधर-उधर देख रही थी ना कुछ बोल रही थी। बस उसका पूरा ध्यान रोटी पर था। जल्दी ही उसने रोटियां खत्म कर ली। खाकर महिला ने कहा, “माई! रोटी के लिए धन्यवाद। यदि कोई काम हो तो आप मुझे बता सकती है, मैं घरेलू काम जानती हूं।” मालती देवी ने कहा, ‘वैसा कोई काम नहीं है। पर यदि तुम्हें काम आता ही है तो फिर भीख क्यों मांग रही हो? हम तुम्हे जानते नही तो घर पे काम करने के लिए कैसे रख लें? पहले तो कभी नहीं देखा तुम्हे इधर भीख मांगते! कहां से आई हो?
भिखारन की आपबीती (Parivarik Kuritiyan ek Abhishap)
मालती देवी की बात सुनकर महिला ने अपनी आपबीती सुनाई। महिला ने कहा, “माई! मैं यहीं पास के गांव नंदपुर से आई हूं। गावँ के स्वर्गीय भानु बाबू की बहू हूं। मेरा जन्म सोनपुर गावँ के एक प्रतिष्ठित परिवार हुआ था। लड़की होने के कारण मेरे माता-पिता ने मुझे पढ़ाया लिखाया नहीं और लड़का होने के कारण मेरा भाई इतने लाड में रहा कि उसने पढ़ाई लिखाई नही की। हम दोनों अनपढ़ रह गए। बाबू जी व्यापारी थे। माता पिता की मृत्यु के बाद भाई ठीक से व्यापार संभाल ना सका। घाटा बढ़ता गया, मुनीम जी ने भी बहुत धोखा दिया। धन के अभाव में मेरा विवाह अच्छे लड़के से नही हो पाया। मेरा पति बहुत शराब पीता था और मुझे मारता भी था। घर की एक-एक चीज बेचकर दारु पी गया। एक दिन नशे की हालत में गाड़ी के नीचे आ गया।”
बुरे समय मे कोई काम नहीं आता
महिला ने आगे बताया, “मैं और मेरी सास ही अब बचे हैं। घर में कोई पुरुष न होने के कारण हमारी पुश्तैनी जमीनों को संबंधियों ने कब्जा लिया है। दाने दाने को मोहताज हो गए हैं। इसीलिए मैं भीख मांग कर खाती हूं (Shikshaprad Kahaniyan)। मैं पढ़ी-लिखी तो हूं नहीं। मुझे केवल घरेलू काम आते हैं। गांव में लोग अपना काम खुद करते हैं तो वहां कोई काम भी नहीं देता था। इसीलिए अपनी सास को लेकर शहर आई हूं। यहाँ तो घरेलू काम के लिए लोग हम जैसो को रख लेते हैं। कोई घर का काम मिल जाता तो हम सास बहू का गुजारा चल जाता।” उसकी कहानी मालती देवी के साथ-साथ उनका पूरा परिवार सुन रहा था।
मालती देवी की अपने बच्चों को सीख
तब मालती देवी ने पलट कर अपने बेटे और बहूओं से कहा, “देखो! बच्चों को लाड़ में कुछ नहीं सीखने से क्या होता है? बेटा बेटी में फर्क करने से क्या होता है? दारु पीने से क्या होता है? परिवार के कमजोर होने से क्या होता है? अपने आप यदि ना समझ में आए तो हमें, किसी और की कहानी से समझना चाहिए। अपने बच्चों को सही से पढ़ाना लिखाना चाहिए। लाड में आकर उनका भविष्य नहीं खराब करना चाहिए। नशा सदैव घर बर्बाद करता है। परिवार के सदस्यों को एक दूसरे का साथ देना चाहिए। नही तो, संबंधी भी धोखा देते हैं।”
मिल गया काम (Parivarik Kuritiyan ek Abhishap)
फिर मालती देवी ने उस महिला से पूछा, “क्या तुम्हें गाय की सेवा करनी आती है? यदि आती है तो आज से रोज तुम्हारा काम इन गायों की सेवा करना है। इसके बदले मैं तुम्हें और तुम्हारी सास को तीन वक्त का खाना और महीने के अंत में ₹2000 दूंगी। उस महिला के आंखों में खुशी के आंसू बह गए। कितने दिनों से उसने दो समय का खाना नहीं खाया था। आज ईश्वर की दया से उसे तीन समय का खाना और ₹2000 नसीब हुए थे। वह मालती देवी के चरणों में गिर गई और उसने कहा, “माई मैं आपको शिकायत का मौका नही दूंगी।