सिंह और बूढ़े शशक की कहानी – Singh Aur Buddhe Shashak ki Kahani
बुद्धि के प्रयोग मुसीबत में कैसे करना चाहिए उसकी शिक्षा सिंह और बूढ़े शशक की कहानी हमे देती है। मंदर नामक पर्वत पर दुर्दान्त नामक एक सिंह रहता था और वह सदा पशुओं का वध करता रहता था। तब सब पशुओं ने मिल कर उस सिंह से विनती की, सिंह एक साथ बहुत से पशुओं की क्यों हत्या करते हो ? जो प्रसन्न हो तो हम ही तुम्हारे भोजन के लिए नित्य एक पशु को भेज दिया करेंगे। फिर सिंह ने कहा ठीक है। उस दिन से निश्चित किये हुए एक पशु को खाया करता था। फिर एक दिन एक बूढ़े शशक (खरगोश) की बारी आई।
खरगोश की बारी
त्रासहेतोर्विनीतिस्तु क्रियते जीविताशया।
पंच्त्वं चेद्गमिष्यामि किं सिंहानुनयेन में ?
बूढा खरगोश सोचने लगा- जीने की आशा से, भय के कारण की अर्थात मारने वाले की विनय की जाती है। और वह मरना ही ठहरा, फिर मुझे सिंह की विनती से क्या काम है ?
बुद्धि का प्रयोग
इसलिए धीरे- धीरे चलता हूँ। देर से पहुंचने पर भूख से झुंझलाए सिंह ने उससे पूछा – तू किसलिए देर करके आया है ? खरगोश ने कहा – महाराज, मैं अपराधी नहीं हूँ। मार्ग में आते हुए मुझको दूसरे सिंह ने बल से पकड़ लिया था। उसके सामने फिर लौट आने की सौगंध खा कर स्वामी को जताने के लिए यहाँ आया हूँ। सिंह क्रोधयुक्त हो कर बोला -शीघ्र चल कर दुष्ट को दिखला कि वह दुष्ट कहाँ बैठा है। फिर खरगोश उसे साथ ले कर एक गहरा कुँआ दिखलाने को ले गया। वहाँ पहुँच कर उसने कहा – स्वामी, आप खुद देख लीजिये। सिंह को कुँए के जल में अपनी परछाई दिखलाई दी। फिर क्रोध में सिंह ने दहाड़ कर उसके ऊपर छलांग लगा दिया। कुँए में डूब कर सिंह मर गया। खरगोश ने अपने बुद्धि के प्रयोग से नया जीवन पाया। जंगल के जानवर काफी खुश हो गए।
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