क्रोध गलत रास्ते का साथी (Shikshaprad Kahaniyan – Krodh Galat Raste Ka Sathi)

क्रोध गलत रास्ते का साथी (Shikshaprad Kahaniyan – Krodh Galat Raste Ka Sathi)

हमेशा क्रोध गलत रास्ते का साथी (Shikshaprad Kahaniyan – Krodh Galat Raste Ka Sathi) होता है। एक गांव में जमींदार हृदय सिंह रहते थे। हृदय सिंह के पाँच पुत्र थे। अभी पांचो स्कूल में पढ़ते थे। सबसे बड़ा पुत्र विराट दसवीं कक्षा में था और सबसे छोटा पुत्र श्रेष्ठ दूसरी कक्षा में था। गर्मी की छुट्टियां चल रही थी, तो हृदय सिंह की बहन भी आई हुई थी। हृदय सिंह के परिवार में काफी अच्छा माहौल था। लोग एक दूसरे को पसंद भी करते थे और सहायता भी करते थे। बच्चे चंचल थे परंतु अच्छे थे। परंतु कभी न कभी तो कुछ ऐसा हो ही जाता है जो परिवार के लोग नही चाहते।

माँ ने बनाई विराट की पसंदीदा जलेबी

एक बार एक अजीब घटना घटी। विराट को जलेबी बहुत पसंद थी। उस दिन विराट की माँ ने सबके लिए घर में जलेबी बनाई थी। विराट के दसवीं के बोर्ड थे, तो वह कोचिंग गया हुआ था। विराट को पता था आज माँ जलेबियां बनाने वाली है। जैसे ही विराट कोचिंग से वापस आता है, वह सीधा रसोई घर पहुंच जाता है। रसोई घर में वह जलेबियां ढूंढता है। परंतु, यह क्या उसे जलेबियां नहीं मिलती। फिर वह फ्रिज में देखता है। वहां भी जलेबियां नहीं होती। वह जल्दी अपनी मां के पास जाता है और उनसे पूछता है, “माँ आज तुमने जलेबियां बनाई थी ना? तो उसकी माँ उससे कहती है, “हां बेटा! तुम्हारी जलेबियां रसोईघर में ही ढक कर रखी हुई है”।

विराट को नही मिल पाई जलेबी

विराट को लगता है, ‘कहीं मुझसे ढूंढने में गलती तो नहीं हो गई’। यह सोच वह फिर से रसोई घर में जाता है। परंतु, उसे फिर भी जलेबियाँ नही मिलती। दुखी हो वह कहता है, “माँ मैंने ढूंढ ली, मुझे नहीं मिली। आप ही चलकर दो मुझे।” तब उसकी माँ उसके साथ रसोई घर में आती है। परंतु, यह क्या? जलेबियां तो खत्म हो चुकी हैं। यह देख माँ हैरान हो जाती है। माँ ने बच्चों से पूछना शुरू किया, “जलेबियां किसने खाई?” तब जाकर पता चला विराट के छोटे भाई ने जलेबियां खाली हैं।

विराट को आया गुस्सा

माँ ने आकर विराट से कहा, “बेटा! तेरे भाइयों ने जलेबियाँ खा ली। मैं तेरे लिए शाम को बना दूंगी।” परंतु, विराट का ध्यान केवल इस बात पर केंद्रित था कि, ‘उसके भाइयों ने उसकी जलेबियां खा ली’। विराट इतना क्रोधित हो गया की उसने गुस्से में रसोईघर में रखा पानी का घड़ा गिरा कर तोड़ दिया। यह देख उसकी माँ, उसे थप्पड़ मारने ही वाली थी कि उसके पिता ने माँ का हाथ पकड़ा और बरामदे की तरफ ले गए। फिर वहां से आवाज लगाई, “कोई माँ के लिए एक गिलास पानी ले आओ”।

बुआ ओर दीदी जी ने की सफाई

अब तक विराट को एहसास हो चुका था कि उससे अनर्थ हो गया है। कोई उससे बात भी नही कर रहा था। वह रसोई घर मे गिरे मटके के पास ही खड़ा था। उसके घर काम करने वाली महिला (दीदी जी) और बुआ मिल कर टूटे घड़े और बिखरे पानी की सफाई कर रहे थे। तभी बुआ विराट से कहती है, “बेटा सोफे पर बैठ जाओ, ध्यान से जाना”। सुबकता हुआ विराट सोफे पर जा बैठता है। फिर कुछ देर के बाद, विराट के पापा आकर विराट के बगल में बैठ गए। विराट को लग रहा था कि, “पापा अब मारेंगे”। परंतु, पापा ने उसे नहीं मारा।

विराट को हुई ग्लानि

यह देख उसे और भी ग्लानि महसूस होने लगी। विराट अपने आप ही बड़बड़ाने लगा, “मैंने सुबह से जलेबी खाने का इंतजार कर रहा था। सुबह मैं नाश्ता खा कर भी नहीं गया था। परंतु, इन लोगों ने मेरी जलेबी भी नहीं छोड़ी। मुझे इतनी भूख लगी थी। यह किसी दूसरे का हिस्सा कैसे खा सकते हैं? इनकी जलेबियां तो मैं नहीं खाई थी। इन्होंने मेरी जलेबियां क्यों खाली? यह सब कह विराट रोने लगा। उसके पापा ने उसे गले लगा लिया और कहा, “अब जो हो गया सो हो गया, इतना क्रोध अच्छी बात नही है”। तभी विराट रोते रोते, चिल्ला कर बोला, “यह सब इन नालायकों की गलती है। ना यह मेरी जलेबी खाते, ना मुझसे घड़ा टूटाता।

युधिष्ठिर बनो, दुर्योधन नहीं (Shikshaprad Kahaniyan)

तब उसकी बुआ ने उसे शांत करवाने के लिए उसके पीठ पर हाथ सहलाया और बोला, “अरे! तुम पांच पांडव हो। कौरव नहीं। बेटा विराट! तुम सबसे बड़े हो। युधिष्ठिर बनो दुर्योधन नहीं। फिर उसके हथेली पर धीमे धीमे गुदगुदी करने लगी। विराट थोड़ी देर में शांत हो गया। तब उसने अपनी बुआ से पूछा, “क्या मैं आपको दुर्योधन लगता हूं?” तब उसकी बुआ ने हंसते हुए कहा, “तुम्हें पता भी है? दुर्योधन को बुरा क्यों कहते हैं और युधिष्ठिर को धर्मराज क्यों कहते हैं?” तो विराट कहता है, “हां! मुझे पता है। युधिष्ठिर हमेशा धर्म की बात करते थे और दुर्योधन हमेशा अधर्म की बात इसलिए।

विराट को दी बुआ और पिता ने सीख (Shikshaprad Kahaniyan)

बुआ ने मुस्कुराकर विराट के पीठ को ठोकते हुए बोला, “हां! यहां तक तो तुम सही समझ रहे हो पर क्या तुम्हें पता है? युधिष्ठिर हमेशा धर्म और दुर्योधन हमेशा अधर्म की बात क्यों करते थे?” विराट ने पूछा, “क्यों?” तब बुआ ने बताया, “क्योंकि दुर्योधन पर सदैव क्रोध सवार रहता था। वही धर्मराज युधिष्ठिर क्रोध को जीत चुके थे।

तब विराट के पापा कहते है, “बेटा! क्रोध आपसे सदैव गलत कार्य करवाएगा। क्रोध में गलत रास्ते सही लगने लगते हैं। तुम्ही सोचो, क्या तुम बिना क्रोध के उस घड़े को तोड़ देते? यदि तुम्हे क्रोध नही आया होता, वह घड़ा नही टूटा होता, तो क्या तुम रो रहे होते? तुम्हारे भाई डरे सहमे होते? बुआ और दीदी जी को सफाई करनी पड़ती? क्या तुम्हारी माँ दुखी होती? यह सब क्रोद्ध के कारण हुआ। क्रोध गलत रास्ते का साथी है।” तब विराट अपने पापा की बात समझ कर दबी आवाज में कहता है, “मुझसे गलती हो गयी। मुझे माफ़ कर दीजिए” (Shikshaprad Kahaniyan)। उसके पापा उसे गले लगा लेते हैं।

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