सम्राट विक्रमादित्य बैताल से कैसे मिले (Vikram Betal ki Kahaniyan) ?
विक्रम और बेताल की कहानियां (Vikram Betal ki kahaniyan) आज भी बड़े चाव से लोग पढ़ते हैं। देवराज इंद्र को जब पता चला कि, चक्रवर्ती सम्राट विक्रमादित्य के छोटे भाई राजा भर्तृहरि राज पाट छोड़ कर तपस्या हेतु जंगल चले गए हैं। तब देव राज इंद्र ने राज्य में सुरक्षा बनाये रखने हेतु एक देव को भेजा। वह देव सबसे पहले राजधानी को सुरक्षित करने का कार्य कर रहे थे। जब चक्रवर्ती सम्राट विक्रमादित्य को पता चला कि उनके छोटे भाई भर्तृहरि राज्य को छोड़कर तपस्या करने जंगल में चले गए हैं। तब वे वापिस अपनी राजधानी की ओर वापस चल पड़े। जब सम्राट विक्रमादित्य अपने राजधानी पहुंचे तब आधी रात्रि हो चुकी थी।
देव ने की राजधानी की रक्षा
जिन देव को देवराज इंद्र ने भेजा था। उन्होंने सम्राट विक्रमादित्य को प्रवेश करने से रोक दिया। देव ने उनसे पूछा, “तुम कौन हो”? तब सम्राट विक्रमादित्य ने कहा, “मैं इस भूमि का सम्राट विक्रम हूं। यह मेरी राजधानी है। तुम मुझे रोकने वाले कौन होते हो? तुम अपना परिचय दो।” यह सुनकर देव बोले, “मुझे देवराज इंद्र ने इस नगर की सुरक्षा के लिए भेजा है। मैंने सुना है सम्राट विक्रमादित्य बड़े ही शक्तिशाली और समर्थ योद्धा हैं। तो, आओ! मुझसे युद्ध करो और यह सिद्ध करो कि तुम ही सच्चे सम्राट विक्रमादित्य हो। सम्राट विक्रमादित्य ने युद्ध की चुनौती स्वीकार की। दोनों के बीच युद्ध हुआ। युद्ध में परास्त होने के बाद देव ने सम्राट विक्रमादित्य से कहा, “हे राजन! आपने मुझे हरा दिया। मैं मानता हूं कि आप ही सम्राट विक्रमादित्य हैं।
विक्रमादित्य, कुम्हार और तेली (Vikram Betal ki Kahaniyan)
देव ने सम्राट से कहा, “हे राजन! मैं प्रसन्न हूं कि, आज मुझे युद्ध में अच्छी टक्कर मिली। प्रसन्नतावश मैं आपको एक जीवन दान का वरदान देता हूं।” विक्रमादित्य ने भी हाथ जोड़कर उनका वंदन किया। फिर देव ने कहा, “हे राजन! जब आपका जन्म हो रहा था। उस समय एक ही नगर एवं नक्षत्र में तीन मनुष्यों का जन्म हुआ था। जिन में से आपने राजा के घर में जन्म लिया। दूसरे ने तेली और तीसरे ने एक कुम्हार के घर में जन्म लिया। कुम्हार ने साधना से स्वयं को सिद्ध कर लिया है। उसने तेली को मार कर पिशाच बना रखा है। सिद्ध कुम्हार ने तेली के शव को शमशान में सिरस के पेड़ से लटका रखा है। वह आपको भी मारने आएगा। आप सावधान रहिए।” यह सब कह कर देव वापस अपने लोक को चले गए।
सम्राट पहुंचे अपनी राजधानी
सम्राट को वापस आए देख प्रजा में आनंद की लहर दौड़ गई। उत्सव मनाया जाने लगे। राजधानी फिर से राजधानी लगने लगी। कुछ समय पश्चात, एक योगी सम्राट के दरबार में आया। उसका नाम शांतिशील था। उसने सम्राट को प्रणाम कर एक फल दिया और फिर वहां से चला गया। सम्राट को आशंका हुई कि देव ने जिस आदमी के बारे में बताया था, हो सकता है यह योगी वही तेली हो। सोच विचार कर उन्होंने उसे फल को नहीं खाया और भंडारी को दे दिया। योगी प्रतिदिन आते और सम्राट को एक फल दे जाते। सम्राट प्रतिदिन उस फल को भंडारी को दे दिया करते। एक दिन सम्राट घोड़ों का जायजा ले रहे थे। तभी वह योगी वहीं पहुंच गया और उसने फिर से राजा को फल दिया।
फलों में छुपा था अमूल्य रत्न
सम्राट के हाथ से वह फल छूट कर धरती पर जा गिरा। गिरते के साथ फल फैट गया। परंतु, यह क्या उसमें से एक लाल रंग का रत्न निकला। जिसकी चमक से सब की आंखें फटी की फटी रह गई। सम्राट ने आश्चर्यचकित होकर योगी से पूछा यह रत्न युक्त फल आप मुझे प्रतिदिन क्यों देते हैं? तब योगी ने उत्तर दिया, हे महाराज! राजा, गुरु, ज्योतिषी, वैद्य एवं पुत्री विद्या के घर कभी खाली हाथ नहीं जाना चाहिए। जितना उच्च आपका उपहार होगा, उतना ही उच्च आपकी प्रतिष्ठा होगी। योगी के जाने के बाद राजा ने भंडारी को बुलवाकर सभी फल मंगवाए और सब को खोलकर देखने पर सब से एक-एक लाल रन निकला। तब सम्राट ने जोहरी को बुलवाकर रत्नों के परीक्षण करवाए। इससे पता चला एक एक लाल रतन छोटे-मोटे राज्य के बराबर मूल्य रखते हैं।
क्यों दिए योगी ने रत्न?
आश्चयचकित सम्राट ने योगी को बुलाने का आदेश दिया। एकांत में सम्राट ने योगी से पूछा कि, “आप इतने अमूल्य रत्न कहां से लाते हैं? और मुझे क्यों देते हैं?” तब योगी ने उत्तर देते हुए कहा, “महाराज! ये रत्न मैं अपनी सिद्धियों से प्राप्त करता हूँ। गोदावरी नदी के किनारे श्मशान में, मैं एक साधना सिद्ध कर रहा हूं। उसके सिद्ध हो जाने पर मेरे मनोरथ पूरे हो जाएंगे। इसके लिए आपकी मदद चाहिए। यदि मैं आपको पहले ही यह बता देता तो शायद आप मेरी बात बिना पूरा सुने ही मुझे भगा देते। इसलिए मैंने यह तरीका अपनाया। आप मेरी बात सुने इसी का यह मूल्य है।” साधना की अंतिम रात्रि पर मेरे सिद्धि स्थान पर अकेले आकर मेरी सहायता कीजिए राजन! इससे अधिक मैं अभी आपको बताने में असमर्थ हूं।”
विक्रमादित्य पहुंचे शमशान (Vikram Betal ki Kahaniyan)
सम्राट सब समझ रहे थे। उन्होंने योगी को उत्तर देते हुए कहा, “अच्छी बात है। साधना के अंतिम दिन सूचित कीजियेगा। मैं आपकी सहायता हेतु अकेला ही आऊंगा।” कुछ दिन उपरांत वह दिन आ गया। सम्राट योगी के सिद्ध स्थान पर पहुंचे। थोड़ी देर बैठने के बाद सम्राट ने योगी से पूछा, “योगी जी! मैं आपकी क्या सहायता कर सकता हूं?” तब योगी ने कहा, “राजन! यहां से दक्षिण दिशा में दो कोस दूर, शमशान में एक सिरस का पेड़ है। उस पर एक शव लटका हुआ है। आप उसे मेरे पास लेते आइए। यह सुनकर सम्राट ने कहा, “जैसी आपकी इच्छा योगी जी” और वह उस शव को लाने शमशान के मध्य में चले गए। जब शमशान पहुंचे तो उस रात्रि वहां बहुत अंधेरा था और वर्षा हो रही थी।
भयहीन सम्राट विक्रमादित्य
वहां डरावनी आवाज़ें आ रही थी। सांप बिच्छू पैर पर चढ़ रहे थे। जंगली जानवरों की भयावह आवाज़ें आ रही थीं। अघोरी शवों को खा रहे थे। पर इन्हें क्या पता था कि, वह कोई मामूली मानव नहीं, सम्राट विक्रमादित्य है। बिना किसी भय, बिना किसी डर के सम्राट विक्रमादित्य आगे बढ़ते गए। ना शेर की दहाड़ का डर ना हाथी के चिंघाड़ने का डर। बेधड़क-बेखौफ राजा विक्रमादित्य सिरस के पेड़ के पास पहुंच गए। पेड़ की जड़ से ऊपर तक उसे पूरे पेड़ में आग लगी हुई थी और पेड़ पर रस्सी से बंधा एक शव लटक रहा था। सम्राट ने अपनी तलवार से उस रस्सी को काटकर नीचे गिरा दिया। गिरते ही शव दहाड़े मारकर रोने लगा। तब राजा ने पूछा, “तू कौन है?”राजा (Vikram Betal ki kahaniyan) के पूछते ही वह शव दहाड़े मारकर हसने लगा और वापस जाकर पेड़ पर लटक गया।
मैं बैताल हूं
विक्रमादित्य पूरे खेल को समझ रहे थे। उन्होंने फिर से तलवार से रस्सी को काटकर शव को नीचे गिरा दिया। इस बार अपने हाथों में जकड़ कर, उससे पूछा “तू कौन है?” इस पर उस शव ने कोई उत्तर नहीं दिया। तब सम्राट विक्रमादित्य ने उसे चादर से बांध दिया और फिर उसे लेकर चल पड़े। रास्ते में उसे शव ने कहा, “मैं बैताल हूं। तू कौन है और मुझे कहां ले जा रहा है? सम्राट विक्रमादित्य ने कहा, “मैं इस भूमि का चक्रवर्ती सम्राट विक्रमादित्य हूं। मैं तुझे उस योगी के पास ले जा रहा हूं, जिसने मुझे तुझे यहां से ले जाने की विनती की है।” तब बेताल ने कहा, “तेरे साथ चलने की मेरी दो शर्ते हैं। पहली, रास्ते में तू कुछ भी नहीं कहेगा। यदि तूने एक शब्द भी कहा तो मैं लौट कर पेड़ पर जा लटकूंगा। दूसरी, मैं तुझे कहानी सुनाऊंगा।”
सम्राट विक्रमादित्य ने इशारे में उसकी बात का समर्थन किया। सम्राट उसे उठाकर ले जा रहे थे। बैताल उन्हें कहानी सुना रहा था। इन्हीं कहानियों को बेताल पच्चीसी की कहानी कही जाती है। बेताल पच्चीसी की संपूर्ण कहानी आप यहां पढ़ सकते हैं।