शांति या अशांति (Shanti Ya Ashanti): सबसे प्रिय कौन?
जीवन में शांति या अशांति (Shanti Ya Ashanti) आपके कर्म पर निर्भर करता है। राजवीर एक बड़ा उद्योगपति था। उसका भरा पूरा परिवार था। माता–पिता, पत्नी, तीन बच्चे, दो भाई और उनके परिवार, सब थे। एक ही बड़ी सी बिल्डिंग के अलग–अलग हिस्से में सारे भाई रहते थे। तीनों भाइयों का अपना–अपना उद्योग था। परंतु, इतने धन के बाद भी खुशहाली नहीं थी। उसका मूल कारण उनकी जीवन शैली एवं भौतिकवाद था। वे सदैव तुलना करते रहते। किसके पास क्या है? मेरे पास अच्छा है या उसके पास अच्छा है? यह केवल घर परिवार की बात नहीं थी। बल्कि, पूरे समाज का यही हाल था। सोशल मीडिया के युग मे खुश रहना उतना आवश्यक नही है। बल्कि, हम बहुत ज्यादा खुश हैं, आनंदित है, सुख–विलासिता में हैं, यह दूसरों को दिखाना जरूरी है। परिवार समाज की इकाई है। समाज आईना है। जैसे लोग वैसा समाज।
शान्तिमठ: सुझाव
एक बार की बात है राजवीर अपने ऑफिस में परेशान बैठा था। उसके सर में भारी दर्द हो रहा था। तब उसके कार्यालय में कार्यरत विजय ने राजवीर से पूछा, “क्या हुआ महोदय? आपकी तबीयत सही नही है क्या?” इस पर राजवीर ने कहा, “हाँ! मेरी तबीयत ठीक नही है, सर में दर्द है। क्या करूँ समझ नही आता ! इतनी मेहनत, धन, शौहरत के बाद भी शांति नहीं है। सदैव अशांत रहता है मन। हमेशा कोई न कोई बाधा या परेशानी आती ही रहती है।” विजय ने इस पर कहा, “महोदय! यहीं शहर के पास में ‘शांतिमठ‘ नाम का एक ध्यान केंद्र है। बहुत से लोग वहां अशांति, बेचैनी एवं अवसाद जैसी स्थिति से छुटकारा पाने जाते हैं। शान्तिमठ के जो गुरु जी है, वह भी युवाओं के बीच काफी चर्चित रहते हैं। आप चाहें तो वहां जाकर देख सकते हैं।“
शान्तिमठ: सोशल मीडिया प्रमोशन
विजय की बात राजवीर को अच्छी लगी। राजवीर ने विजय से शान्तिमठ का पता व्हाट्सएप्प के माध्यम से भेजने को कहा। राजवीर ने घर जा कर अपने परिवार से यह बात बताई। सब लोग काफी उत्साहित होगये। सबने कहा, “हाँ हाँ! उन गुरु जी को कौन नही जानता। देश विदेश में उनके शिष्य हैं। उनके साथ ‘सेल्फ़ी‘ लीजियेगा। साथ ही आश्रम से वीडियो रिकॉर्ड कर भेजिएगा। सोशल मीडिया टीम को भेज देंगे। अच्छी पब्लिसिटी होगी।” राजवीर को भी यह सुझाव बहुत अच्छा लग रहा था। वास्तविक परेशानी अशांति थी। परंतु, ये लोग हल ‘सोशल मीडिया प्रोमोशन‘ का करने की सोच रहे थे। यह केवल इन लोगों की समस्या नही है। ये दौर ही ऐसा है। बहिर्मुखी जीवन मे शांति ढूंढते है लोग।
शान्तिमठ: सुबह का कार्यक्रम
राजवीर शांति मठ पहुंच जाता है। सुबह के कार्यक्रम में भाग लेता है। जहां वह अन्य लोगों के साथ प्राणायाम, योगासन एवं हल्के–फुल्के शारीरिक व्यायाम करता है। इसके उपरांत शांत मुद्रा में बैठने की कोशिश करता है। परंतु, कोई भी साधक पहले ही दिन पूर्णतः शांत मुद्रा में कैसे बैठ सकता है? वह भी जो इतना अशांत था। राजवीर 30 सेकंड भी शांत मुद्रा में नहीं बैठ पाता। कभी इधर मुड़ता, कभी उधर मुड़ता, कभी अपने बाल को खुजाता, कभी अपनी उंगलियां मरोड़ता। ऐसे ही कुछ देर बीता और सुबह का कार्यक्रम समाप्त हुआ। सभी लोगों के सहमति के अनुसार लोगों में मठ का कार्य बांटा गया। राजवीर को पत्ते चुनने का काम सबसे आसान लगा। उसने वही काम चुना।
राजवीर का पछतावा (Shanti ya Ashanti)
कुछ देर पत्ते चुनने के बाद, उसे थकान लगने लगी। उसे लग रहा था मानो, वह कहीं जाकर फस गया हो। फिर, वह फोन निकाल कर मठ के वीडियो बनाने लगा और अपने घर वालों को एवं सोशल मीडिया टीम को भेजने लगा। वीडियो भेजने के बाद, वह खाने की प्रतीक्षा करने लगा। उसे अब यहाँ आकर पछतावा हो रहा था। वह सोच रहा था, “ पूरा एक दिन बरबाद कर, मैं यहाँ आया हूँ। दूर दूर तक शांति की कोई बात नहीं है। अपितु, अशांति और बढ़ रही है। गुरु जी से बात हो जाती तो समाधान ले कर चला जाता। यहाँ न जाने लोग इतना नीरस जीवन कैसे जीते हैं? सुबह उठ कर व्यायाम, फिर ध्यान, खाना भी नहाने के बाद मिलेगा, वह भी केवल दो बार, साधारण भोजन, साधारण कपड़े, आपस में बात भी इतनी कम करते है। क्या करेंगे ये लोग इतनी शांति का?
गुरु जी से मिला राजवीर
जैसे तैसे दिन काटा और शाम हो गई। अब एक–एक कर गुरुजी से मिलने का समय आवंटित हुआ। जब राजवीर की बारी आई तो वह जाकर बाबा के चरणों पर गिर रहा पड़ा। बाबा से कहने लगा, “गुरुजी! बहुत परेशानी है इसीलिए आपके पास आया हूं। सब ने कहा, “आपके पास सारी परेशानियों का समाधान है।” गुरु जी ने पूछा, “क्या परेशानी है?” राजवीर ने बताया, “बाबा जी! धन संपत्ति नाम सब है। परंतु, शांति नहीं है। मैं शांति की खोज में आया हूं।” गुरुजी मुस्कुराए और बोले, “कितनी आवश्यकता है तुम्हें शांति की?” राजवीर ने उत्तर दिया, “बाबा जी! अब तो जीवन में केवल शांति ही चाहिए और कुछ भी नहीं”। बाबा जी ने कहा, “ठीक है! एक महीना मठ में रुको। फिर देखते हैं तुम में क्या परिवर्तन आते हैं?”
अशांति को छोड़ना कठिन
गुरुजी की बात सुनकर, राजवीर हड़बड़ा कर कहने लगा, “नहीं! नहीं! एक महीना तो बहुत है। मैं इतनी देर नहीं रुक सकता। मेरा पूरा उद्योग चौपट हो जाएगा।” इस पर गुरुजी ने कहा, “अच्छा ठीक है! फिर एक सप्ताह रुक कर देखो!” इस पर राजवीर ने कहा, “परंतु, चार दिन के बाद तो मेरे बेटे का जन्मदिन है। उस पर नहीं गया तो आप समझते हैं ना पारिवारिक विवाद कैसा होता है? लोग मेरे बेटे के साथ मेरे रिश्ते को तौलने लगेंगे। संबंधी और मित्र मुझे कंजूस समझेंगे।” गुरुजी ने मुस्कुराते हुए उत्तर दिया, “नहीं राजवीर! मैं नहीं समझता मेरे पास ऐसा परिवार, ऐसे संबंधी या मित्र नहीं है।” तब राजवीर कहता है, “अरे गुरु जी! अच्छा ही है आपके पास परिवार नहीं है। शांति तो है कम से कम। इस परिवार के चक्कर में तो सारी शांति ही अशांति में परिवर्तित हो गई है।”
समझदार को समझाना कठिन (Shikshaprad Kahaniyan)
यह सब सुन कर बाबा जी राजवीर से पूछते हैं, “यदि शांति कि इतनी चाह है और परिवार अशांति का कारण है तो इस परिवार को छोड़ क्यों नहीं देते? इस पर आश्चर्यचकित होकर राजवीर ने कहा, “यह कैसी बात कर रहे हैं गुरुजी आप? फिर लोग क्या कहेंगे? दुनिया क्या कहेगी? मेरी इतनी इज्जत है! इतनी मेहनत से मैंने इसे कमाया है। मैं इसे नहीं छोड़ सकता।” गुरु जी ने फिर से प्रश्न किया, “तो फिर परिवार में शांति एवं सामंजस्य बनाने का प्रयास क्यों नही करते?” उत्तर देते हुए राजवीर ने बताया, “बाबा जी! सब अपने मन के मालिक हैं। मेरे भाई मुझसे जलते हैं। मेरी पत्नी केवल अपने मायके के बारे में सोचती है। सब दूसरों को दिखाना चाहते हैं। घर की शांति के बारे में कोई नहीं सोचता। परिवार में कभी शांति हो ही नहीं सकती”
गुरुजी ने दिखाया आईना (Shanti ya Ashanti)
आईना दिखाते हुए, बाबा जी ने तीखे शब्दों में कहा, “तुमने कहा तुम्हारा परिवार तुम्हारे लिए अशांति का कारण है। परंतु, तुम उसे छोड़ नहीं सकते। तुम कहते हो कोई परिवार की शांति के बारे में नहीं सोचता और तुम स्वयं ही अपने भाई एवं पत्नी की बुराई कर रहे हो। तुम कहते हो बाकी सब लोग केवल दूसरों को दिखाना चाहते हैं। परंतु, तुम अपने परिवार को इसलिए नहीं छोड़ सकते क्योंकि लोग क्या कहेंगे? क्या यह दूसरों को दिखाने के लिए नही है? मनुष्य का परिवार के साथ रहने का कारण केवल परिवार के प्रति उसका स्नेह एवं उसकी कर्मबद्धता होनी चाहिए। परंतु तुम्हारा यह कारण नहीं है। तुम्हारे सारे प्रश्नों के उत्तर भी तुम्हारे पास है। फिर तुम्हें मुझसे क्या चाहिए?”
दिखावटीपन मनुष्य को अंधा कर देता है
बाबा के तीखी बातें सुनकर भी ढीठता से भरे राजवीर ने कहा, “बस मैं शांति चाहता हूं गुरुजी! बाकी सब तो है मेरे पास। गुरु जी ने उसकी मूर्खता पर हंसते हुए कहा, “ठीक है! जब मिल जाए शांति तब मुझे भी बताना कि, बिना अशांति को छोड़ें तुम्हें शांति कैसे मिली?” राजवीर आज के मनुष्यों का ही रूप है। हम सबको अपनी अशांति (Shanti ya Ashanti) का कारण मालूम है। परंतु, हम उसे छोड़ना नहीं चाहते। शांति के लिए हम सब तरसने का दिखावा करते हैं। परंतु, उसके रास्ते पर कोई चलना नहीं चाहता। दुनिया में दिखावा इतना बढ़ गया है कि आज लोग अपने दुख एवं परेशानियों की भी प्रदर्शनी लगाते हैं। लोग केवल दिखावा करना चाहते हैं कि हमारे पास दुख और परेशानियां इतनी अधिक है। परंतु, कोई भी ना हल सुनना चाहता है और ना बताएं हल के रास्ते पर चलना चाहता है।