प्रेरक प्रसंग (Prerak Prasang) : स्वामी विवेकानंद की कहानियां
यहाँ स्वामी विवेकानंद (Swami Vivekananda Story in Hindi) से जुडी कहानियां लिखी गयी हैं। ये कहानियां काफी प्रेरणादायी हैं। धीरे धीरे कहानियों का संकलन बढ़ता जाएगा। स्वामी जी ने अपने जीवन काल में देश विदेश का बहुत भ्रमण किया। इन्होने अलग अलग जगहों पर अपने प्रवचन दिए।
प्रेरक प्रसंग 1 – स्वामी विवेकानंद (Swami Vivekananda Story in Hindi) और अंग्रेज
स्वामी विवेकानंद की कहानियां (Swami Vivekananda Story in Hindi) हमेशा हमे प्रेरणा देती हैं। एक बार स्वामी विवेकानंद रेल से कहीं जा रहे थे। वे जिस डिब्बे में सफर कर रहे थे, उसी डिब्बे में कुछ अंग्रेज यात्री भी थे। उन अंग्रेजों को साधुओं से बहुत चिढ़ थी। वे साधुओं की भर-पेट निंदा कर रहे थे। साथ वाले साधु यात्री को भी गाली दे रहे थे। उनकी सोच थी कि चूंकि साधू अंग्रेजी नहीं जानते हैं, इसलिए उन अंग्रेजों की बातों को नहीं समझ रहे होंगे। इसलिए उन अंग्रेजों ने आपसी बातचीत में साधुओं को कई बार भला-बुरा कहा।
हालांकि, उन दिनों की हकीकत थी कि साधु अंग्रेजी जानते भी नहीं थे। रास्ते में एक बड़ा स्टेशन आया, जहां विवेकानंद के स्वागत में हजारों लोग उपस्थित थे, जिनमें विद्वान एवं अधिकारी भी थे। उन्होंने यहां उपस्थित लोगों को सम्बोधित करने के बाद अंग्रेजी में पूछे गए प्रश्नों के उत्तर भी अंग्रेजी में ही दिए।
अंग्रेज सहयात्री ये सब देख रहे थे। ये देखकर, रेल में उनकी बुराई कर रहे उन अंग्रेज यात्रियों को सांप सूंघ गया। अवसर मिलते ही वे विवेकानंद के पास गए। उन्होंने नम्रतापूर्वक पूछा कि क्या आपने हमारी बात सुनी? स्वामीजी ने सहजता से जवाब दिया। उन्होंने बताया कि उनका मस्तिष्क अपने ही कार्यों में व्यस्त था। इसीलिए उन्हें लोगों की बात सुनने का अवसर नहीं मिला। उनका यह जवाब अंग्रेजों को शर्मसार कर गया। अंग्रेजों ने चरणों में झुककर क्षमा याचना की। वे स्वामीजी के प्रति आदर भाव दिखाने लगे।वे उनके ज्ञान का सम्मान करने लगे।
कहानी की सीख
दूसरे की निंदा हमेशा शर्मिंदगी देती है। अपने लक्ष्य के प्रति समर्पित रहेंगे तो विश्व की कोई भी बाधा आपको विचलित नहीं कर सकती।
प्रेरक प्रसंग 2 – दूसरों के पीछे मत भागो : स्वामी विवेकानंद (Swami Vivekananda Story in Hindi )
एक बार स्वामीजी अपने आश्रम में एक छोटे पालतू कुत्ते के साथ टहल रहे थे। तभी अचानक एक युवक उनके आश्रम में आया और उनके पैरों में झुक गया और कहने लगा – “स्वामीजी मैं अपनी जिंदगी से बड़ा परेशान हूं। मैं प्रतिदिन पुरुषार्थ करता हूं लेकिन आज तक मैं सफलता प्राप्त नहीं कर पाया। पता नहीं ईश्वर ने मेरे भाग्य में क्या लिखा है, जो इतना पढ़ा-लिखा होने के बावजूद भी मैं नाकामयाब हूं।”
युवक की परेशानी को स्वामीजी ने तुरंत समझ लिया। उन्होंने युवक से कहा – “भाई! थोड़ा मेरे इस कुत्ते को कहीं दूर तक सैर करा दो। उसके बाद मैं तुम्हारे प्रश्नों का उत्तर दूंगा।”
उनकी इस बात पर युवक को थोड़ा अजीब लगा लेकिन दोबारा उसने कोई प्रश्न नहीं किया और कुत्ते को दौड़ाते हुए आगे निकल पड़ा। कुत्ते को सैर कराने के बाद, जब एक युवक आश्रम में पहुंचा तो वह देखा कि युवक का चेहरा तेज है लेकिन उसका छोटा कुत्ता थक से जोर-जोर से हांफ रहा था।
स्वामीजी ने पूछा, “भाई, मेरा कुत्ता इतना कैसे थक गया? तुम तो बड़े शांत दिख रहे हो। क्या तुम्हें थकावट नहीं हुई?” युवक ने कहा, “स्वामीजी, मैं धीरे-धीरे आराम से चल रहा था, लेकिन मेरा कुत्ता अशांत था। सभी जानवरों के पीछे दौड़ता था, इसीलिए बहुत थक गया था।”
तब विवेकानंद ने कहा, “भाई, तुम्हारे प्रश्नों का उत्तर तो यही है! तुम्हारा लक्ष्य तुम्हारे आसपास है, लेकिन तुम उससे दूर चलते हो। अन्य लोगों के पीछे दौड़ते रहते हो और तुम जो चाहते हो वह दूर हो जाता है।”
युवक ने विवेकानंद के उत्तर से संतुष्ट होकर अपनी गलती को सुधारने का निर्णय लिया।
कहानी की सीख
अपने लक्ष्य पर ध्यान रखो और भटकाने वाली चीज़ों से दूरी बनाओ।
प्रेरक प्रसंग 3 – स्वामी विवेकानंद और फ्रांसीसी मेजबान (Swami Vivekananda Story in Hindi )
स्वामी विवेकानंद अमेरिका के शिकागो में अपना ऐतिहासिक भाषण देने गए हुए थे। उनका व्याख्यान काफी प्रसिद्ध हो चुका था। अपने भाषण को पूरे विश्व पटल के सामने रखने के लिए स्वामी विवेकानंद अन्य देशों का भ्रमण करने के लिए निकले। इसी क्रम में उन्हें एक फ्रांसीसी विद्वान ने अपने घर आमंत्रित किया। स्वामी जी उनके घर पर पहुंचे। स्वामी जी का स्वागत किया गया। स्वामी जी के लिए फ्रांसीसी विद्वान ने स्वामी जी के लिए अच्छे भोजन का प्रबंध किया। विदेश में इस तरह का भोजन बड़े सौभाग्य की बात बड़े सौभाग्य की बात थी।
भोजन उपरांत वेद वेदांत और धर्म की रचनाओं पर बात चलने लगी। स्वामी जी ने वहां एक मोटी पुस्तक देखा। पुस्तक लगभग डेढ़ हजार पृष्ठों की होगी। स्वामी जी ने अपने मेजबान से पूछा यह क्या है? मैं इसका अध्ययन करना चाहता हूं। मेजबान ने आश्चर्यचकित होते हुए पूछा क्या आप हो फ्रांसीसी आती हैं स्वामी विवेकानंद ने जवाब दिया, “नहीं”।
स्वामी स्वामी जी ने अपने मेजबान से फिर कहा मैं इस पुस्तक को पढ़ना चाहता हूं। मुझे 1 घंटे के लिए इस पुस्तक को दे दें मैं इसे पढ़ लूंगा। अब उन सज्जन को थोड़ा झटका सा लगा और उन्होंने थोड़ा खीजते हुए स्वामी जी से कहा मैं इस पुस्तक को पिछले 1 महीने से पढ़ रहा हूं और अभी आधा ही पढ़ पाया हूं।
स्वामी जी ने कहा आप मुझे पुस्तक तो दें। चूंकि फ्रांसीसी मेजबान थे और स्वामी जी मेहमान थे। उन फ्रांसीसी सज्जन ने अनमने ढंग से उस पुस्तक को स्वामी जी को पढ़ने के लिए दिया। स्वामी जी उस पुस्तक को अपने दोनों हाथों में रखकर 1 घंटे के लिए योग साधना में बैठे हैं बैठ गए।
जैसे ही एक घंटा बीता, फ्रांसीसी विद्वान कमरे में आ पहुंचे। आते के साथ उन्होंने स्वामी विवेकानंद से प्रश्न पूछा क्या आपने अध्ययन कर लिया स्वामी जी ने कहा अवश्य। मेजबान ने कहा मजाक ना करें स्वामी जी ने कहा मैं सत्य कह रहा हूं। स्वामी जी ने कहा आपको अगर कोई संदेह हो तो आप पूछ सकते हैं। उन सज्जन ने एक पृष्ठ खोला और स्वामी जी से उसके बारे में पूछा स्वामी जी ने अक्षरसः जवाब दे दिया।
फ्रांसीसी विद्वान के आश्चर्य की कोई सीमा नहीं थी। स्वामी जी के चरणों में गिर गए। उस विद्वान ने स्वामी जी जैसा व्यक्ति आज तक नहीं देखा था। उन्हें यकीन हो गया यह कोई साधारण व्यक्ति नहीं है यह असाधारण है।
कहानी की सीख
किसी का आकलन जल्दबाजी में नहीं करना चाहिए। जो काम आपसे नहीं हो पाए ऐसा नहीं की कोई दूसरा उसे ना कर पायेगा।
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