पंचतंत्र – दो सिर वाला पक्षी
एक तालाब में भारण्ड नाम का एक विचित्र पक्षी रहता था। इसके मुख दो थे, किन्तु पेट एक ही था। एक दिन समुद्र के किनारे घूमते हुए उसे एक अमृतसमान मधुर फल मिला। यह फल समुद्र की लहरों ने किनारे पर फैंक दिया था। उसे खाते हुए एक मुख बोला- “ओः, कितना मीठा है यह फल ! आज तक मैंने अनेक फल खाये, लेकिन इतना स्वादु कोई नहीं था। न जाने किस अमृत बेल का यह फल है।”
वंचित मुख
दूसरा मुख उससे वंचित रह गया था। उसने भी जब उसकी महिमा सुनी तो पहले मुख से कहा- -“मुझे भी थोड़ा सा चखने को दे दे।” पहला मुख हँसकर बोला- -“तुझे क्या करना है? हमारा पेट तो एक ही है, उसमें वह चला ही गया है। तृप्ति तो हो ही गई है।” यह कहने के बाद उसने शेष फल अपनी प्रिया को दे दिया। उसे खाकर उसकी प्रेयसी बहुत प्रसन्न हुई।
तिरस्कार का बदला
दूसरा मुख उसी दिन से विरक्त हो गया और इस तिरस्कार का बदला लेने के उपाय सोचने लगा।
अन्त में, एक दिन उसे एक उपाय सूझ गया। वह कहीं से एक विषफल ले आया। प्रथम मुख को दिखाते हुए उसने कहा- “देख ! यह विषफल मुझे मिला है। मैं इसे खाने लगा हूँ।” प्रथम मुख ने रोकते हुए आग्रह किया- “मूर्ख ! ऐसा मत कर, इसके खाने से हम दोनों मर जायंगे।” द्वितीय मुख ने प्रथम मुख के निषेध करते-करते, अपने अपमान का बदला लेने के लिये विषफल खा लिया। परिणाम यह हुआ कि दोनों मुखों वाला पक्षी मर गया।
कहानी की सीख
संसार में कुछ काम ऐसे हैं, जो एकाकी नहीं करने चाहियें। अकेले स्वादु भोजन नहीं खाना चाहिये, सोने वालों के बीच अकेले जागना ठीक नहीं, मार्ग पर अकेले चलना संकटापन्न है; जटिल विषयों पर अकेले सोचना नहीं चाहिये। मिलकर काम करो।