बुद्धिमान तेनालीराम और घड़ा (Tenaliram aur Ghada)

बुद्धिमान तेनालीराम और घड़ा (Tenaliram aur Ghada)

आज भी बुद्धिमान तेनालीराम और घड़ा (Tenaliram aur Ghada) की कहानी पढ़ने और सुनने में काफी मनोरंजक लगती है। एक गुत्थी सुलझाने में तेनालीराम बहुत मग्न हो गए थे। उन्हें इस बात की सुध तक नहीं रही कि वह एक सप्ताह से दरबार ही नहीं पहुंचे थे। एक सप्ताह बाद वे राजदरबार पहुंचे। राजा कृष्णदेव राय उनसे बहुत क्रोधित थे। जब भी तेनालीराम कुछ कहने का प्रयास करते, तो राजा कृष्णदेव राय उन्हें मौन रहने का आदेश दे देते। दो-तीन बार ऐसा ही चला रहा। ये सब देख, तेनालीराम के विरोधी दल में अत्यंत प्रसन्नता दिख रही थी। अंततः राजा कृष्णदेव राय ने तेनालीराम से कहा की, “तेनालीराम! आज से मुझे आपका मुख नहीं देखना है। आज से आप मुझे अपना मुख नहीं दिखाएंगे। यदि आपको दरबार में आने का समय नहीं है, तो आपके लिए यही दंड है।” यह बोलकर राजा कृष्णदेव राय ने अपनी सभा समाप्त कर दी।

घड़ा पहन कर दरबार पहुंचे तेनालीराम

अगले दिन दरबारी जन दरबार मे आ चुके थे। अभी राजा कृष्णदेव राय दरबार में नहीं आए थे। महाराज के आने से पहले ही तेनालीराम वहां पहुंच चुके थे। मगर यह क्या? उन्हें देख कर लोग लोटपोट हो रहे थे। ऐसा नहीं था कि तेनालीराम कोई चुटकुला सुना रहे थे। बल्कि, वह अपने माथे में एक घड़ा पहन कर आए थे। जब भी वह कुछ कहते लोग हंसने लगते। उस घड़े में आंखों की जगह पर दो छेद बने थे और मुख के जगह पर भी एक छोटा सा छेद बना था। सभा में उपस्थित लोग उन पर हंस भी रहे थे और उनका मजाक भी उड़ा रहे थे। तभी महाराज की आने की घोषणा हो गई। कुछ ऐसे दरबारी भी थे जो तेनालीराम को बिल्कुल पसंद नहीं करते थे। उन्होंने महाराज के आते ही उनके कान भरने शुरू कर दिए।

राजद्रोही सिद्ध हुए तेनालीराम

तेनालीराम के विरोधी दल ने महाराज से शिकायत लगाई कि, “आपने तो तेनालीराम को आने से मना किया था। परंतु, उसने आपकी बात नही मानी। वह दरबार मे आ गया है। साथ ही, सभासदों को हंसा हंसा कर सभा को परेशान कर रहा है। यह सब सुन राजा कृष्णदेव राय ने कड़े शब्दों में कहा, “तेनालीराम! आपने मेरे आदेश की अवहेलना क्यों की? क्या आपको ज्ञात नही की मेरे आदेश की अवहेलना राजद्रोह है? इतना ज्ञान व्यर्थ है। अब दंड के लिए भी सज्ज हो जाईए।” तेनालीराम ने हाथ जोड़कर कहा, “अन्नदाता! जो आपकी आज्ञा।”

तेनालीराम (Tenaliram aur Ghada) को मिली दंड से मुक्ति

राजा कृष्णदेव राय ने तेनालीराम से कहा, “दंड विधान के अनुसार आपको अपना पक्ष रखने का अधिकार है। दंड से पहले आप अपने आपको निरपराध सिध्द करने के लिए जो कुछ कहने की इच्छा रखते हो, वह कह सकते हैं।” तेनालीराम ने कहा, “हे अन्नदाता! मैं आपके किसी भी आदेश की अवहेलना नहीं की है। आपने मुझे आदेश दिया था कि आप मेरा मुख नहीं देखेंगे और मुझे आपको अपना मुख नहीं दिखाना है। तो क्या इस घड़े के बाहर से आपको मेरा मुख दिख रहा है? यदि दिख रहा है, तो यह कुम्हार की गलती है, मेरी नहीं!” तेनालीराम की इस बात को सुनकर महाराज कृष्ण देव राय को हंसी आ गई। उन्होंने कहा, “तुम जैसे बुद्धिमान सभासद से कोई कितने दिन तक क्रोधित रह सकता है? चलिए तेनालीराम आपकी बुद्धिमत्ता के कारण मैं आपके दंड को क्षमा करता हूं।” तेनालीराम की कहानियां (Stories of Tenaliram) हमेशा प्रेरणादायक होती हैं।

प्रत्यक्षम् किम् प्रमाणम् (pratyakshm kim pramanam) पढ़ें।