सिंह, चूहा और बिलाव की कहानी
उत्तर दिशा में अर्बुदशिखर नामक पर्वत पर दुदार्ंत नामक एक बड़ा पराक्रमी सिंह रहता था। उस पर्वत की कंदरा में सोते हुए सिंह की लटाके बालों को एक चूहा नित्य काट जाया करता था, तब लटाओं के छोर को कटा देख कर क्रोध से बिल के भीतर घुसे हुए चूहे को नहीं पा कर सिंह सोचने लगा।
सिंह की चाल
क्षुद्रशत्रुर्भवेद्यस्तु विक्रमान्नैव लभ्यते।
तमाहन्तु पुरस्कार्यः सदृशस्तस्य सैनिकः।।
अर्थात, जो छोटा शत्रु हो और पराक्रम से भी न मिले तो उसको मारने के लिए उसके चाल और बल के समान घातक उसके आगे कर देना चाहिए।
दधिकर्ण बिलाव
यह सोचकर उसने गाँव में जा कर भरोसा दे कर दधिकर्ण नामक बिलाव को यत्न से ला कर माँस का आहार दे कर अपनी गुफा में रख लिया। बाद में उसके भय से चूहा भी बिल से नहीं निकलने लगा — जिससे यह सिंह बालों के नहीं कटने के कारण सुख से सोने लगा। जब चूहे का शब्द सुनता था तब तब माँस के आहार से उस बिलाव को तृप्त करता था। फिर एक दिन भूख के मारे बाहर घूमते हुए उस चूहे को बिलाव ने पकड़ लिया और मार डाला। बाद में उस सिंह ने बहुत समय तक जब चूहे को ने देखा और उसका शब्द भी न सुना, तब उसके उपयोगी न होने से बिलाव के भोजन देने में भी कम आदर करने लगा। फिर दधिकर्ण आहारबिहार से दुर्बल हो कर मर गया।