प्रत्यक्षम् किम् प्रमाणम् (pratyakshm kim pramanam)

प्रत्यक्षम् किम् प्रमाणम् (pratyakshm kim pramanam)?

जहां सच्चाई की बात होती है वहां प्रत्यक्षम् किम् प्रमाणम् (pratyakshm kim pramanam) का उपयोग किया जाता है।  राजा कृष्णदेव राय की सभा में तेनालीराम रत्न थे। यह कौन नहीं जानता? परंतु, राजा कृष्णदेव राय की ही सभा में बहुत से दरबारी ऐसे भी थे, जो तेनालीराम से जलते थे। उनका मानना था कि, ‘महाराज हमेशा तेनालीराम की ही बड़ाई करते हैं। जबकि, तेनालीराम इतने भी कोई बुद्धिमान नहीं हैं। यह बात राजा कृष्णदेव राय तक पहुंची। राजा कृष्णदेव राय ने अपने सभा में दरबारियों से पूछा, “क्या आपको ऐसा लगता है कि, ‘मैं तेनालीराम की तरफदारी करता हूं’?” तब किसी भी सभासद ने कुछ भी नहीं कहा। सब की चुप्पी राजा कृष्णदेव राय के लिए हां का इशारा कर रही थी।

दरबारियों और तेनालीराम में श्रेष्ठता की परीक्षा

राजा कृष्णदेव राय ने अपनी सभा मे कहा, ठीक है। फिर आज सभा मे बुद्धिमत्ता से जुड़ा एक कार्य कर के आप सब देखिए। फिर, हमे भी बताईये की इस सभा मे कौन बुद्धिमान बड़ाई योग्य है। किसी का कोई प्रश्न या सुझाव?” तभी एक दरबारी ने हाथ जोड़कर बोलने का प्रार्थना की। महाराज ने कहा, “अनुमति है”। तब दरबारी ने कहा, “पहले हम सब उस प्रतियोगिता का भाग बनेंगे। यदि हम में से कोई ना कर पाए आपकी प्रतियोगिता को पूर्ण। तभी उसमें तेनालीराम भाग ले। क्योंकि, तेनालीराम सबसे पहले कोई तरकीब ढूंढ लेते हैं और उन्हें बुद्धिमान कहा जाता है। ऐसा नहीं कि हम में से कोई बुद्धिमान नहीं है।” महाराज ने मुस्कुराते हुए कहा, “ऐसा ही होगा। तेनालीराम सबसे अंत में ही भाग लेंगे।”

महाराज की कठिन योजना

महाराज ने दरबार के बीचो-बीच एक सुगंधित गुगुल युक्त कुंड मंगवाया। फिर उसे प्रज्वलित करने का आदेश दिया। जब गुगुल अच्छे से जल गया। तब महाराज ने कहा, “जो भी दरबारी, बिना गुगुल कुंड को छुए या बिना किसी और अन्य वस्तु की सहायता से इस धुएं को मुझ तक पहुंचता है। वही बुद्धिमान है।” सुनने में ही यह बड़ा अटपटा लग रहा था। भला बिना किसी वस्तु के सहायता के यह कैसे हो सकता है? कुछ लोग हाथों में धुएं को बंद कर राजा के पास ले जा रहे थे। पहुंचते पहुंचते उनके हाथों के बीच से धुवाँ निकल जाए। कोई धुआं को फुक कर लेन का प्रयास कर रहा था। कुछ कह रहे अगर नली मिल जाए तो हो सकता है। कुछ बर्तन में बर्तन में बंद करना चाहते थे धुआं को। परंतु कोई भी वस्तु उपयोग नहीं करना था।

परास्त हुए दरबारी

दरबारियों ने बहुत तरकीब लगाई। परंतु, कुछ हो नहीं पाया। इन सब को देख कर महाराज ने मुस्कुराते हुए पूछा, “क्या बात है? आप लोग अभी तक असफल प्रतीत हो रहे हैं।” सब के मुख मलिन थे। तब हारे हुए एक दरबारी ने महाराज से कहा, “महाराज! यदि तेनालीराम इसका हल निकाल पाए। तभी वह बुद्धिमान हैं। यदि वह नहीं निकाल पाए, इसका अर्थ वह भी हमारे ही तरह हैं। कोई विशेष नही हैं।” महाराज ने मुस्कुराते हुए कहा, “क्या तेनालीराम? आपको यह बात मान्य है?”तेनालीराम ने हाथ जोड़कर कहा, “जी अन्नदाता”।

बिना किसी वस्तु के, धुंआ पहुंचा महाराज तक (pratyakshm kim pramanam)

अब अंत मे तेनालीराम की बारी थी। तेनालीराम ने एक सेवक को बुलाकर उसके कान में कुछ कहा। सेवक जाने लगा और तेनालीराम वहीं खड़े रहे। सेवक ने जाकर, महाराज के सामने जितने दरवाजे और खिड़कियां थीं उन सबको खोल दिया। उससे हवा अंदर आई और गुगुल कुंड से धुएं को महाराज तक पहुंचाने लगी। गुगुल के धुएं को महाराज तक पहुंचते देख, दरबारी समझ गए की तेनालीराम ने एक बार उन्हें फिर परास्त कर दिया है। तब महाराज कृष्ण देव राय ने मुस्कुराते हुए कहा, “प्रत्यक्षम् किम् प्रमाणम् (pratyakshm kim pramanam)? प्रत्यक्ष को क्या प्रमाण?”

तेनाली राम की कहानियां – अदभुत कपड़ा (Tenali Ram Story – Adbhut Kapda) को पढ़ें।