प्रेम एवं मित्रता की कहानी (Prem Aur Mitrata Ki Kahani)
हर इंसान को पढ़ना चाहिए प्रेम एवं मित्रता की कहानी (Prem Aur Mitrata Ki Kahani)। आनंदपुर एक छोटा शहर था। वहां केवल एक सरकारी स्कूल था। सभी वर्ग, जाति एवं पंथ के बच्चे एक ही विद्यालय में पढ़ते थे। इसी विद्यालय की दसवीं कक्षा में विभा और रोहिणी भी पड़ती थीं। दोनो अनन्य सखा थीं। हालांकि, दोनो की आर्थिक स्थिति में जमीन आसमान का अंतर था। रोहिणी बड़े जमींदार की पुत्री थी। वहीं विभा के पिता नही थे और उसकी माता स्कूल में ही शिक्षिका थीं। आर्थिक स्थिति का अंतर कभी उनके जीवन मे देखने को नही मिला। रोहिणी के घर वाले भी विभा को बहुत प्रेम करते वहीं विभा के घर मे भी रोहिणी को बहुत अपनापन मिलता। विभा का परिवार रोहिणी के परिवार से आर्थिक रूप से कमजोर था। परंतु, प्रेम और अपनापन में कहीं कमी नही थी।
प्रेम से परिवार बनता है (Shikshaprad Kahani)
रोहिणी की माता नही थीं। विभा की माता से उसे बिल्कुल स्वमाता सा प्रेम मिलता था। रोहिणी और विभा दोनो को वे अपने हाथ से खाना खिलाती थी एवं पढ़ाती थीं। रोहिणी को कभी देर भी हो जाए विभा के घर तो कोई फिक्र की बात नही थी। रोहिणी के पिता भी समझते थे इस बात को। रोहिणी के पिता भी विभा के लिए कपड़े, मिठाईयां लाते थे। वहीं त्योहारों एवं जन्मदिन पर पैसे भी देते थे। दोनो सहेलियों में भी बहुत प्रेम, एकता एवं समानता थी। दोनो का प्रिय मिष्ठान्न भी खीर थी। दोनो सहेलियों का जीवन साथ मे आनंदपूर्ण चल रहा था। रोहिणी के चाचा की लड़की दिव्या भी इन्ही की सहपाठी थी। दिव्या इन दोनो को पसंद नही करती थी। वह मन ही मन इनका बुरा ही चाहती थी।
दसवीं की परीक्षा की तैयारी
इन सभी के दसवीं की परीक्षा आरही थी। विभा की माता थोड़ी कड़ाई से दोनों बच्चियों को पढ़ा रह थीं। आवश्यकता पड़ने पर, लड़कियों को उठ-बैठ लगाने का दंड भी देतीं। एक दिन की बात है, दिव्या ने रोहिणी से दो दिन के लिए उसके गणित और विज्ञान की कॉपी मांगी। रोहिणी ने दे दी। जब वह विभा के यहाँ पहुंची तो माता जी, जो कि शिक्षिका भी थीं, उन्हीने “कॉपी निकालने” को कहा। रोहिणी ने सारी बात बता दी। विभा की माता ने रोहिणी से कहा, “परीक्षा के समय कोई किसी को कॉपी किताब देता है भला! वह भी उसे जो तुमसे ईर्ष्या करता हो। दो दिन में मुझे कॉपी चाहिए। न मिले तो आकर यहाँ सौ बार उठ बैठ लगाना।”
गाय ने खा ली कॉपी
दो दिन बीत गए। परंतु, रोहिणी की कॉपी वापिस नही मिली। जब रोहिणी ने अपनी बहन पर गुस्सा करते हुए अपनी कॉपी मांगी। तब उसकी बहन ने कहा कि, “मैं बाहर बैठ कर कॉपी से पढ़ रह थी। माँ के बुलाने पर जब मैं अंदर आई तब तक गाय ने कॉपी खा ली।” दुखी रोहिणी रोती हुई विभा के घर पहुंची और रोते रोते उठ बैठ करने लगी। यह देख कर विभा ने उससे कारण पूछा। रोते रोते रोहिणी ने सारी बात बताई। विभा ने उससे कहा, “रो मत! मेरी कॉपी है ना! हम दोनों उसी से बारी बारी पढ़ लेंगे।” विभा की माँ अंदर से दोनों की बातें सुन रही थी। उन्हें अपनी बेटी की सोच पर गर्व हुआ।
बुरे समय मे सही उपाय आवश्यक
कुछ समय बाद, विभा की माँ दोनों बच्चियों के लिए नाश्ता लेकर पहुंची। तब रोहिणी ने रोते हुए कहा, “नही! नही! मुझसे गलती हुई है। मैंने परीक्षा के समय अपनी कॉपी अपनी बहन को दे दी। वो कहती है, मेरी कॉपी गाय ने खा ली।” विभा की माता ने रोहिणी को गले से लगा कर चुप कराया। उन्होंने उससे कहा, “बेटा! मैंने सब बात सुन ली है। अब जो हो गया सो हो गया। इससे सीख लो। आगे की तैयारी करो। बुरे समय मे सही उपाय आवश्यक है। दोनो के पास समय कम है। दोनो को एक ही कॉपी से पढ़ना है। दोनो अपनी अपनी समय सूची बनाओ। ध्यान रहे दोनो के गणित एवं विज्ञान पढ़ने का समय अलग अलग हो।”
अच्छाई एवं मेहनत का फल अच्छा एवं मीठा (Prem Aur Mitrata Ki Kahani)
मां के जाने के बाद, विभा ने भी रोहिणी को धैर्य बंधाया। दोनो सखियों ने मिल कर माँ के कहे अनुसार समय सूची बनाई। साथ ही यह भी निश्चित किया कि, जब हमारा खाली समय होगा तब हम खेलने के बजाए नोट्स लिखेंगे। ताकि परीक्षा के दिन हम दोनों पढ़ सकें। इसी तरह से दोनो तैयारी करने लगे। कुछ ही दिनों में गणित एवं विज्ञान की कॉपी भी बन कर तैयार होगई। उनकी परीक्षा भी अच्छी हुई। जब परीक्षाफल आया तो वे दोनों फूली न समाई। दोनो के नब्बे प्रतिशत से अधिक अंक आए। रोहिणी के पिता इतने प्रसन्न की दोनो बेटियों को कपड़े खरीदने ले गए। विभा की मां में दोनों की प्रिय खीर बनाई। मित्रता एवं एकता का कोई तोड़ नही है।