आखिर किसके पास हैं हीरे (Tenaliram Aakhir kiske paas hain heere?)
तेनालीराम की कहानी आखिर किसके पास हैं हीरे (Tenaliram Aakhir kiske paas hain heere) बहुत प्रसिद्ध कहानी है। एक बार की बात है राजा कृष्णदेव राय के दरबार में अचानक से एक आदमी दौड़ता हुआ आया और न्याय करने के लिए विनती करने लगा। तभी राजा ने उस आदमी से पूछा, “तुम कौन हो और तुम्हें किस प्रकार का न्याय चाहिए?’
नामदेव का परिचय
तब उस आदमी ने कहा “हे महाराज! मेरा नाम नामदेव है। मैं एक व्यापारी के यहां काम करता हूं। उनके यहां हर पारिश्रमिक को परिश्रम के बदले मिलने वाला मूल्य बहुत ही कम है। परंतु, उनके यहां बहुत आसानी से काम पर रख लेते हैं इसलिए उनके यहां बहुत सारे लोग काम करते हैं। आर्थिक स्थिति ठीक होने नहीं ठीक होने के कारण मैं भी उन्हीं के यहां पर पारिश्रमिक करता हूं। उन्होंने मुझे ठग लिया है। इसलिए न्याय की आशा मे यहां उपस्थित हुआ हूँ।
दो हीरे और नामदेव (Tenaliram Aakhir kiske paas hain heere?)
महाराज ने उसे विस्तारपूर्वक बताने को कहा। तब नामदेव ने बताया कि “कल की ही बात है, मैं और मेरे मालिक व्यापारी हम दोनों व्यापार हेतु दूसरे शहर जा रहे थे। बहुत देर यात्रा करने के बाद एक मंदिर के पास एक पेड़ के नीचे मेरे मालिक ने विश्राम करने के लिए आसरा लिया। जब हम दोनों पेट पूजा कर विश्राम कर रहे थे। तभी मेरी नजर मंदिर के पास पड़े एक लाल रंग के थैले पर पड़ी। मैंने अपने मालिक से आज्ञा लेकर, उस थैली को ले लिया। जब मैंने उसे थैली में देखा तो, उसमें बेर के आकार के दो हीरे चमक रहे थे।” यह कह कर वह रोने लगा।
हीरे राज्य की संपत्ति (Tenaliram Aakhir kiske paas hain heere?)
तब महाराज ने उसे धैर्यपूर्वक आगे बताने को कहा। नामदेव ने बताया कि, जब उसने हीरे को देखा तो वह सोचने लगा कि “नियम के अनुसार, ये हीरे तो राज्य की संपत्ति है। यदि इन्हें राज दरबार में लाकर जमा कर दिया जाए तो इनाम मिलेगा। जिससे मैं अपना छोटा–मोटा व्यवसाय शुरू कर पाऊंगा।” तब ही उसके मालिक ने पूछा की “क्या है उस थैली में? जिसे देखकर तेरी आंखें इतनी बड़ी हो गई है? यह पूछते हुए थैली छीन ली।
मलिक का हिस्सा
मालिक ने थैले में झाँका तो अचंभित रह गया। फिर उसने नामदेव से पूछा तो क्या करेगा इस हीरे का? जब नामदेव ने मलिक को बताया कि वह राजकोष में जमा कर इनाम लेगा। तब मालिक ने कहा मैं तुझे यहां लेकर आया और मैं ही यहां से लेकर जाऊंगा। इसमें मेरा कोई हिस्सा नहीं है क्या ? एक काम कर इसका बंटवारा करते हैं एक हीरा तेरा और एक हीरा मेरा।
व्यवसायी की हामी
तब मैंने सोचा कि “कोई बात नहीं कम से कम एक हीरा तो मुझे मिलेगा। मैं वही राजकोष में जमा कर दूंगा। उसने व्यवसायी की बात में हामी भर दी। परंतु जब हम रात को वापिस, मलिक के घर पहुंचे तो मालिक ने मुझे जाने को कह दिया। जब मैं उनसे कहा कि “एक हीरा मुझे भी दीजिए” तो उन्होंने कह दिया “कौन सा हीरा कैसा हीरा ? चल भाग यहां से! आप ही बताइए मालिक “यह अन्याय है या नहीं?” इसीलिए मुझे न्याय चाहिए।
राज दरबार में व्यवसायी
नामदेव की बात सुनकर राजा कृष्णदेव राय ने उसे व्यवसायी को तुरंत राज दरबार में उपस्थित होने का आदेश दिया। कोतवाल उस व्यवसायी को लेकर राज दरबार में आया। व्यवसायी ने कहा की “यह बात सत्य है की, नामदेव ने हीरे मंदिर के पास से उठाए थे और उसने राजा से इनाम पाने हेतु हीरे को राज दरबार में जमा करने की भी बात कही थी। परंतु आज सुबह जब नामदेव से मैंने हीरा जमा करने की रसीद मांगी तो नामदेव भड़क गया। कहने लगा कौन सा हीरा? कैसा हीरा ? तब मैंने उसके मिथ्या प्रलाप से दुखी होकर, उसे नौकरी से निकाल दिया।
कोई साक्ष्य है तुम्हारे पास?
महाराज ने पूछा “अपनी बात सिद्ध करने के लिए कोई साक्ष्य है तुम्हारे पास?” तब व्यवसायी ने कहा “मेरे तीन नौकरों से आप पूछ सकते हैं। वह भी मेरे साथ यात्रा पर गए थे।” तब राजा ने उसके तीनों नौकरों को उपस्थित होने का आदेश दिया। तीनों नौकरों ने राजा के सामने यह बात मानी की नामदेव झूठ बोल रहा है। उनकी बातें सुनकर महाराज ने कहा “तुम पांचो प्रतीक्षाकक्ष में बैठो।” यह कह कर महाराज सेनापति, महामंत्री और तेनालीराम के साथ सलाह कक्ष में चले गए।
कौन झूठ बोल रहा है?
वहां महाराज ने उनसे पूछा, “आप लोगों को क्या लगता है? कौन झूठ बोल रहा है?” सेनापति ने कहा, “मेरे हिसाब से नामदेव झूठ बोल रहा है। उसी ने हीरा छुपाए होंगे।” तब महामंत्री ने कहा, “पर यह भी तो हो सकता है कि हीरे उसके मालिक की पास ही हो।” जब महाराज ने तेनालीराम की ओर देखा तो, तेनालीराम ने कहा, “आप सब पर्दे के पीछे छुप जाईए। अभी दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा।” यह सब सुनकर वह तीनों पर्दे के पीछे छुप गए।
सलाह कक्षा में नौकर
तेनालीराम ने एक–एक करके तीनों नौकरों को सलाह कक्षा में बुलाया, और उनसे पूछा कि “हीरे का रंग और आकार कैसा था?” पहले नौकर ने कहा, “मुझे नहीं पता, हीरे काले रंग के थैले में थे। जिसकी वजह से बाहर कुछ दिख नहीं रहा था। तब तेनालीराम ने कहा, “ठीक है! तुम दीवार के ओर मुड़ कर चुपचाप खड़े हो जाओ। फिर दूसरा नौकर आया और बोला कि “हीरे तो हीरे के रंग के ही थे। ये बड़े–बड़े अमरूद के इतने बड़े गोल–गोल हीरे थे। तेनालीराम ने उसे भी दीवार के ओर मुड़ कर चुपचाप खड़े होने को कह दिया। फिर तीसरा नौकर आया और बोला कि “हीरे भोजपत्र में बंधे थे इसलिए उसने नही देखे”।
महाराज को सच पता चला (Tenaliram Aakhir kiske paas hain heere?)
यह सब सुनते ही महाराज बाहर आगए। उन्हें देखते ही नौकरों को सारी बात समझ आगयी और वे महाराज के चरणों पर गिर पड़े। वे हाथ जोड़ कहने लगे कि, “हमने यह झूठ अपने मालिक के कहने पर कहा है। हमने हीरे नहीं देखे। हम उसके साथ नहीं गए थे।” महाराज में व्यवसायी के घर पर छापा मारने का आदेश दिया।
झूठे को दंड
व्यवसायी के घर से दोनों हीरे प्राप्त हुए। महाराज ने राज दरबार में झूठ बोलने के दंड में व्यवसायी को 25 कोड़े मारने का आदेश दिया। एक नागरिक को ठगने और राजसम्पत्ति हड़पने के दंड में 2500 स्वर्ण मुद्राएं राजकोष में जमा करने का आदेश दिया। तीनों नौकरों को राज दरबार में गलत साक्ष्य प्रस्तुत करने के दंड स्वरूप 10 कोड़े मारकर छोड़ने का आदेश दिया। नामदेव को न्याय मिला और साथ ही पुरुष्कार में 100 स्वर्ण मुद्राएं भी मिली। अपनी सूझ बूझ से इस प्रकार तेनालीराम ने नामदेव को न्याय दिलाया।
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